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पोलियो पॉल का 78 साल की उम्र में निधन,7 फीट लंबा ‘लोहे का फेफड़ा’लेकर जीता था ये आदमी


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नई दिल्ली – पोलियो एक खतरनाक वायरस से होने वाली बीमारी है जिसे भारत ने हरा दिया है. पर दुनिया में पोलियो के मामले सामने आते रहते हैं. पोलियो संक्रमित लोगों के शरीर को ये वायरस इतना ज्यादा नुकसान पहुंचा देता है, कि उनकी जिंदगी नर्क सी हो जाती है. अमेरिका के रहने वाले एक व्यक्ति ने पोलियो के साथ 70 सालों तक जीवन बिताया है. पर अब जाकर उसे अपनी दर्दभरी जिंदगी से छुटकारा मिल गया है. पोलियो पॉल के नाम से प्रसिद्ध इस व्यक्ति की मौत हो गई है. वो एक मशीन के भरोसे जिंदा था, जिसे आयरन लंग्स कहते हैं. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि उसके सीने में असल के इंसानी फेफड़े नहीं, बल्कि लोहे के फेफड़े थे, जिसने उसे जीवित रखा था. हालांकि, वो खुद उन फेफड़ों में कैद था.

लोहे के फेफड़े की मदद से जीने वालेपॉल अलेक्जेंडर का निधन

70 साल तक आयरन लंग यानी लोहे के फेफड़े की मदद से जीने वालेपॉल अलेक्जेंडर का निधन हो गया है. 78 साल की उम्र में आखिरी सांस लेने वाले अलेक्जेंडर को पोलियो पॉल के नाम जाना जाता था. इसकी वजह ये थी कि पॉल अलेक्जेंडर को 1952 में पोलियो हो गया था, जब वह सिर्फ छह साल के थे. पोलियो के लक्षण विकसित होने के बाद उन्हें टेक्सास के अस्पताल ले जाया गया. उनके फेफड़े खराब होने की वजह से उनको लोहे के बने बॉक्स ( आयरन लंग) के अंदर रखा गया. इसके बाद उन्होंने अपना बाकी का 70 साल का जीवन ऐसे ही जिया. इसीलिए पॉल अलेक्जेंडर को दुनियाभर में ‘द मैन इन द आयरन लंग’ कहा जाने लगा। इसी मशीन के अंदर मंगलवार को उनका निधन हो गया.

आयरन लंग्स क्या है?

नाम सुनने में थोड़ा डरावना लग सकता है देखने में तो यह बिल्कुल ताबूत जैसा मशीन दिखता है. लेकिन यह मशीन कुछ लोगों के लिए किसी जादू से कम नहीं है. 1952 में अमेरिका में जब पोलियो आउटब्रेक हुआ था. पीड़ित में ज्यादातर बच्चे शामिल थे. इसी दौरान पॉल को भी 6 साल की उम्र में पोलियो हो गया था. पोलिया इतना ज्यादा फैल गया था कि पॉल के फेफड़ों को भी खराब कर रहा था . और उन्हें सांस लेने की दिक्कत हो रही थी.

आयरन लंग्स ऐसे करता है काम

आयरन लंग्स दरअसल स्टील से बना होता है. उनका सिर कक्ष के बाहर रहा जबकि एक रबर कॉलर लग रहता है जिसके जरिए मरीज का सिर बाहर की तरफ निकला होता है. पहला आयरन फेफड़ा एक इलेक्ट्रिक मोटर और कुछ वैक्यूम क्लीनर से वायु पंप के जरिए चलाया जाता था. यह एक वेंटिलेशन (ईएनपीवी) के जरिए काम करती है. यह ऐसा बनाया गया है कि मरीज के लंग्स तक आराम से हवा पहुंच जाएगी और मरीज को जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन मिल जाएगा. भले ही मरीज की मांसपेशियां ऐसा न कर पाए लेकिन फिर भी इस मशीन के अंदर आराम से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है. इस मशीन के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि यह मशीन के अंदर पंप को चालू रखता है और जिसके जरिए मरीज जिंदा रहता है.

मशीन के अंदर बिताए जिंदगी के 70 साल

पॉल को उनकी जिंदादिली की वजह से दुनिया में पहचान मिली थी. आयरन लंग्स नाम की मशीन के भरोसे वह सात दशक तक ना सिर्फ जिए बल्कि पढ़ाई की और फिर छात्रों को पढ़ाया भी.लोहे के बक्से जैसी इस मशीन को 50 के दशक में उन मरीजों को सांस दिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.जिनके फेफड़े काम करना बंद कर देते थे। इसी वजह से आयरन लंग्स कहा जाता था.

पॉल की हो गई मौत

धीरे-धीरे उन्होंने मशीन के बिना कुछ वक्त तक रहना सीख लिया था, पर फिर उन्हें रात में सोने के लिए मशीन की जरूरत पड़ती थी. डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार 12 मार्च को उनके गोफंडमी पेज पर बताया गया कि 11 मार्च को उनकी मौत हो गई. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के मुताबिक, लोहे के लंग्स सबसे लंबे वक्त तक रहने वाले व्यक्ति पॉल थे. उन्होंने इसी के भरोसे अपनी पढ़ाई पूरी की और वकील बने.

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