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107 साल पहले रामायण पर बनी पहली फिल्म थी ‘लंका दहन’, सिक्कों से भर गईं थी बोरियां


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मुंबई –22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है। देश में राममयी माहौल है, हालांकि ऐसा माहौल पहली बार नहीं है। 1980 के दौर में शो रामायण जब टीवी पर प्रसारित होता तो सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था। लोग इस सीरियल में राम-सीता बने अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को देखकर आज भी हाथ जोड़ लेते हैं और उनके पैर छूने लगते हैं।. ऐसे में हम आपको रामायण पर आधारित एक ऐसी फिल्म के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में जानकर हैरानी होगी.रामायण पर अब तक कई फिल्में और सीरियल्स बन चुके हैं। इसमें भगवान राम और माता सीता के किरदार को अलग-अलग कलाकारों ने निभाया है। बता दें कि पौराणिक विषयों पर फिल्में बनने का चलन भारत में साल 1917 के आसपास शुरू हुआ था। साल 1917 में आई फिल्म लंका दहन हिंदी सिनेमा में रामायण पर बनी पहली फिल्म थी।

हिंदी सिनेमा के इतिहास में रामायण पर अब तक 50 फिल्में और तकरीबन 20 टीवी शो बन चुके

इसका उदाहरण हाल ही में रिलीज हुई तेलुगु फिल्म ‘हनुमान’ है जिसकी कमाई रुकने का नाम नहीं ले रही है। फिल्म ने ग्लोबली 150 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाई कर ली है जिससे साफ है कि रामायण पर फिल्म बनाने का फॉर्मूला हमेशा सुपरहिट साबित हुआ है।यही वजह है कि 112 साल के हिंदी सिनेमा के इतिहास में रामायण पर अब तक 50 फिल्में और तकरीबन 20 टीवी शो बन चुके हैं और ज्यादातर फिल्मों ने अच्छी कमाई की है।

रामायण पर बनी पहली फिल्म थी ‘लंका दहन’

पौराणिक विषयों पर फिल्में बनने का चलन भारत में 107 साल पहले 1917 में शुरू हुआ। 1917 में आई फिल्म ‘लंका दहन’ हिंदी सिनेमा में रामायण पर बनी पहली फिल्म थी। इस साइलेंट फिल्म को दादा साहेब फाल्के ने डायरेक्ट किया था जिन्होंने हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई थी जो कि 1912 में रिलीज हुई थी।दरअसल, एक बार दादा साहेब दौरे पर विदेश गए जहां उन्होंने ईसा मसीह पर बनी फिल्म देखी। इसे देखकर उन्हें लगा कि भारत में भी पौराणिक फिल्में बनाई जा सकती हैं। राजा हरिश्चंद्र बनाने के बाद उन्होंने 1913 में मोहिनी भस्मासुर और फिर 1917 में लंका दहन बनाई।

दादा साहब फाल्के की रामायण

इस रामायण को दादा साहब फाल्के ने लंका दहन के नाम से बनाया था. इस फिल्म की खास बात ये थे कि फिल्म के लिए दादा साहब फाल्के को हीरोइन नहीं मिला करती थीं. साल 1913 में दादा साहब ने हरिश्चंद्र फिल्म बनाई. इस फिल्म में भी हीरोइन का रोल अदा किया अन्ना सालुंके नाम के शख्स ने. उनके पतले हाथ और दुबला पतला डील डौल महिला का किरदार निभाने के लिए बिलकुल उपयुक्त था. इसलिए जब 1917 में दादा साहब ने लंका दहन बनाना शुरु की तो अन्ना सालुंके को ही सीता का रोल दिया. चुनौती थी पुरुष का किरदार अदा करने की. लेकिन अन्ना सालुंके ने अपने हाव भाव और बॉडी लेंग्वेज पर इतना काम किया कि वो राम के किरदार में भी फिट बैठे.

राम और सीता की भूमिका एक ही एक्टर ने निभाई थी

फिल्म की खास बात ये थी कि इसमें राम और सीता की भूमिका एक ही एक्टर ने निभाई थी जिनका नाम अन्ना सालुंके था। उस दौर में महिलाएं फिल्मों में काम करने से कतराती थीं, इसलिए अन्ना सालुंके ने फिल्म में दो किरदार निभाए।इसी वजह से उनके नाम हिंदी सिनेमा का पहला डबल रोल करने का भी रिकॉर्ड है। आज भी हिंदी सिनेमा के इतिहास में कोई ऐसी फिल्म नहीं है जिसमें हीरो और हीरोइन दोनों का रोल एक ही व्यक्ति ने निभाया हो। फिल्म की कहानी राम के 14 साल के वनवास से शुरू हुई थी और रावण के वध पर खत्म हुई थी।

मंदिर जैसा माहौल

राम और सीता दोनों का रोल कर अन्ना सालुंके तो हिंदी सिनेमा के डबल रोल करने वाले पहले आर्टिस्ट बन गए. सबसे बड़ी बात ये थी कि लोगों ने भी उन्हें दोनों रोल में अपनाया. राम सीता की रामायण देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग थियेटर तक पहुंचे. भक्तिभाव का आलम ये था कि लोग चप्पल उतार कर ही सिनेमा हॉल के भीतर जाते थे. जबकि फिल्म में कोई आवाज नहीं थी. उसके बाद भी भगवान के प्रति भक्ति का संदेश लोगों तक साफ साफ पहुंचा.

फिल्म देखने के लिए लगती थी कई किलोमीटर की लाइन

फिल्म लंका दहन की पहली स्क्रीनिंग मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में हुई। पर्दे पर रामायण की कहानी देखना लोगों के लिए इतना बेहतरीन अनुभव था कि लोगों ने इसे ही सच मान लिया। थिएटर के बाहर पहले टिकट खरीदने वालों की लंबी कतारें होती थीं। ये हिंदी सिनेमा के इतिहास में पहली बार था जब कई किलोमीटर की भीड़ टिकट खरीदने लिए खड़ी थी। लोग सिक्कों से टॉस करके ये तय करते थे कि टिकट किसे मिलेगी। भगदड़ और टिकट की लड़ाई थिएटर के बाहर आम बात हो गई थी।

सिक्कों से भर गईं थीं कई बोरियां

साल 1913 में दादा साहब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र फिल्म बनाकर बॉलीवुड के विशाल वटबृक्ष की नींव रख दी. इस फिल्म के बाद दादा साहब ने मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), (तिलक वीक 1917) जैसी फिल्में बनाईं. इसी दौरान दादा साहब फाल्के ने पहली बार रामायण के किरदारों को भी पर्दे पर उतारने का फैसला लिया. दादा साहब ने 1917 में फिल्म ‘लंका दहन’ बनाई. रामायण पर बनी ये बॉलीवुड की पहली फिल्म बन गई. इस फिल्म पर भगवान राम की कृपा हुई और देखने वालों की भीड़ लग गई. सुबह 7 बजे मुंबई के सिनेमाघर में फिल्म का पहला शो रिलीज किया गया. लेकिन दोपहर तक फिल्म देखने वालों की भीड़ लग गई.

इस फिल्म में लोगों ने पहली बार पर्दे पर भगवान राम के दर्शन किए

ब्लैक एंड व्हाइट पर्दे पर चल रहे चलचित्रों में आवाज नहीं होती थी, लेकिन स्क्रीन के पास संगीतकार बैठा करते थे तो संगीत बजाते थे. इस फिल्म में लोगों ने पहली बार पर्दे पर भगवान राम के दर्शन किए. फिल्म को देखने वालों की कई हफ्तों तक भीड़ लगी रही. फिल्म ने इतने पैसे कमाए कि कई बोरियां सिक्कों से भर गईं थीं. इतना ही नहीं इन सिक्कों को प्रोड्यूसर्स के घर पहुंचाने के लिए बैलगाड़ी का सहारा लेना पड़ा था.इस फिल्म को देखते वक्त लोगों ने भगवान राम के पहली बार पर्दे पर दर्शन किए. इतना ही नहीं जैसे ही पर्दे पर भगवान राम नजर आते थे तो लोग अपने जूते उतार लिया करते थे. रामायण पर बनी फिल्म लंका दहन इसी तरह बॉलीवुड की पहली सुपरहिट फिल्म बन गई. इसके बाद फिल्मों ने कमाई के मामले में कई रिकॉर्ड तोड़े.

कमाई बैलगाड़ियों में भरकर प्रोड्यूसर तक पहुंचाई जाती थी

1917 में यानी 107 साल पहले आई लंका दहन ने 10 दिनों में ही 35 हजार रुपए की कमाई कर ली थी।इसकी कमाई बैलगाड़ियों में भरकर प्रोड्यूसर तक पहुंचाई जाती थी, क्योंकि टिकट बिक्री में ज्यादातर सिक्के ही आते थे। 1943 मेे फिल्म बॉलीवुड की महाफ्लॉप फिल्मों की लिस्ट में शामिल हो गई है. वहीं साल 1917 में रिलीज हुई रामायण पर बनी पहली फिल्म ‘लंका दहन’ ने कमाई के मामले में कमाल कर दिया था. 107 पहली ही ये फिल्म बॉलीवुड की पहली सुपरहिट फिल्म बन गई थी.

सिनेमाघरों के बाहर उतारे जाते थे जूते-चप्पल

सिनेमाघरों के बाहर जूते-चप्पल बिखरे पड़े रहते थे। लोगों ने सिनेमाघरों को मंदिर समझ लिया। लोग बिना जूतों के अंदर जाते और हाथ जोड़कर बैठते। फिल्म में पहली बार ट्रिक फोटोग्राफी और कुछ खास तरह के स्पेशल इफेक्ट इस्तेमाल किए गए थे।

दक्षिण भारत में राम पर बनी इतनी फिल्में

दक्षिण भारत फिल्‍मों में भी कौशल्‍या पुत्र श्रीराम पर कई फिल्‍में बनीं। प्रख्‍यात तेलुगु अभिनेता सीनियर एनटीआर यानी एनटी रामाराव ने ‘लव कुश’, ‘श्री रामंजनेय युद्धम’ और ‘सीता राम कल्याणम’ समेत कई पौराणिक फिल्मों में अभिनय किया था। इनमें बतौर निर्देशक एनटीआर रामाराव की पहली फिल्‍म सीता राम कल्‍याणम थी। 1961 में प्रदर्शित हुई यह फिल्‍म बाक्‍स आफिस पर सफल रही थी। इसे सर्वश्रेष्‍ठ तमिल फिल्‍म का नेशनल अवार्ड भी मिला था। इस फिल्‍म में हरनाथ ने राम की जबकि सीनियर एनटीआर ने रावण की भूमिका अभिनीत की थी। उसके बाद 1963 में आई तेलुगु फिल्‍म लव कुश में उन्‍होंने भगवान राम की भूमिका अभिनीत की थी।

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