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मातृभाषा दिवस 2022 :जाने इतिहास और थीम


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नई दिल्ली – हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। भाषा केवल संचार का साधन नहीं है; यह विशाल सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत का भी प्रतिनिधित्व करता है।

संयुक्त राष्ट्र का उल्लेख है कि हम हर दो सप्ताह में एक भाषा खो रहे हैं और दुनिया में बोली जाने वाली अनुमानित 6000 भाषाओं में से कम से कम 43% खतरे में हैं।

भारत में 121 भाषाएं हैं। उनमें से 22 भाग ए में उल्लिखित भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट हैं, जबकि शेष 99 भाग बी में निर्दिष्ट हैं। इसके अलावा भारत में 270 मातृभाषाएं भी हैं।

21 फरवरी 1952 से होती है, जब पाकिस्तानी सेना ने बांग्ला भाषी लोगों पर गोलियां चलाईं, जिससे कई मौतें हुईं और अंत में बांग्लादेश का जन्म हुआ।

बाद में 1998 में, कनाडा के दो अनिवासी बांग्लादेशियों, रफीकुल इस्लाम और अब्दुस सलाम ने संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन सचिव कोफी अन्नान को पत्र लिखा। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित करके दुनिया की लुप्तप्राय भाषाओं को बचाने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया। 1999 में यूनेस्को द्वारा इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया था। यही कारण है कि बांग्लादेश में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है।

कुछ मातृभाषाएं ऐसी हैं जो लाखों लोगों द्वारा उपयोग की जाती हैं, लेकिन भोजपुरी (5 करोड़), राजस्थानी (2.5 करोड़), छत्तीसगढ़ी (1.6 करोड़), और मगही या मगधी (1.27 करोड़) जैसी भाषाओं की स्थिति का आनंद नहीं लेती हैं।

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