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भारत

बेरोजगारी, टैक्स, महंगाई… सरकार के सामने ये 6 बड़े सवाल, क्या जवाब दे पाएगा निर्मला का बजट?

नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार केंद्रीय बजट 2022 पेश कर रही है। देश की अर्थव्यवस्था कोविड -19 महामारी की चपेट में आने के बाद उबरने का प्रयास कर रही है। आम आदमी से लेकर उद्योगपतियों तक को आज संसद में पेश होने वाले आम बजट से बहुत उम्मीदें हैं।

सभी तबके के लोगों को लगता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण उन उपायों की घोषणा करेंगी जो अर्थव्यवस्था को मजबूती से स्थापित करेंगे। माना जा रहा है कि राजकोषीय बाधाओं के बावजूद सरकार मध्यम वर्ग के लिए रियायतों की घोषणा करते हुए एक कड़ा कदम उठाने जा रही है।

चलिए जानते हैं उन 6 सवालों के बारे में जो मोदी सरकार के लिए इस बजट में बड़ी समस्या हैं।

1. बढ़ती महंगाई –
कोरोना महामारी के चलते देश के युवा बड़ी संख्या में नौकरियां खो रहे हैं। लोगों की आय पर बहुत असर पड़ा है और महंगाई लोगों का बजट बिगाड़ रही है।

रसोई गैस के दामों से लेकर दैनिक खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं। हालांकि अर्थशास्त्रियों को इस बजट में महंगाई से उबरने को लेकर कोई बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं है।

वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान रसोई गैस और मिट्टी के तेल पर सब्सिडी कम थी। ब्रोकरेज फर्म जेफरीज ने कहा कि इस साल के बजट में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कमी या प्राकृतिक गैस को जीएसटी के तहत शामिल करने की कोई उम्मीद नहीं है। एचएसबीसी ने अपनी बजट पूर्व उम्मीदों में कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।

2. बढ़ती बेरोजगारी –
आर्थिक मंदी ने पिछले छह में से पांच वर्षों में बेरोजगारी दर को वैश्विक आंकड़े से ऊपर धकेल दिया है। एसोचैम के एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2022 के बजट में सरकार को पहले बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, इसके बाद विनिर्माण क्षमताओं के उच्च प्रोत्साहन विस्तार के माध्यम से रोजगार सृजन को बढ़ाना चाहिए।

फिर भी बड़ी समस्या श्रम भागीदारी दर में गिरावट है क्योंकि देश के निराश युवा अच्छे वेतनमान की नौकरी के लिए विदेशों का रूख कर रहे हैं। रॉयटर्स समाचार एजेंसी के मुताबिक, युवाओं को देश में नौकरी की संभावनाएं बेहद कम नजर आती है।

इस बार बजट को रोजगार और रोजगार पैदा करने के लिए देख जाना चाहिए। शीर्ष ब्रोकरेज फर्म ड्यूश बैंक ने कहा कि सरकार को हालांकि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण से बाहर न हो जाए।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा कि आगामी बजट में सरकार को रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था में व्यापक असमानता को कम करने के अलावा विकास में तेजी लाने पर ध्यान देना चाहिए।

3. आयकर राहत –
कोविड -19 महामारी के बीच करदाता उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार 2.5 लाख रुपये की मूल आयकर छूट सीमा और 10 लाख रुपये और उससे अधिक के शीर्ष आय स्लैब में ऊपर की ओर संशोधन करेगी। वेतनभोगी वर्ग भी मौजूदा धारा 80C कटौती सीमा में 1.5 लाख रुपये की वृद्धि चाहता है।

4. आर्थिक उत्पादन –
भारत का वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वित्तीय वर्ष 2019-20 में एक दशक के निचले स्तर 4 प्रतिशत पर आ गया था। एक साल पहले आई कोरोना महामारी ने इसे आर्थिक उत्पादन में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज करने के लिए आगे बढ़ाया। हालांकि, सकारात्मक रूप में देखें तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ भारत का इस साल मार्च तक चालू वित्त वर्ष में 9.2 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में ये 7.3 प्रतिशत था। सरकार को सतत विकास बनाए रखने के लिए बजट में कई उपाय करने की जरूरत होगी।

5. निजीकरण –
सरकार ने अल्पसंख्यक हिस्सेदारी बेचकर और उनमें से कुछ के सीधे निजीकरण द्वारा राज्य द्वारा संचालित फर्मों में सुधार के अपने साहसिक वादों पर बहुत कम प्रगति की है। हाल ही में सरकार ने टाटा समूह के साथ एयर इंडिया का ऐतिहासिक करार किया और एयर इंडिया की 69 साल बाद घरवापसी हुई। इन सबके बावजूद कुछ बैंकों, रिफाइनर और बीमा फर्मों को बेचने के वादे को पूरा करने में सरकार विफल रही है।

6. राजकोषीय घाटा –
भारत का राजकोषीय घाटा रिकॉर्ड 9.3 प्रतिशत तक पहुंच गया है। मोदी सरकार ने महामारी के दौरान 800 मिलियन (करीब 8 हजार करोड़) गरीबों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने में खर्च किया। अब सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में इसे वापस 6.8 प्रतिशत करने का है। सरकार को धीरे-धीरे राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान देना चाहिए और निवेश-संचालित विकास का विकल्प चुनना चाहिए।

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