x
लाइफस्टाइल

क्या है डिप्रेशन? कैसे पहचाने और दूर भगाएं,जानें सबकुछ


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

नई दिल्लीः डिप्रेशन एक मूड डिसऑर्डर है, जो व्यक्ति में लगातार उदासी और अरुचि की भावना का कारण बनता है. इसे नैदानिक अवसाद भी कहा जाता है. आप कैसा महसूस करते हैं, क्या सोचते हैं और कैसा व्यवहार करते हैं, इन सब पर डिप्रेशन का असर पड़ता है. इसकी वजह से भावनात्मक और शारीरिक समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं. डिप्रेशन में व्यक्ति को अपने दैनिक कार्य करने में भी परेशानी हो सकती है. कई बार तो व्यक्ति को ऐसा भी महसूस होने लगता है कि वह जी ही क्यों रहा है, वह जीने के लायक ही नहीं है. डिप्रेशन कोई साधारण सी भावनात्मक कमजोरी नहीं है, जिससे आसानी से बाहर निकला जा सके. डिप्रेशन से बाहर निकलने के लिए लंबे इलाज की आवश्यकता होती है. लेकिन आपको बिल्कुल भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है. कुछ दवाओं और साइकोथैरेपी की मदद से डिप्रेशन के पीड़ितों को बेहतर महसूस हो सकता है.

कैसे होता है डिप्रेशन?

हमारे दिमाग तक संदेश पहुंचाने के लिए कुछ न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं। इनमें सबसे अहम है सेरेटोनिन। यह हमारे मूड को भी रेग्युलेट करता है। इतना ही नहीं हमारे पाचन तंत्र के लिए भी यह दिमाग का संदेश पहुंचाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी कमी से डिप्रेशन की स्थिति बन सकती है। सेरेटोनिन की कमी से नींद में भी खलल पड़ता है। अमूमन दवा इसी को बढ़ाने के लिए दी जाती है।

डिप्रेशन का पूरी तरह इलाज मुमकिन

रातों की नींद उड़ जाए तो समझिए मामला गड़बड़ है। बड़ी बात यह है कि हर तरह के डिप्रेशन का पूरी तरह इलाज मुमकिन है। शुरुआत काउंसलिंग से हो सकती है और ज्यादा दिक्कत होगी तो शुगर और बीपी की तरह इसे दवा और लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ मैनेज किया जा सकता है। अगर लक्षणों पर ध्यान दें तो ज्यादातर बीमारियों को गंभीर होने से पहले रोका जा सकता है। डिप्रेशन भी हमारी ऐसी ही मानसिक परेशानी होती है। यह उदासी से किस तरह अलग है? कब डॉक्टर के पास जाएं, किन लक्षणों के आने के बाद इसे टालना खतरनाक हो सकता है, क्या इसकी दवा कभी बंद नहीं होती? ऐसे ही तमाम अहम सवालों के जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके दे रहे हैं लोकेश के.

सेरेटोनिन, डोपामाइन का भी है रोल

सेरेटोनिन के अलावा दूसरे न्यूरोट्रांसमीटर भी अहम काम करते है। ऐसा ही एक न्यूरोट्रांसमीटर है डोपामाइन। यह हमारे मिड ब्रेन से निकलता है। इसे हैपी हॉर्मोन भी कहते हैं। जब इस हॉर्मोन की कमी होने लगती है तो हम अमूमन उदास रहने लगते हैं। इसी तरह दूसरे न्यूरोट्रांसमीटर हॉर्मोन हैं जो हमारी भावनाओं को काबू में रखते हैं। जब इनके स्तर में कमी आने लगती है तब डिप्रेशन वाली स्थिति बन सकती है। दिमाग के किस भाग से ये हॉर्मोन निकल रहे हैं और इनमें कितनी कमी आ रही है, इस आधार पर ही डिप्रेशन के मरीज में लक्षण भी उभरते हैं।

ये हो सकते हैं कारण:जेनेटिक यानी परिवार में किसी को पहले हो चुका है। इसलिए ऐसे लोग सचेत रहें। कोई ऐसी घटना जिसके बाद लगे कि अब कुछ नहीं किया जा सकता। किसी करीबी के गुजर जाने से होने वाला खालीपन, जो भर न पाए। जॉब या बिजनेस में नुकासन के बाद ऐसा लगे कि अब मैं शायद इससे उबर नहीं पाऊंगा।

अगर चीजें न छुपाएं तो हालात बिगड़ने से पहले इलाज संभव

मान लें, किसी शख्स को डायबीटीज के बारे में पता चला। उसे दवा दी जाने लगी। किसी ने उसे दवा खाते हुए देख लिया तो उस शख्स का रिऐक्शन सामान्य था। हां, मुझे डायबीटीज है, दवा भी ले रहा हूं और लाइफस्टाइल में भी बदलाव किया है। जब शुगर दवा से काबू नहीं हो पाई तो इंसुलिन की हेवी डोज देनी पड़ी। तब भी उसने यही बताया कि शुगर लेवल बढ़ गया था, इसलिए इंसुलिन ले रहा हूं। आगे डोज कम हो जाएगी। लाइफस्टाइल को दुरुस्त करने वाले काम भी कर रहा हूं। इसका मतलब यह कि जब डायबीटीज होने या उसके बेकाबू होने पर उसे छुपाने की जरूरत महसूस नहीं होती तो डिप्रेशन या फिर उसके बाद अगर बाइपोलर डिसऑर्डर (जिसमें डिप्रेशन के साथ, मेनिया यानी बहुत तेज आवाज में अजीब बातें करने की परेशानी हो) हो जाए तो उसे क्यों छुपाने की कोशिश होती है? इस बारे में जागरूक होने की जरूरत है। सामान्य या गंभीर मानसिक बीमारियों में भी अगर चीजें न छुपाई जाएं तो हालत बिगड़ने से पहले ही इलाज हो सकता है। इसमें मरीजों के साथ परिवार के सदस्यों की भूमिका भी अहम होती है।

डिप्रेशन के लक्षण

  • उदासी, अशांति, खालीपन और निराशा का भाव.
  • छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन और निराशा के भाव आना.
  • सेक्स, हॉबी और खेल जैसे अधिकांश या सभी सामान्य गतिविधियों में रुचि खोना.
  • नींद में गड़बड़ी, अनिद्रा या बहुत अधिक सोना भी एक लक्षण है.
  • थकान और ऊर्जा की कमी महसूस होना, छोटे-छोटे कार्यों को भी पूरा करने में ज्यादा ऊर्जा लगना.
  • भूख कम लगना, वजन कम होना, खाने के लिए इच्छा बढ़ना और वजन बढ़ना.
  • चिंता और बेचैनी के साथ ही विद्रोही स्वभाव.
  • व्यक्ति की सोचने, बोलने और शारीरिक गतिविधिया धीमी होना.
  • स्वयं को तुच्छ समझना, हीन भावना आना, अपराधबोध होना पूर्व की असफलताओं के लिए स्वयं को जिम्मेदार ठहराना.
  • सोचने, ध्यान केंद्रित करने, निर्णय लेने और चीजों को याद रखने में परेशानी महसूस होना.
  • बार-बार मृत्यु का विचार आना, आत्महत्या के विचार आना और कोशिश करना.
  • बिना किसी कारण सिरदर्द और कमर दर्द महसूस होना.
  • डिप्रेशन बढ़ती उम्र का सामान्य हिस्सा नहीं है. इसे कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए. चिंताजनक यह है कि ज्यादातर बड़ी उम्र के लोगों में डिप्रेशन का निदान और उपचार नहीं होता है. वह मदद लेना भी नहीं चाहते हैं. वृद्ध वयस्कों में अवसाद के लक्षण अलग हो सकते हैं या हो सकता है वह स्पष्ट न हों.
  • याद रखने में समस्या होना या व्यक्तित्व में परिवर्तन होना.
  • थकान महसूस होना, भूख न लगना और नींद न आना.
  • बाहर जाने की बजाय घर पर ही रहने का मन करना.

डिप्रेशन के कारण

डिप्रेशन क्यों होता है, इसके कारण तो ठीक ज्ञात नहीं हैं. लेकिन कई अन्य मानसिक विकारों की तरह ही इसमें भी कई कारक शामिल हो सकते हैं, जैसे –

  • बायोलॉजिकल डिफ्रेंसेस – अवसाद ग्रस्त लोगों के दिमाग में फिजिकल परिवर्तन हो सकते हैं. इन परिवर्तनों का महत्व और कारण अब भी अनिश्चित हैं, लेकिन डिप्रेशन के कारणों की ओर इशारा करने में मदद कर सकता है.
  • ब्रेन केमिस्ट्री – न्यूरोट्रांसमीटर स्वाभाविक रूप से मस्तिष्क के रसायन होते हैं, जो संभवत: अवसाद में भूमिका निभाते हैं.
  • हार्मोन्स – शरीर में हार्मोन के संतुलन में परिवर्तन अवसाद का कारण बन सकता है. हार्मोन में इस तरह का परिवर्तन गर्भवास्था के कारण, प्रसव के कुछ हफ्तों या महीनों के बाद (Postpartum), थायराइड की समस्या, रजोनिवृत्ति (Menopause) या अन्य कारणों से हो सकता है.
  • पारिवारिक इतिहास – यदि आपके परिवार या खून के रिश्ते में कोई डिप्रेशन से पीड़ित रहा है तो आपके भी अवसादग्रस्त होने की आशंका है. शोधकर्ता अवसाद का कारण बनने वाले जीन की खोज कर रहे हैं.

डिप्रेशन से बचाव

डिप्रेशन से बचने का कोई निश्चित तरीका तो नहीं है, लेकिन निम्न कुछ तरीकों को अपना कर आप डिप्रेशन से बच सकते हैं –

  • तनाव को नियंत्रित करें. इससे आप अपने लचीलेपन और आत्मसम्मान को बढ़ा सकते हैं.
  • अपने दोस्तों और परिवार के संपर्क में रहें. खासतौर पर संकट के समय आपको बुरे दौर से निकालने में ये लोग मदद करते हैं.
  • डिप्रेशन का पहला लक्षण दिखने पर इसके और बिगड़ने से पहले जल्द से जल्द इलाज करवा लें.
  • लक्षणों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उचित इलाज प्रक्रिया को अपनाएं.

डिप्रेशन का इलाज

अवसाद से पीड़ित अधिकांश लोगों में दवाएं और मनोचिकित्सा (Psychotherapy) प्रभावी साबित होती हैं. आपके नियमित डॉक्टर या मनोचिकित्सक लक्षणों से राहत पाने के लिए आपको दवाएं दे सकते हैं. हालांकि, अवसाद पीड़ित कई लोगों को मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक और अन्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर को दिखाने से लाभ मिल सकता है. अगर आप गंभीर रूप से अवसाद में हैं तो आपको कुछ दिन अस्पताल में भर्ती रहने की आवश्यकता पड़ सकती है. यहा हो सकता है आपको लक्षणों में सुधार होने तक आउटपेशेंट ट्रीटमेंट प्रोग्राम में रहना पड़ सकता है.

कब और कैसे जाएं डॉक्टर के पास?

इसमें मरीज खुद डॉक्टर के पास जाने में सक्षम होता है, लेकिन नकारात्मक सोच की वजह से वह इसे टालता रहता है। इस स्थिति में वह पूरी तरह मना भी नहीं करता और खुद जाता भी नहीं। ऐसे में परिवार के सदस्य खुद ही डॉक्टर के पास जाने के लिए अपॉइंटमेंट लें। वे मरीज के लक्षणों को देखते हुए अपने जनरल फिजिशन या क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट के पास ले जाएं। फिजिशन भी धड़कनों को काबू करने यानी घबराहट आदि दूर करने के लिए दवा दे सकते हैं।

Back to top button