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लोकसभा चुनाव 2024:AI क्यों है बहुत बड़ी चुनौती-जानें


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नई दिल्लीः पूरी दुनिया में रिपोर्ट आ रही हैं, कि एआई टूल चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में सरकार और एआई टूल बनाने वाली कंपनियां एआई को लेकर बेहद सतर्कता बरत रही हैं। इसे लेकर गूगल भी बेहद फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। यही वजह है के गूगल जेमिनी एआई को लेकर कोई कंट्रोवर्सी न बनें, क्योंकि हाल ही में गूगल जेमिनी ने पीएम मोदी को लेकर एक आपत्तिजनक बयान दिया था, जिससे विवाद पैदा हो गया था।

जेमिनी टूल पर लगे कई प्रतिबंध

बता दें कि इस साल भारत में आम चुनाव होने हैं। गूगल ने दावा किया है कि उसकी तरफ से यूजर्स को सही जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे चुनाव में किसी को फायदा न मिल सके। इसी सतर्कता के मद्देजनर गूगल ने साफ कर दिया है कि उसका जेमिनी एआई टूल चुनाव से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब नहीं देगी। इसके अलावा गूगल ने जेमिनी टूल पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं।

चुनाव में AI: वोटरों को लुभाने का नया हथियार?

AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जिसे हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहते हैं. ये एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को सोचने और समझने की क्षमता देती है. चुनाव में एआई का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. राजनीतिक दल वोटर्स को लुभाने के लिए इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.एआई राजनीतिक दलों को वोटरों को बेहतर तरीके से समझने और उन्हें आकर्षित करने में मदद करता है. चुनाव प्रचार अभियान को ज्यादा प्रभावी और असरदार बना सकता है. वोटों की गिनती को सीधे देखने (रियल-टाइम) जैसी चीजें भी एआई की मदद से हो सकती हैं. हालांकि नुकसान ये है कि एआई का इस्तेमाल गलत जानकारी फैलाने के लिए भी किया जा सकता है. जैसा कि फेक वीडियो बनाने वाली दीपफेक टेक्नॉलोजी से हो रहा है.

फेक न्यूज फैलने का डर

रिपोर्ट की मानें, तो जब गूगल जेमिनी एआई टूल से चुनाव या फिर सरकार से जुड़ा कोई सवाल किया जाता है, तो वो मौन हो जाता है। दरअसल गूगल का कहना है कि वो फेक न्यूज और गलत जानकारी को लेकर देने से बचना चाह रहा है। इसी की वजह से ऐसे किसी भी सवाल को जवाब नहीं दे रहा है। बता दें कि अमेरिकी चुनाव में भी फेक न्यूज फैलने की कई रिपोर्ट मिली थी। वही आज के दौर पर एआई और मशीन लर्निंग टूल की मदद से किसी का डीपफेक वीडियो बनाया जा रहा है.

चुनाव में AI का कहां-कहां हुआ इस्तेमाल

हाल ही में पाकिस्तान के आम चुनाव में एआई का इस्तेमाल देखने को भी मिला. इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने उनके नए भाषणों में उनकी आवाज की कॉपी करने के लिए एआई का इस्तेमाल किया, जबकि खुद इमरान खान जेल में बंद थे. इसी साल जनवरी में बांग्लादेश के चुनाव में उल्टा हुआ. वहां विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार समर्थक लोगों ने गलत काम के लिए एआई का इस्तेमाल किया. विपक्ष को नीचा दिखाने के लिए बनावटी वीडियो (दीपफेक) बनाए.

चीन और रूस पर लगा ये आरोप

चीन और रूस पर ये आरोप लगा है कि वो दूसरे देशों के चुनाव को प्रभावित करने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं, खासकर ताइवान में. जनवरी 2024 में ताइवान के चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर उम्मीदवार त्सई इंग-वेन के बारे में झूठे यौन आरोपों वाली एक 300 पन्नों की ई-बुक वायरल की जा रही थी.पहले तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि आजकल सोशल मीडिया पर रिपोर्टिंग के जमाने में कोई फर्जी किताब क्यों छापेगा. फिर जल्द ही इंस्टाग्राम, यूट्यूब, टिकटॉक और दूसरे प्लेटफॉर्म पर ये देखने मिला कि AI की मदद से बनाए गए अवतार उस किताब के अलग-अलग हिस्से पढ़ रहे हैं. ताइवानी संस्था डबलथिंक लैब के प्रमुख शोधकर्ता टिम निवेन ने अपनी जांच में बताया कि ये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का काम है.

चुनाव कैसे प्रभावित कर सकता है AI

दुनियाभर के बड़े संगठन मानते हैं कि अगले दो सालों में सबसे बड़ा खतरा फेक न्यूज है जिन्हें बनाने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. ये फेक न्यूज लोगों को आपस में लड़ा सकते हैं. इस टेक्नॉलजी से बड़े-बड़े लोग भी चिंतित हैं, जैसे गूगल के पूर्व CEO और OpenAI के फाउंडर. उनका कहना है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज को रोकने के लिए काफी नहीं किया जा रहा है, जिससे आने वाले चुनाव काफी गड़बड़ हो सकते हैं.पहले हम अखबारों और टीवी से खबरें पढ़ते-देखते थे. अब फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसी चीजों पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लिया जाता है. इन पर फेक न्यूज यानी झूठी खबरें बहुत तेजी से फैलती हैं. एक सर्वे में 87 फीसदी लोगों ने माना है कि ये फेक न्यूज ही चुनाव को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं.ये नई टेक्नॉलजी हमारी पसंद और नापसंद को समझकर ऐसी खबरें दिखा सकती है जिन्हें हम सच मान लेंगे. इसका इस्तेमाल किसी नेता की छवि खराब करने के लिए भी किया जा सकता है. उनके गलत बयान तैयार किए जा सकते हैं या उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा सकता है.

क्या निष्पक्ष चुनाव संभव है?

ये फेक न्यूज सिर्फ लिखावट में ही नहीं बल्कि वीडियो और आवाज में भी हो सकती है, जिन्हें असली समझना बहुत मुश्किल है. इस टेक्नॉलजी की वजह से चार तरह की दिक्कतें ज्यादा हो गई हैं- पहले से कहीं ज्यादा फेक न्यूज फैलाई जा सकती हैं, ये फेक न्यूज इतनी अच्छी बनाई जा सकती हैं कि असली लगें, हर किसी को उनकी पसंद के मुताबिक फेक न्यूज दिखाई जा सकती हैं और ऐसे फेक वीडियो बन सकते हैं जो सच लगें, पर असल में हों ही नहीं.चुनाव के समय जनता को लुभाने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बाढ़ आ जाती है. ये एक गंभीर विषय है. जानकारों का कहना है कि इस तरह की चीजों का गलत इस्तेमाल चुनाव को गलत दिशा में ले जा सकता है. चुनाव में उम्मीदवार के हार-जीत के नतीजों पर बड़ा असर पड़ सकता है. अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है, पर चिंता है कि भविष्य में AI का इस्तेमाल मतगणना में गड़बड़ी करने के लिए भी किया जा सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या निष्पक्ष चुनाव करा पाना संभव हो

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