x
ट्रेंडिंगभारत

Eid-Ul-Adha : आज देशभर में मनाई जा रही बकरीद, बकरीद पर शैतान को पत्थर मारने की परंपरा, जानें इसका महत्व


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

नई दिल्ली – आज देशभर में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्योहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार जो ईद उल फितर के 70 दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन सुबह अल्लाह की इबादत के बाद जानवर की कुर्बानी दी जाती है और उसका गोश्त गरीब तबके के लोगों में बांट दिया जाता है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि इसमें कुर्बानी के बाद शैतान को पत्थर मारने की भी परंपरा होती है।

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक ईद-उल-अज़हा 12वें महीने की 10 तारीख को मनाई जाती है। इस्लाम मजहब में इस माह की बहुत अहमियत है। इसी महीने में हज यात्रा भी की जाती है। ईद-उल-फित्र की तरह ईद-उल-अज़हा पर भी लोग सुबह जल्‍दी उठ कर नहा धोकर साफ कपड़े पहनते हैं और मस्जिदों में जाकर नमाज़ अदा करते हैं। इस खास मौके पर ईदगाहों और प्रमुख मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की विशेष नमाज सुबह 6 बजे से लेकर सुबह 10.30 बजे तक अदा की जाएगी। साथ ही इस दौरान मुल्‍क और लोगों की सलामती की दुआ मांगते हैं। ईद के इस मुबारक मौके पर लोग गिले-शिकवे भुला कर एक-दूसरे के घर जाते हैं और ईद की मुबारकबाद देते हैं। इस ईद पर कुर्बानी देने की खास परंपरा है।

क्यों मारते हैं शैतान को पत्थर –
इस्लाम में हज यात्रा के आखिरी दिन कुर्बानी देने के बाद रमीजमारात पहुंचकर शैतान को पत्थर मारने की भी एक अनोखी परंपरा है। यह परंपरा हजरत इब्राहिम से जुड़ी हुई है। माना जाता है कि जब हजरत इब्राहिम अल्लाह को अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए चले थे तो रास्ते में शैतान ने उन्हें बहकाने की कोशिश की थी। यही वजह है कि हजयात्री शैतान के प्रतीक उन तीन खंभों पर पत्थर की कंकडियां मारते हैं।

जानें क्यों दी जाती है कुर्बानी –
इस्लाम मजहब में कुर्बानी को बहुत अहमियत हासिल है। यही वजह है कि ईद-उल-अज़हा के मुबारक मौके पर मुसलमान अपने रब को राजी और खुश करने के लिए कुर्बानी देते हैं। इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक एक बार अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम की आज़माइश के तहत उनसे अपनी राह में उनकी सबसे प्रिय चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया। क्‍योंकि उनके लिए सबसे प्‍यारे उनके बेटे ही थे तो यह बात हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे को भी बताई। इस तरह उनके बेटे अल्‍लाह की राह में कुर्बान होने को राज़ी हो गए और जैसे ही उन्‍होंने अपने बेटे की गर्दन पर छुरी रखी, तो अल्लाह के हुक्‍म से उनके बेटे की जगह भेड़ जिबह हो गया। इससे पता चलता है कि हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की मुहब्‍बत से भी बढ़ कर अपने रब की मुहब्‍बत को अहमियत दी। तब से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी करने का सिलसिला चला आ रहा है।

Back to top button