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मकर संक्रांति के पहले ही बिकी इस शहर में करोडो की पतंग


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नई दिल्ली – रामपुर अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के साथ पतंगों के लिए भी मशहूर है। यहां कारखानों में बड़े पैमाने पर कारीगर पतंगें बनाते हैं, जिनका देश के कई राज्यों में निर्यात किया जाता है। मकर संक्रांति पर पतंगबाजी की परंपरा है। ऐसे में जिले के कारीगरों को 80 लाख से ज्यादा पतंगों का ऑर्डर मिला है।मकर संक्रांति पर रामपुर की पतंगे लुधियाना और हैदराबाद में भी उड़ान भरेंगी। मौजूदा समय में जनपद में पतंगों के 150 कारखाने हैं। इन कारखानों में कारीगर अपने हुनर का करिश्मा दिखाकर पतंगों को रूप देते हैं। एक-एक कारखाने में चार-पांच कर्मचारी रखे हुए हैं। इन कर्मचारियों का काम तरह-तरह की आकर्षक पतंगों को तैयार करना है।

इंदौर में यहां लगी दुकानें

वैसे इंदौर के लगभग सभी मोहल्लों में पतंग की दुकानें हैं, लेकिन कुछ प्रसिद्ध स्थान हैं, जहां पूरे वर्ष भर पतंग और मांझा मिलता है। इन प्रमुख स्थानों में रानीपुरा, काछी मोहल्ला, जवाहर मार्ग, तिलक नगर, विजय नगर, पाटनीपुरा, मल्हारगंज, बियाबानी, लोहारपट्टी, बड़वाली चौकी, सिख मोहल्ला, परदेसीपुरा, बंबई बाजार, राऊ चौराहा और तेजाजी नगर शामिल हैं, जहां पतंग की करीब 300 से ज्यादा दुकानें हैं।

इन शहरों से आ रही पतंगें

इंदौर में गुजरात के अहमदाबाद, राजकोट और राजस्थान के जोधपुर, जयपुर के अलावा बरेली से भी पतंग बिकने आई है। पतंग का थोक व रिटेल कारोबार करने वाले व्यापारियों का कहना है कि इस साल अभी तक लगभग 7 करोड़ की पतंग और मांझा बिक चुका है। वहीं मकर संक्रांति के अंतिम दिनों में 1 करोड़ का और कारोबार होने की संभावना है।

लोग पतंग बनाने में लगे

इस बार डिमांड अच्छी आई है और पूरे मनोयोग से हम लोग पतंग बनाने में लगे हुए हैं। पूरा माल लेकर बैठे हुए हैं। लक्ष्य के अनुरूप मांग बढ़ती है और हम इनको तैयार करते जाते हैं। हमारे साथियों का भी सहयोग रहता है।पतंग बनाने के लिए कमानी को फर्रुखाबाद से लाते हैं और कागज यहीं उपलब्ध हो जाता है। सुबह कारखाने में आने के बाद शाम को पांच बजे के बाद ही जाते हैं। पतंगे ज्यादा से ज्यादा बनाने की कोशिश करते हैं और ग्राहक को किसी भी तरह की शिकायत न आए इसका भी ध्यान रखना पड़ता है।

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