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बाबर से लेकर राम मंदिर निर्माण तक, जानिए राम जन्मभूमि का इतिहास


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नई दिल्लीः 23 दिसंबर साल 1949, राम जन्मभूमि चौकी के चौकीदार अब्दुल बरकत को तड़के घंटा-घड़ियाल’ की आवाज और ‘भये प्रगट कृपाला…’ के भजन सुनाई देने लगे। बरकत बरबस ही बाबरी मस्जिद की ओर खिंचे चले गए। उन्होंने जो वहां देखा, उसके मुताबिक, पूर्व विश्व हिंदू परिषद उपाध्यक्ष जस्टिस देवकी नंदन अग्रवाल ने अपनी किताब ‘श्री राम जन्मभूमि: ऐतिहासिक और कानूनी परिदृश्य’ में संक्षेप में बताया है। बकौल अब्दुल बरकत, उन्होंने प्रकाश की एक चमक देखी जो सोने की हो गई और तभी उन्होंने वह देखा जो शायद किसी को सपने में भी नसीब न हो। बरकत ने बताया कि उस चमक के साथ उन्हें चार या पांच साल के बहुत सुंदर भगवान जैसे बच्चे का चित्र दिखाई दिया। यही नहीं अब्दुल बरकत को मस्जिद के अंदर सिंहासन पर रखी मूर्ति की आरती करते हुए हिंदुओं की भीड़ भी दिखी। वह 4 या 5 साल का नन्हा बालक कोई और नहीं बल्कि रामलला थे। मतलब साक्षात प्रभु श्री राम। लला या लल्ला अवध क्षेत्र में छोटे लड़कों के लिए एक प्रेमपूर्ण शब्द है। रामलला का प्रकट होना राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के 491 साल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना साबित हुई।

विवाद की शुरुआत 139 साल पहले

निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 15 जनवरी, 1885 को विवादित जमीन का आंशिक दावा वापस लेने के लिए पहला मुकदमा दायर किया था। वह मस्जिद के सामने राम चबूतरा नामक चौकी पर एक मंडप बनाना चाहते थे। लेकिन सब-जज हरकिशन सिंह ने उनकी दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इससे तनाव बढ़ सकता है। जिला जज कर्नल FEA चैमियर अधिक सहानुभूतिपूर्ण थे, उन्होंने स्वीकार किया कि मस्जिद हिंदुओं के पवित्र स्थान पर बनी है, लेकिन उन्होंने यथास्थिति बनाए रखते हुए कहा कि 350 साल पहले की गई गलती को सुधारने में बहुत देर हो गई है।

1528: अयोध्या में राम जन्मभमूमि पर मस्जिद बनने से शुरु हुआ विवाद

किस्सा 1526 से शुरू होता है। ये वो साल था जब मुगल शासक बाबर भारत आया। दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई। यह मस्जिद उसी जगह बनी जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। बाबर के सम्मान में मीर बाकी ने इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद दिया। ये वो दौर था जब मुगल शासन पूरे देश में फैल रहा था। मुगलों और नवाबों के शासन के दौरान 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए। 19वीं सदी में मुगलों और नवाबों का शासन कमजोर पड़ने लगा। अंग्रेज हुकूमत प्रभावी हो चुकी थी। इस दौर में ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। इसके बाद से रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू हुई।

1858: बाबरी मस्जिद बनने के 330 साल बाद हुई पहली एफआईआर 

मीरबाकी के मस्जिद बनाने के 330 साल बाद 1858 में लड़ाई कानूनी हो गई, जब पहली बार परिसर में हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर हुई। अयोध्या रिविजिटेड किताब के मुताबिक एक दिसंबर 1858 को अवध के थानेदार शीतल दुबे ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि परिसर में चबूतरा बना है। ये पहला कानूनी दस्तावेज है जिसमें परिसर के अंदर राम के प्रतीक होने के प्रमाण हैं। इसके बाद तारों की एक बाड़ खड़ी कर विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दी गई।

मस्जिद में बंद हुआ विवाद

इसके बाद मुसलमानों ने भगवान राम की उस मूर्ति के चमत्कार पर सवाल उठाया और अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत अभिराम दास पर 9 इंच की मूर्ति रखने का आरोप लगाया। जब जिला मजिस्ट्रेट केके नायर और शहर मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह से मूर्ति हटाने को कहा गया तो उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और यूपी के मुख्यमंत्री जीबी पंत समेत अपने बड़े अधिकारियों की अवज्ञा की। राज्य सरकार ने तब मस्जिद को बंद कर दिया, लेकिन हिंदुओं को बाहर से राम लला विराजमान की पूजा करने की अनुमति दे दी। यहां से मुकदमों की एक श्रृंखला शुरू हुई। हिंदू पक्ष से दिगंबर अखाड़ा के प्रतिनिधियों ने 1950 में और इसके बाद निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। 1961 में, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मस्जिद और उसके आसपास के कब्रिस्तान पर दावा किया। फिर जुलाई 1989 में, रामलला विराजमान ने जस्टिस अग्रवाल के माध्यम से खुद अदालत का दरवाजा खटखटाया, जहां उन्होंने मस्जिद को हटाने और विवादित जमीन वापस मांगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से रामलला के दावे को आंशिक रूप से स्वीकार करने और उन्हें निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को 2.77 एकड़ जमीन का एक तिहाई हिस्सा देने से पहले कई साल बीत गए। अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 के अपने फैसले में राम लल्ला को पूरी जमीन दे दी। इसने इस स्थान को ‘राम का जन्म स्थान’ के रूप में मान्यता दी।

1885: जब अदालत पहुंची राम के लिए पक्के घर की बात


1858 में हुई घटना के 27 साल बाद 1885 में राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई अदालत पहुंची। जब, निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने फैजाबाद के न्यायालय में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर किया। दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की। जज ने फैसला सुनाया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है, लेकिन वे जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते।

16वीं शताब्दी में शुरू हुआ विवाद

तीन गुंबद वाली बाबरी मस्जिद 1528 ई. में बनाई गई थी। ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह बाबर के सेनापति मीर बाकी ने भगवान राम की जन्मस्थली के तौर पर एक मंदिर को गिराया था। तब से हिंदू उस जमीन को वापस पाने की कोशिश कर रहे थे। सम्राट अकबर के समय में उनके लिए राम चबूतरा बनाया गया था, लेकिन उनके परपोते औरंगजेब के शासन में यह विवाद और बढ़ गया। कुछ स्रोतों के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह की सेना भी राम जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए लड़ाई में शामिल हुई थी। अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के अधीन, ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर जेम्स आउटराम ने मस्जिद को लेकर सांप्रदायिक संघर्ष की सूचना दी थी। इसलिए 1859 में, जब भारत ब्रिटिश राज के अधीन आया, तो अदालत ने मस्जिद का आंतरिक प्रांगण मुसलमानों को और चबूतरे वाला बाहरी प्रांगण हिंदुओं को सौंप दिया।

1950: आजादी के बाद पहला मुकदमा

आजादी के बाद पहला मुकदमा हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में दायर किया। विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की। करीब 11 महीने बाद 5 दिसंबर 1950 को ऐसी ही मांग करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग रखी गई। 3 मार्च 1951 को गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।

1980 का दशक और शुरू हुआ हिंदुत्व का जोर

सोमवार के दिन, जब राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा होगी, तो दशकों तक बाबरी मस्जिद के अंदर और फिर एक अस्थायी टारपॉलिन मंदिर में बंद रहने वाली पुरानी राम लला की मूर्ति गर्भगृह में नई और बड़ी मूर्ति के साथ ही विराजमान होगी। यह दिन 40 साल के संघर्ष की परिणति का भी प्रतीक होगा। हालांकि RSS की शाखा विश्व हिंदू परिषद (VHP) का गठन 1964 में हुआ था, लेकिन राम मंदिर 1980 के दशक की शुरुआत में ही उनके एजेंडे में आ गया था। जनवरी 1984 में, आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने प्रयागराज माघ मेले में एक संघ शिविर में उपस्थित लोगों से पूछा था, ‘राम जन्मभूमि कब तक बंद रहेगी?’ तीन महीने बाद, दिल्ली में आयोजित एक धर्म संसद में भाग लेने वाले संतों ने राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्दा उठाया। उसी वर्ष राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का भी गठन किया गया था और अयोध्या की सरयू से लखनऊ तक की उनकी धर्म यात्रा ने उत्तर भारत, महाराष्ट्र और गुजरात के हिंदुओं की सामूहिक चेतना में मंदिर के मुद्दे को आगे बढ़ाया।

1989: राम जन्मभूमि पर मंदिर का शिलान्यास

जनवरी 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। साथ ही 9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।

1990: आडवाणी ने शुरु की रथ यात्रा, आंदोलन को दी धार


1990 के दशक में आंदोलन तेज हो रहा था। इस बीच सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले। इस यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और धार दे दी। देश की राजनीति तेजी से बदल रही थी। आडवाणी गिरफ्तार हुए। गिरफ्तारी के साथ केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी हुए। भाजपा के समर्थन से बनी जनता दल की सरकार गिर गई। कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। ये सरकार भी ज्यादा नहीं चली। नए सिरे से चुनाव हुए और एक बार फिर केंद्र में कांग्रेस सत्ता में आई। इन सब के बीच आई वो ऐतिहासिक तारीख जिसका जिक्र किए बिना ये किस्सा पूरा नहीं हो सकता है। 

मंदिर आंदोलन में शामिल हुई भाजपा

1 फरवरी, 1986 को फैजाबाद जिला जज केएम पांडे ने वकील उमेश चंद्र पांडे की याचिका पर विवादित जगह के तालों को हिंदू पूजा के लिए खोलने की अनुमति दे दी। शहर के मजिस्ट्रेट ने 40 मिनट के भीतर ताला खोल दिया। हाशिम अंसारी ने मुस्लिम पक्ष की ओर से फैसले को चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि बिना उनकी सुने ही आदेश पारित किया गया था। 6 फरवरी को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ और सुलह की संभावना कम हो गई। तब तक VHP ने मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया था, लेकिन जून 1989 में अहली सरकार बनाने में मदद की और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के तहत उसने मंदिर निर्माण के लिए विवादित स्थल के आसपास के पूरे 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। इसके बाद राम जन्मभूमि न्यास को 42 एकड़ जमीन भी सौंपी।

6 दिसंबर, 1992 का काला दिन

6 दिसंबर, 1992 को कार सेवा को फिर से शुरू करने का दिन तय किया गया था। कल्याण सिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया जिसमें कहा गया था कि विवादित स्थल पर कोई स्थायी निर्माण नहीं होगा। लेकिन उस दिन, 1.5 लाख कार सेवकों ने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया, जिससे देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें 2,000 से अधिक लोग मारे गए। केंद्र सरकार की ओर से उनकी सरकार बर्खास्त करने और यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू करने से पहले कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया। भाजपा ने इसके बाद दो दशकों से अधिक समय तक मंदिर के मुद्दे को जिंदा रखा, जब तक कि 2014 में उसे केंद्र में भारी जनादेश नहीं मिला। 2019 में जब अनुकूल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तब तक नरेंद्र मोदी बड़े जनादेश के साथ पीएम के रूप में दूसरी बार वापस आ चुके थे और यूपी में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री थे, जिनकी गोरखपुर पीठ तीन पीढ़ियों से मंदिर आंदोलन से जुड़ी हुई है।

1980 का दशक और शुरू हुआ हिंदुत्व का जोर

सोमवार के दिन, जब राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा होगी, तो दशकों तक बाबरी मस्जिद के अंदर और फिर एक अस्थायी टारपॉलिन मंदिर में बंद रहने वाली पुरानी राम लला की मूर्ति गर्भगृह में नई और बड़ी मूर्ति के साथ ही विराजमान होगी। यह दिन 40 साल के संघर्ष की परिणति का भी प्रतीक होगा। हालांकि RSS की शाखा विश्व हिंदू परिषद (VHP) का गठन 1964 में हुआ था, लेकिन राम मंदिर 1980 के दशक की शुरुआत में ही उनके एजेंडे में आ गया था। जनवरी 1984 में, आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने प्रयागराज माघ मेले में एक संघ शिविर में उपस्थित लोगों से पूछा था, ‘राम जन्मभूमि कब तक बंद रहेगी?’ तीन महीने बाद, दिल्ली में आयोजित एक धर्म संसद में भाग लेने वाले संतों ने राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्दा उठाया। उसी वर्ष राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का भी गठन किया गया था और अयोध्या की सरयू से लखनऊ तक की उनकी धर्म यात्रा ने उत्तर भारत, महाराष्ट्र और गुजरात के हिंदुओं की सामूहिक चेतना में मंदिर के मुद्दे को आगे बढ़ाया।

मंदिर आंदोलन में शामिल हुई भाजपा

1 फरवरी, 1986 को फैजाबाद जिला जज केएम पांडे ने वकील उमेश चंद्र पांडे की याचिका पर विवादित जगह के तालों को हिंदू पूजा के लिए खोलने की अनुमति दे दी। शहर के मजिस्ट्रेट ने 40 मिनट के भीतर ताला खोल दिया। हाशिम अंसारी ने मुस्लिम पक्ष की ओर से फैसले को चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि बिना उनकी सुने ही आदेश पारित किया गया था। 6 फरवरी को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ और सुलह की संभावना कम हो गई। तब तक VHP ने मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया था, लेकिन जून 1989 में अपने पलामपुर सम्मेलन में, भाजपा ने घोषणा की कि वह राम मंदिरआंदोलन में शामिल हो रही है। उसने कहा कि अदालतें विश्वास का मामला तय नहीं कर सकतीं। और जैसे ही उस साल के अंत में लोकसभा चुनाव नजदीक आए, यहां तक कि राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने भी VHP को विवादित स्थल के पास ‘शिलान्यास’ करने की अनुमति देकर हिंदुओं को रिझाने की कोशिश की।

1993: दर्शन-पूजन की अनुमति मिल गई

बाबरी ढहाए जाने के दो दिन बाद 8 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कर्फ्यू लगा था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए। करीब 25 दिन बाद 1 जनवरी 1993 को न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी। 7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। 

अयोध्या में मंदिर की आधारशिला के साथ निर्माण शुरू

इसी के साथ दशकों से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई। अब बारी थी निर्माण की 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ठीक छह महीने बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए।

2019: सुप्रीम फैसला और मंदिर निर्माण का रास्ता साफ 

6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की। 16 अक्तूबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई पूरी हुआ और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले 40 दिन तक लगातार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।
9 नवंबर 2019 को 134 साल से चली आ रही लड़ाई में अब वक्त था अंतिम फैसले का। 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी। वहीं, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे। इसके अलावा यह भी आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए।

 भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा

134 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। राम जन्मभूमि पर मंदिर के पहले चरण का काम पूरा हो गया है। 22 जनवरी 2024 की वह ऐतिहासिक तारीख है जब मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी। 23 जनवरी से मंदिर आम लोगों के लिए खुल जाएगा।

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