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‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर रिव्यु‘ : रणदीप हुड्डा ने सावरकर के रोल में खुद को झोंका,जानें कैसी है फिल्म


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मुंबई – वीर सावरकर की मराठी भाषा में लिखी मशहूर कविता की कुछ पंक्तियों का ये हिंदी अनुवाद है. ये पूरी कविता आपको भावुक कर देती है. मुझे याद है, मूल्य शिक्षा की क्लास में हम सब स्टूडेंट मिलकर लगभग हर हफ्ते इस कविता का वाचन करते थे. और लगभग 7 से 8 मिनट के इस कविता वाचन के दौरान आखिर में हमारी आंखें नम हो जाती थीं. सावरकर की वो उलझन सीधे हमारे दिल तक पहुंच जाती थी. लेकिन रणदीप हुड्डा की 3 घंटे चली ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ देखने के बावजूद न तो आंखें भर आईं, न ही दिल भारी हुआ और न ही रोंगटे खड़े हुए.

कहानी क्या है?

विनायक दामोदर सावरकर की के सिर से बचपन में ही मां का साया उठा जाता है. जब उन्होंने युवावस्था में प्रवेश किया तब उनके पिता ‘दामोदर राव सावरकर’ की एक महामारी में मौत हो गई. मरने से पहले उन्होंने अपने बेटे विनायक को ये चेतवानी दी थी कि बेटा अंग्रेज बहुत बड़े हैं और क्रांति में अब कुछ नहीं बचा है, तुम ये सब छोड़ दो. लेकिन विनायक ने ठान लिया था कि वो ‘क्रांतिकारी’ ही बनेंगे. उन्होंने ‘फर्ग्युसन कॉलेज’ में ही ब्रिटिशों की नजरों से बचकर ‘अभिनव भारत सोसाइटी’ की शुरुआत की. उनके हर कदम पर बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर ने उनका साथ दिया. छोटे भाई का लंदन जाकर बैरिस्टर बनने का सपना पूरा हो इसलिए गणेश ने उनकी शादी के लिए ऐसा ससुराल ढूंढा जो उनके विदेश जाने के लिए पैसों की मदद करे. देश से विदेश और विदेश से जेल, जेल से कालापानी और आखिरकार सालों बाद घर. आगे की कहानी जानने के लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी.

कैसी है फिल्म?

फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ देखने के बाद ऐसे लगता है कि आप ‘बायोपिक’ नहीं बल्कि कोई ‘सुपरहीरो’ की कहानी सुन रहे हो, जिसने ‘चापेकर बंधू, कान्होजी आंग्रे से लेकर भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा और सुभाषचंद्र बोस सबको इस लड़ाई में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. ये फिल्म आपके दिमाग में ये नरेटिव सेट करने की कोशिश करती है कि इस देश को आजादी सिर्फ विनायक दामोदर सावरकर की वजह से मिली, जिससे आप बिल्कुल भी सहमत नहीं होंगे. एक्टिंग में अपना जलवा दिखाने वाले रणदीप हुड्डा बतौर डायरेक्टर आपका समाधान नहीं कर पाते.

‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ का ट्रेलर

अपने किरदारों में डूब जाने के लिए चर्चित एक्टर रणदीप हुड्डा का इस फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ से काफी जुड़ाव रहा है। उन्होंने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के अलावा इसके डायरेक्शन व प्रॉडक्शन का काम भी संभाला है। साथ ही उन्होंने उत्कर्ष नैथानी के साथ मिलकर इसकी कहानी भी लिखी है। बतौर डायरेक्टर रणदीप ने फिल्म पर काफी मेहनत की है। करीब तीन घंटे लंबी फिल्म शुरुआत में आपको इसके किरदारों के साथ जोड़ती है। वहीं फिल्म का इंटरवल एक बेहद रोचक मोड़ पर होता है। हालांकि इंटरवल के बाद जरूर कहानी थोड़ी बोझिल हो जाती है, लेकिन जल्द ही यह फिर से पटरी पर लौट आती है।

निर्देशन

फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ से रणदीप हुड्डा ने डायरेक्शन की दुनिया में एंट्री की है. वो इस फिल्म के लेखक और प्रोड्यूसर भी हैं. इस फिल्म में कुछ ऐसे सीन दिखाए हैं जो सिर्फ सावरकर के बारे में जानकारी रखने वाले लोग ही समझ सकते हैं. फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान कई बार ऐसे हुआ कि साथी पत्रकार बीच फिल्म के सीन को लेकर आपस में बात करने लगे कि ये सीन क्यों दिखाया गया, इसके पीछे की वजह क्या थी. दरअसल, कुछ साल पहले मुझे मेरे एडिटर ने कहा था कि आप जब कोई भी खबर लिखा करें, तो वो ये समझकर लिखिए कि सामने वाला इस विषय से पूरी तरह से अनजान है और इस खबर को पढ़ने के बाद उन्हें उनके हर सवालों के जवाब मिले. लेकिन रणदीप की फिल्म इन सवालों के जवाब नहीं देती, बल्कि देखने वालों के मन में ही ये नए सवाल पैदा करती है.

एक्टिंग

फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ में सबसे अच्छा क्या है? ये सवाल पूछा जाए तो मेरा जवाब होगा ‘कलाकारों की एक्टिंग’ हमेशा की तरह रणदीप हुड्डा विनायक दामोदर सावरकर के रूप में छा गए हैं. हर ऐज गैप के हिसाब से रणबीर की बॉडी का ट्रांसफॉर्मेशन, कपड़े पहनने का रंग-ढंग सब कुछ उन्होंने बदल दिया है. जिस तरह से अपनी बीवी यमुना बाई को समझाते हुए सावरकर कहते हैं कि अब अपने घर को आग लगाकर हमें दूसरों के घर में उजाला देखना होगा..इस सीन में रणदीप ने बेमिसाल एक्टिंग की है. रणबीर की बेमिसाल एक्टिंग को साथ मिला है अमित सियाल का. दोनों की एक्टिंग दिल जीत लेती है. अंकिता लोखंडे के किरदार को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं है. राजेश खेरा ने भी महात्मा गांधी के किरदार को न्याय देने की पूरी कोशिश की है.

कौन सी बातें हजम नहीं हुईं?

इस फिल्म में महात्मा गांधी को लगभग एक ‘विलेन’ की तरह पेश किया गया है, जो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता.महात्मा गांधी ही नहीं बल्कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के लिए ‘गोरा साहब के बाद आने वाला ब्राउन साहब’, ‘सिलेक्ट प्राइम मिनिस्टर’ जैसे तंज कसे गए हैं. लड़कियों के कंधों हाथ रखकर खड़े गांधी या फिर मॉउंटबैटन की पत्नी के साथ वायरल होने वाली महात्मा गांधी और नेहरू की तस्वीरें फिल्म में शामिल की गई हैं. एक का महत्व दिखाने के लिए दूसरे को नीचा दिखाना सही नहीं लगता. यही वजह है कि ये फिल्म देखने से अच्छा होता मैं फिर एक बार मेरी स्कूल की किताबें पढ़ती, जहां हमारे देश के इतिहास को सुनहरा बनाने की कोशिश करने वाले हर एक के बारे में बड़े ही सम्मान के साथ लिखा गया है.

वीर सावरकर के बारे में ऐसी कई मजेदार और अनसुनी कहानियां

वैसे कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता, बाकियों के अंदर की खामियां ढूंढ़ने की जगह अगर फिल्म में सावरकर के गुणों के साथ उनकी कुछ खामियां भी दिखाई जातीं तो ऑडियंस उनसे ज्यादा करीब महसूस करती. क्योंकि ‘हे समंदर तुम घमंड मत करो, मेरी भारत माता अबला नहीं है. तुम भूल गए हमारे ऋषि अगस्त्य ने तुम्हारे साथ क्या किया था? उन्होंने क्रोधित होकर एक सांस में तुम्हारा सारा पानी पी लिया था.’ कहते हुए सीधे समंदर को धमकी देने वाले स्वातंत्र्य वीर सावरकर के बारे में ऐसी कई मजेदार और अनसुनी कहानियां हैं. जो देखना लोग शायद ज्यादा पसंद करते, लेकिन रणदीप हुड्डा ने उन्हें ‘सुपरहीरो’ बनाने के चक्कर में ये मौका खो दिया है.

फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ की सबसे कमजोर कड़ी इसके सहायक कलाकारों की कास्टिंग

फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ की सबसे कमजोर कड़ी इसके सहायक कलाकारों की कास्टिंग हैं। गांधी, नेहरू और जिन्ना की भूमिका निभाने वाले कलाकार बिल्कुल भी गांधी, नेहरू और जिन्ना जैसे नहीं लगते हैं। फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर पराग मेहता ने फिल्म के मुख्य कलाकारों के अलावा बाकी कलाकारों की कास्टिंग ऐसी की है जिनका उस दौर के स्वतंत्रता सेनानियों से मेल नहीं खाता है। फिल्म की शूटिंग अधिकतर सेट्स पर ही हुई है और ये सेट वास्तविकता के करीब लगते हैं। इस मामले में सेट डिजाइनर नीलेश वाघ का काम काबिले तारीफ है। फिल्म का संगीत औसत है। देशभक्ति पर बनी फिल्म में कम से कम एक गाना ऐसा जरूर होना चाहिए था जिसे सुनकर जोश आ जाए। लेकिन इस फिल्म में ऐसा कोई गीत नहीं है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर जरूर फिल्म के दृश्यों को प्रभावी बनाने में सहायक साबित हुए है। अरविंद कृष्ण की सिनेमैटोग्राफी कमाल की है उन्होंने उस कालखंड को परदे पर बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया है। कमलेश कर्ण और राजेश पांडे की एडिटिंग इंटरवल से पहले थोड़ी सी सुस्त है, लेकिन इंटरवल के बाद उनकी यह कमी नहीं अखरती है। कॉस्ट्यूम डिजाइनर सचिन लोवलेकर ने उस काल खंड के हिसाब से कलाकारों की वेशभूषा अच्छे से डिजाइन की है।

‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ मूवी रिव्यू

सावरकर को उस दौरान आजादी के आंदोलन के मुख्य नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। अंग्रेजों को उन्हीं के दांवपेंचों से हराने का हुनर सीखने की खातिर सावरकर कानून की पढ़ाई करने की लंदन पहुंच गए। यहां श्याम जी कृष्ण वर्मा के इंडिया हाउस में लंदन में मौजूद भारतीय क्रांतिकारी इकट्ठा होते थे। उनके सहयोग से सावरकर ने अपने संगठन के सदस्यों के लिए हथियार जुटाए व बम बनाने का तरीका सीखा। उन्हीं के संगठन से जुड़े मदन लाल धींगड़ा ने लंदन में ब्रिटिश सीक्रेट सर्विस के हेड कर्जन वायली को खुलेआम गोली मारकर सनसनी फैला दी। इस दुस्साहसिक घटना के बाद सावरकर को गिरफ्तार करके भारत भेज दिया गया और उन्हें दोहरी उम्रकैद की सजा देकर काला पानी यानी अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर भेज दिया गया, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां से कोई वापस नहीं लौटता। इससे आगे की कहानी जानने के लिए आपको सिनेमाघर जाना होगा।

कैसा है फिल्म का म्यूजिक?

जैसा फिल्म का टॉपिक है, गाने भी उसी हिसाब से रखे गए हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि फिल्म में कुछ झूमने वाले देशभक्ति गाने होंगे तो ऐसा नहीं है। फिल्म के अंत में एक गाना जरूर आता है जो थोड़ा अलग और मराठी फ्लेवर वाला है।

फाइनल वर्डिक्ट, देखें या नहीं?

भारत में बहुत से स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं, जिनके बारे में अभी भी बहुत कम जानकारी है। वीर सावरकर के नाम की चर्चा तो हमेशा से थी, लेकिन इनके बारे में आम जनमानस को ज्यादा जानकारी नहीं थी। इस फिल्म के जरिए आपको उनके बारे में सब कुछ जानने का मौका मिलेगा। देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने जो कष्ट और यातनाएं झेलीं, उसके बारे में सभी को जानना चाहिए।अगर आपको सावरकर के त्याग और समर्पण को जानना हो, तो इस फिल्म के लिए बिल्कुल जा सकते हैं। देश में चुनाव का माहौल है, इस फिल्म में कई ऐसे संवाद हैं, जो कई राजनीतिक पार्टियों को खटक सकते हैं, इसलिए कुछ लोग इसे प्रोपेगैंडा फिल्म भी समझ सकते हैं।

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