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‘लापता लेडीज’ रिव्यू : कमाल का है किरण राव का डायरेक्शन ,भारत की असल छवि को पेश करतीं है फिल्म


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मुंबई – आमिर खान परफेक्शनिस्ट हैं ये हम सब जानते हैं, वो अपनी फिल्मों में जान लगा देते हैं, सालों देते हैं, और अब यही काम उनके प्रोडक्शन में भी हो रहा है, आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म लापता लेडीज में आमिर खान का टच साफ नजर आता है, डायरेक्टर किरण राव ने वैसा ही मैजिक क्रिएट किया है जिसके लिए आमिर जाने जातें हैं वो भी बिना बड़े सितारों, बड़े सेट, महंगे कॉस्ट्यूम के बिना किरण ने दिखा दिया है कि उन्होंने आमिर से परफेक्शन बड़े अच्छे से सीखी है और वो बॉलीवुड में और बहुत कुछ बड़ा और बेहतरीन कर सकती हैं.

कहानी

फिल्म ‘लापता लेडीज’ की कहानी शुरू होती है, बिहार के एक छोटे से गांव से, जहां से दीपक (स्पर्श श्रीवास्तव) अपनी नई नवेली दुल्हन फूल (नीतांशी गोयल) संग ट्रेन में ट्रैवल कर रहे हैं। दीपक ट्रेन के जिस कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे हैं उसमें कई और भी न्यूली वेडिंग कपल्स होते हैं। गांव के रिवाजों के अनुसार, ट्रेन के कम्पार्टमेंट में मौजूद सभी दुल्हनों के चेहरों पर घूंघट होता है। ट्रेन में बैठे-बैठे दीपक और फूल सो जाते हैं और जैसे ही स्टेशन आता है तो दोनों आनन-फानन में ट्रेन से उतरते हैं।

घूंघट की आड़ में बदल गई दुल्हन

कहानी साल 2001 में सेट घूंघट में ढकी दो नवविवाहिताओं की है। दोनों यात्रियों से खचाखच भरी ट्रेन में अगल-बगल बैठकर आ रही होती हैं। अपना स्‍ट्रेशन आने पर दीपक (स्‍पर्श श्रीवास्‍तव) सो रही अपनी पत्‍नी फूल कुमारी (नितांशी गोयल) को जगाकर स्‍टेशन पर उतारता है।दुल्‍हन उसके साथ उतर जाती है। घर पहुंचने पर पारम्परिक रस्मों के दौरान पता चलता है कि दुल्‍हन की अदला-बदली हो गई है। बदली दुल्‍हन देखकर दीपक और उसके स्‍वजन हड़बड़ा जाते हैं। यह दुल्‍हन अपना नाम पुष्‍पा (प्रतिभा रांटा) बताती है।उसे अपने ससुराल का पता ठीक से पता नहीं होता। परिवार अपनी असली बहू फूल की तलाश में जुटता है। फूल उधर दूसरे परिवार को देखकर सकते में आ जाती है। उसे अपने ससुराल के गांव का नाम तक पता नहीं होता। बस इतना याद होता है कि किसी फूल के नाम पर है।

किसी की खोई दुल्हन तो कोई बिछड़ा अपने पति से

घर आने के बाद जब दीपक और उसकी फैमिली दुल्हन के चेहरे से पल्लू हटाते हैं, तो उन्हें पता लगता है कि वो किसी और की दुल्हन सुषमा रानी /जया ( प्रतिभा रांटा) को लेकर आया है। अब दीपक अपनी पत्नी को तलाश करने निकल जाता है और दीपक की दुल्हन स्टेशन पर ही रहकर अपने पति का इंतजार करती हैं। अब सवाल ये है कि क्या दीपक अपनी पत्नी को ढूंढ लेगा और क्या सुषमा जो किसी गैर मर्द के घर में रह रही है, उसका पति उसे अपना पाएगा। अब ये जानने के लिए तो भई आपको पास वाले थिएटर तक जाने का कष्ट उठाना पड़ेगा।

एक्टिंग

फिल्म के तीनों एक्टर नए हैं. नितांशी गोयल ने फूल का किरदार निभाया है. उनकी मासूमियत आपका दिल जीत लेती है. ऐसा नहीं लगता कि वो नई कलाकार हैं. उनका बात करने का तरीका, चलने का तरीका, अपने पति की साइकिल के पीछे बैठने का तरीका, इतना परफेक्ट है कि आपको वो एक गांव की लड़की ही लगती हैं. प्रतिभा रांटा ने भी अपने किरदार में जान डाल दी है. वो भी इतनी परफेक्ट लगती हैं की आपको नहीं लगता कि एक्टिंग कर रही हैं. कब वो आपको कुछ सिखा जाती हैं आपको पता भी नहीं चलता.

कलाकारों ने बढ़ाई स्क्रिप्ट की रौनक

आम हिंदी फिल्‍मों की तरह यहां पर कोई खलनायक नहीं है। पुलिसकर्मी मनोहर भले ही भ्रष्‍ट और लालची है, लेकिन चरित्रहीन नहीं हैं। रवि किशन इस पात्र के लिए सटीक कास्टिंग हैं। वह अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। वह हर दृश्‍य के साथ अपना प्रभाव छोड़ते हैं,वहीं, नितांशी गोयल, प्रतिभा रांटा और स्पर्श श्रीवास्‍तव पहली फिल्‍म होने के बावजूद किरदार में रमे नजर आते हैं। कई धारावाहिक का हिस्‍सा रहीं प्रतिभा का पात्र चालाक होने के साथ बुद्धिमान भी है। वह अपनी कुशाग्रता से किस प्रकार अपने सपने के लिए राहें बना रही हैं, वह चौंकाता है।

किरण राव का फिर से राजतिलक

फिल्म ‘धोबी घाट’ के कोई 14 साल बाद एक तरह के सिनेमाई वनवास से लौटीं किरण राव का का ये दूसरा रचनात्मक राजतिलक है। किरण राव ने इस फिल्म के लिए अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई है, शायद फिल्म के मुनाफे में अपनी अलग भागीदारी के लिए। आमिर का इस फिल्म के लिए कहानी चुनने में अहम साथ उन्हें मिला, लेकिन फिल्म का निर्देशन जिस तरह से गांव, गली और नुक्कड़ों पर जाकर किरण राव ने किया है, वह भी कम आकर्षक नहीं है। फिल्म देखते समय बार बार गोविंद मूनिस निर्देशित ‘नदिया के पार’ के फ्रेम याद आते रहते हैं। वैसा ही सच्चा सा दिखता ग्राम्य जीवन और वैसे ही कहानी के किरदार। किरण राव को अपनी इस असल भारत जैसी दिखने वाली सिनेमाई दुनिया रचने में फिल्म के सिनेमैटोग्राफर विकास नौलखा ने उनकी खासी मदद की है। फिल्म का संगीत राम संपत ने दिया है। बहुत मधुर और मोहक संगीत तो नहीं है फिल्म का लेकिन, राम संपत ने कहानी के सुर साधने की कोशिश पूरी की है।

फिल्म का डायरेक्शन कैसा है?

किरण राव अपनी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों को बहुत गंभीरता और संजीदगी से उठाती रही हैं। इस फिल्म में भी पैट्रियार्की और महिलाओं के सामान्य मुद्दों को उन्होंने बहुत सिनेमाई अंदाज में दिखाने की कोशिश की है, इसमें वो सफल भी रही हैं। उन्होंने सभी एक्टर्स से उनका बेस्ट निकलवाया है।

फिल्म का म्यूजिक कैसा है?

फिल्म के गाने ऐसे नहीं हैं, जिस पर चर्चा की जाए। जो भी गाने हैं, वो सीन और सीक्वेंस के हिसाब से जंचते हैं।

पति की अपेक्षाओं पर खरी उतरीं किरण राव

फिल्‍म के निर्माता आमिर खान हैं। कहानी बिप्‍लब गोस्‍वामी ने लिखी है। स्‍क्रीनप्‍ले और संवाद स्‍नेहा देसाई का है। आमिर ने ही यह कहानी अपनी पूर्व पत्‍नी किरण को बनाने के लिए दी थी। उस उम्‍मीदों पर वह खरी उतरी हैं। फिल्‍म धोबी घाट के निर्देशन के करीब 13 साल बाद किरण राव ने निर्देशन में वापसी की है।

टीजर और ट्रेलर से आगे निकली फिल्म

फिल्म ‘लापता लेडीज’ के टीजर और ट्रेलर में जो बात इसकी निर्देशक किरण राव नहीं कह पाईं, वह बात फिल्म में बहुत अच्छे से बयां होती है। एक फूल जैसी किशोरी है। नाम भी उसका फूल ही है। ठीक से जवान हो पाने से पहले ही ब्याह दी गई है। सहालग जोर की है तो लाल चुनरी पहने ससुराल को निकली ब्याहताओं की बसों, ट्रेन में तादाद भी बहुत दिखती है। और, इसी लाली में जित देखूं तित लाल जैसे भ्रमजाल में दो दुल्हनें बदल जाती हैं। कहानी शुरू में महज एक गलतफहमी की लगती है। लेकिन, जैसे जैसे इसमें लुटेरी दुल्हनों और बेबस दुल्हनों की कहानी घुलती है, रूह अफजा सा दिखने वाला कहानी का ये शरबत मोदी नगर की जैन शिकंजी बनने में देर नहीं लगाता। बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें उनकी सोच के हिसाब से जिंदगी जीने देने के मूलमंत्र पर आधारित फिल्म ‘लापता लेडीज’ मौजूदा दौर के हिंदी सिनेमा में उस कड़ी को मजबूत करती है, जिसके जरिये सिनेमा का समाज से रिश्ता अब तक बना हुआ है।

फिल्म में असली जान डाली रवि किशन ने

सोशल मीडिया पर कोई 10 लाख फॉलोअर्स रखने वाली किशोरी नितांशी गोयल इस फिल्म की असल हीरोइन हैं। फूल उनके किरदार का नाम है और वह दिखती भी फूल सी ही मासूम हैं। खोइंचा वाले प्रकरण से लेकर छोटू के साथ वाले सारे दृश्यों में उनका काम लाजवाब है। कलाकंद बनाकर अपनी माई को प्रसन्न करने के प्रसंग में नितांशी के चेहरे की दमक देखने लायक है। उनके साथ फिल्म में प्रतिभा रांटा भी है। बेहद खूबसूरत इस युवती के लिए भी हिंदी सिनेमा में आने वाले समय में अच्छे मौके बनते दिखते हैं। पढ़लिखकर वैज्ञानिक बनने की चाहत रखने वाली और दकियानूसी विचारों वाले एक परिवार में बेटी को बोझ समझने की मानसिकता को चुनौती देने वाली युवती के किरदार में प्रतिभा ने दर्शकों का दिल जीत लिया है। स्पर्श श्रीवास्तव दोनों ‘लापता लेडीज’ के बीच पेंडुलम से डोलते हैं और उनकी लाचारी फिल्म की रफ्तार बनाए रखने के काम आती है। लेकिन, फिल्म का असल पोटैशियम हैं इसमें पुलिस इंस्पेक्टर (पुलिस निरीक्षक) बने रवि किशन। उनका पान खाकर संवाद बोलने का अंदाज निराला है और फिल्म के क्लाइमेक्स में जब वह एक बेटी को उसका आसमान नापने के लिए मुक्त करते हैं, तो दिल जीत ही लेते हैं। छोटू बने सतेंद्र सोनी और हवलदार दुबेजी के किरदार में दुर्गेश कुमार फिल्म में हास्य के छींटे लगातार लगाते रहते हैं।

क्यों देखें फिल्म?

किरण राव और आमिर खान बेहतरीन स्क्रीनप्ले-डॉयलॉग्स और एक बेहद ही नई कहानी और किरदारों के साथ दिल को छू जाने वाली फिल्म लेकर आए हैं। इस फिल्म से ना सिर्फ मनोरंजन बल्कि कई मैसेज भी मिलते हैं। एक नई कहानी, नए कलाकार, बेहतरीन एक्टिंग और शानदार डायलॉग्स के लिए फिल्म को देखना चाहिए। फिल्म ‘लापता लेडीज’ को4 स्टार।

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