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नैनोप्लास्टिक बन सकता है हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण -जानें


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नई दिल्लीः आम जन जीवन में प्लास्टिक का प्रयोग बहुत अधिक हो रहा है। यह चिकित्सा और उपचार सहित घरेलू उपकरणों में भी इसका प्रयोग बढ़ा है। उपयोग किए गए ज्यादातर प्लास्टिक को उपभोक्ताओं द्वारा एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। यह पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बन गई है। साथ ही, यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का भी कारण बन गया है। हाल में की गई स्टडी बताती है कि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण (Microplastics and nanoplastics health hazards) भी बन सकता है।

नैनोप्लास्टिक बन सकता है हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण

हर दिन बड़ी संख्या में प्लास्टिक को फेंक दिया जाता है। ये प्लास्टिक सूक्ष्म से नैनो आकार में टूट जाते हैं, जो पर्यावरण और मनुष्य दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। माइक्रोप्लास्टिक्स शब्द प्लास्टिक के टुकड़ों को संदर्भित करता है, जो डायमीटर 0.5 मिमी से छोटे होते हैं। यह लगभग चावल के दाने के बराबर होता है।नैनोप्लास्टिक्स बहुत छोटे होते हैं। यह केवल 100 नैनोमीटर या उससे भी कम होता है। कई उत्पादों यहां तक कि नल के पानी में भी माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक मौजूद होते हैं। एक नए अध्ययन से पता चलता है कि आप अपने पानी को उबालकर पीने से माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा को कम कर सकते हैं।

गंभीर स्वास्थ्य समस्या का बन सकता है कारण

एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हालिया अध्ययन के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क से अलग-अलग प्रकार के विषाक्त प्रभाव उत्पन्न होते हैं। इनमें ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, मेटाबोलिक सिंड्रोम, इम्युनिटी रिएक्शन, न्यूरोटॉक्सिसिटी जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। साथ ही यह डेवलपमेंटल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ को भी प्रभावित करता है।यह असामान्य अंग विकास और कैंसर के जोखिम को भी बढ़ा सकता है।

कौन हैं माइक्रोप्लास्टिक्स

माइक्रोप्लास्टिक्स विभिन्न स्रोतों से आ सकते हैं, जिनमें बड़े प्लास्टिक के टुकड़े हैं, जो टूट गए हैं। प्लास्टिक की चीज़ों में उपयोग किये जाने वाले रेजिन पेलेट्स, माइक्रोबीड्स भी हो हो सकते हैं। माइक्रोबीड्स स्वास्थ्य और सौंदर्य उत्पादों में उपयोग किए जाने वाले माइक्रो प्लास्टिक हैं।

माइक्रोप्लास्टिक के नुकसान

मीठे पानी के इकोसिस्टम में माइक्रोप्लास्टिक फ़ूड वेब को बाधित कर सकता है। यह एक्वेटिक एनिमल के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। माइक्रोप्लास्टिक्स मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं। ये फ़ूड चेन में प्रवेश कर सकते हैं। यह संभावित रूप से उन लोगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो दूषित सी फ़ूड या दूषित पानी का सेवन करते हैं।

पानी को उबालना है जरूरी

शोधकर्ताओं ने पाया कि नल के पानी से यदि नैनोप्लास्टिक्स हटाना है, तो उसे उबालना पहला कदम है। कैल्शियम या मैग्नीशियम जैसे मिनरल से भरपूर हार्ड पानी को उबालने से चाक जैसा अवशेष बनता है, जिसे लाइमस्केल या कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) के रूप में जाना जाता है, जो प्लास्टिक को फंसा सकता है। फिर उस ठोस को मानक कॉफी फिल्टर या स्टेनलेस स्टील फिल्टर से पानी से निकाला (Microplastics and nanoplastics health hazards) जा सकता है।

इंफ्लेमेशन का खतरा

इन मरीजों के प्लेग में इंफ्लेमेशन के बायोमार्कर्स भी पाए गए, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि माइक्रोप्लास्टिक की वजह से शरीर में इंफ्लेमेशन की समस्या भी बढ़ सकती है। हालांकि, इस स्टडी में यह भी कहा गया कि माइक्रोप्लास्टिक कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का कारण नहीं है बल्कि, एक लिंक है। इसलिए इसके अलावा, अन्य फैक्टर्स भी हैं, जो दिल की बीमारियों और स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं। हालांकि, माइक्रोप्लास्टिक इतने छोटे होते हैं कि वे ब्लड के जरिए शरीर के किसी भी हिस्से में जा सकते हैं। हालांकि, इसके अलावा और भी कई कारण हैं, जो हार्ट अटैक और स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं।

कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के कारण-

खाने में प्रोसेस्ड और ऑयली फूड की मात्रा ज्यादा होना
सेडेंटरी लाइफस्टाइल, यानी फिजिकल एक्टिविटी काफी कम होना
खाने में शुगर या नमक की मात्रा ज्यादा होना
ब्लड शुगर लेवल अधिक होना
वजन ज्यादा होना

क्या है यह स्टडी?

हाल ही में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसन में पब्लिश हुई एक स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों के ब्लड में microplastics पाए गए, उनमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। इन लोगों में मृत्यु का खतरा भी बाकी लोगों से ज्यादा रहता है।इस स्टडी के लिए 257 मरीजों की आर्टरीज से प्लेग का विश्लेषण किया गया। इस प्लेग को उन मरीजों की आर्टरीज से प्लेग रिमूव करने के लिए सर्जरी के जरिए निकाला गया था। इन मरीजों में से 50 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिनके शरीर में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। इन मरीजों पर 34 महीने निगरानी रखी गई और पाया गया कि जिन मरीजों के प्लेग में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए, उनमें दूसरों की तुलना में हार्ट अटैक, स्ट्रोक या प्रीमेच्योर डेथ का खतरा काफी ज्यादा था।

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