नई दिल्ली – देश भर में कोरोना का विस्तार लगातार जारी है। अब मामले गांव में भी पहुंच चुके है। हालांकि पिछले कुछ दिनों में कोरोना के नए मामले में मामली कमी जरूर आया है। लेकिन, मौत का आंकड़ा चिंताजनक है। इस बीच एम्स/आईसीएमआर-कोविड-19 नेशनल टास्क फोर्स/ज्वाइंट मॉनिटरिंग ग्रुप, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने एडल्ट कोरोना रोगियों के इलाज के लिए बनी क्लिनिकल गाइडलाइन में बदलाव किया है।
साथ ही ICMR ने कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को हटा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड-19 संबंधी आईसीएमआर- राष्ट्रीय कार्यबल की बैठक में सभी सदस्य इस पक्ष में थे कि कोविड-19 के वयस्क मरीजों के उपचार प्रबंधन संबंधी चिकित्सीय दिशा-निर्देशों से प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को हटाया जाना चाहिए, क्योंकि यह प्रभावी नहीं है और कई मामलों में इसका अनुचित रूप से इस्तेमाल किया गया है।
AIIMS/ICMR-COVID-19 National Task Force/Joint Monitoring Group, Ministry of Health & Family Welfare, Government of India revised Clinical Guidance for Management of Adult #COVID19 Patients and dropped Convalescent plasma (Off label). pic.twitter.com/Dg1PG5bxGb
— ANI (@ANI) May 17, 2021
विशेषज्ञों का कहना है कि जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है, तो उसके शरीर में वायरस से लड़ने के लिए रक्त में एंटीबॉडी का निर्माण होता है। एंटीबॉडी वायरस के संक्रमण को नष्ट करने का काम करती है। कई मामलों में देखा गया है कि शरीर में एंटीबॉडी बनने के बाद वायरस नष्ट हो गए। संक्रमित व्यक्ति जब स्वस्थ हो जाता है, तो व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी बनती है। कोरोना निगेटिव आने के 15 दिनों बाद व्यक्ति रक्त दान यानी प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। एंटीबॉडी के रक्त के प्लाज्मा की मदद से संक्रमित व्यक्ति का इलाज किया जाता है।