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IMF का बड़ा बयान: कोविड महामारी के बाद हरित निवेश पर ध्यान दे भारत


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वाशिंगटन – अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हालही में भारत में निवेश को लेकर बड़ा बयान दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 महामारी से उबर रही है और ऐसे में देश के लिए खासकर हरित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

कोरोना महामारी के चलते वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान अर्थव्यवस्था में 7.3 प्रतिशत की दर से गिरावट आई थी। मगर इस साल इसमें बढ़ोतरी का अनुमान है और यह अनुमान आईएमएफ ने लगाया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के मुताबिक, साल 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद है। अगले साल 2022 में 8.5 फीसदी की दर से इसमें वृद्धि का अनुमान है।

आईएमएफ के वित्तीय मामलों के विभाग के उप निदेशक पाओलो मौरो ने एक संमेलन में कहा की पुनरुद्धार की ओर बढ़ने के साथ ही सार्वजनिक निवेश पर ध्यान केंद्रित करना भी महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से हरित निवेश पर, ताकि सुधार समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल हो सके। भारत का कर्ज लगभग 90 प्रतिशत के अनुपात (जीडीपी के मुकाबले) में है, और निवेशकों को यह संकेत देना महत्वपूर्ण है कि मध्यम अवधि में ऋण अनुपात में गिरावट आएगी। भारत की कोविड-19 महामारी की स्थिति में सुधार हो रहा है और हालात कुछ महीने पहले के मुकाबले बहुत अलग है। इस बात में कोई संदेह नहीं की सौभाग्य से संक्रमण के मामलों की संख्या घट रही है और टीकाकरण अधिक व्यापक हो रहा है।

अमेरिका के इस साल छह फीसदी और अगले साल 5.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है। IMF के अनुमानों के मुताबिक, चीन की अर्थव्यवस्था 2021 में आठ प्रतिशत और 2022 में 5.6 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती है। IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि उनके जुलाई के पूर्वानुमान की तुलना में 2021 के लिए वैश्विक वृद्धि अनुमान को मामूली रूप से संशोधित कर 5.9 प्रतिशत कर दिया गया है और 2022 के लिए यह 4.9 प्रतिशत पर जस का तस रहेगा। IMF के ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य (WEO) में भारत के वृद्धि अनुमानों को इस साल जुलाई में जारी अपने पिछले अनुमान पर स्थिर रखा गया है, हालांकि यह अप्रैल के अनुमानों के मुकाबले 1.6 फीसदी कम है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान है, जिसका मुख्यालय वाशिंगटन, डीसी में है, जिसमें 190 देश शामिल है। वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देने, वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने, उच्च रोजगार और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और गरीबी को कम करने के लिए काम कर रहे है। ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में मुख्य रूप से हैरी डेक्सटर व्हाइट और जॉन मेनार्ड कीन्स के विचारों से, यह 1945 में औपचारिक अस्तित्व में आया। 29 सदस्य देश और अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली के पुनर्निर्माण का लक्ष्य। यह अब भुगतान संतुलन की कठिनाइयों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकटों के प्रबंधन में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है।

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