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टेकऑफ और लैंडिंग के वक्‍त डिम क्‍यों होती है प्लेन में लाइट्स

मुंबई – हमारे आसपास हर रोज कुछ ऐसी चीजे होती है जो काफी सारे रहश्यो से भरी हुयी होती है। लेकिन हम कभी भी उस पर ध्यान ही नहीं देते की आखिर ऐसा होता कैसे होगा? अपने आसपास आपने ऐसा देखा तो बहुत बार होगा लेकिन कभी इस बारें में जानने कि कोशिश नहीं की होगी। जैसे कि न्यूटन के पहले भी बहुत से लोगों ने सेब या कई तरह की चीजों को नीचे गिरते देखा होगा लेकिन इस बात पर प्रश्न किसी ने नहीं उठाए।

पहले के मुकाबले अब लोग फ्लाइट का ज्यादा इस्तेमाल करते है और टाइम बचाने के लिए फ्लाइट का सफर काफी आसान रहता है। आपने भी कई बार फ्लाइट में सफर किया होगा, लेकिन कभी आपने गौर किया है कि जब भी फ्लाइट को टेक-ऑफ किया जाता है, तब लाइट को डिम कर दिया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि फ्लाइट टेक आफ और लैंडिंग के वक्त लाइट्स डिम क्यों हो जाती है? तो चलिए आज हम पको इसके पीछे की वजह के बारे में बताते है। जिसे जानने के बाद अब भी चौंक जायेगे की आज तक हमने ये क्यों नहीं सोचा।

असल में विमान के टेक-ऑफ और लैंडिंग के समय दुर्घटना का ज्यादा जोखिम होता है। इसी कारण लाइट्स ऑफ करने के लिए कहां जाता है। जब भी कोई दुर्घटना होती है या कभी कोई इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ती है, तो यात्रियों को कोई तकलीफ ना हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है, इसीलिए जब भी लाइट चली जाती है तो रेडियम फ्लोरोसेंट संकेतों का इस्तेमाल किया जाता है ताकी यात्रियों को कोई तकलीफ ना हो। हमारी आखें रोशनी से अंधेरे या अंधेरे से रोशनी में एडजस्ट होने में 10 से 30 मिनट तक लेती है। लेकिन अगर लाइट डिम कर दी जाए एडजस्ट टाइम कम हो जाता है।

यात्रियों की सुरक्षा के लिए लाइट्स ऑफ रखना महत्वपूर्ण है। अगर कैबिन के अंदर रोशनी भरपूर मात्रा में होगी तो विंडो ग्लॉसेस के रिफ्लेक्शन की वजह से बाहर का कुछ भी दिखाई नहीं देता है। बता दे की बोइंग एयरलाइन के 2006 से 2017 के बीच के अनुभव के अनुसार, टेकऑफ के शुरूआती 3 मिनट के अंदर 13 प्रतिशत हादसे हुए है। लैडिंग के आठ मिनट पहले तक 48 प्रतिशत हादसे होते है।

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