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बिलकिस बानो केस : बिलकिस बानो गैंगरेप आरोपियों की सजा माफी हुई रद्द


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नई दिल्ली – गुजरात में 2002 दंगों के दौरान बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 दोषियों को समय से पहले जेल से रिहा करने के राज्य सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया.जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा- सजा अपराध रोकने के लिए दी जाती है.पीड़ित की तकलीफ की भी चिंता करनी होगी.

गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने 11 दोषियों को दी गई छूट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं था. SC ने कहा, जिस कोर्ट में मुकदमा चला था, रिहाई पर फैसले से पहले गुजरात सरकार को उसकी राय लेनी चाहिए थी. साथ ही जिस राज्य में आरोपियों को सजा मिली, उसे ही रिहाई पर फैसला लेना चाहिए था. दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी. इस आधार पर रिहाई का आदेश निरस्त हो जाता है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना. अदालत ने कहा, 13 मई 2022 के जिस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को रिहाई पर विचार के लिए कहा था, वह दोषियों ने भौतिक तथ्यों को दबाकर और भ्रामक तथ्य बनाकर हासिल किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का फैसला पलटा

गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत साल 2022 में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें जेल से रिहा कर दिया था.हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को फिर से जेल जाना होगा.इन दोषियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने साल 2008 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी अपनी मुहर लगाई थी.उम्रकैद की सजा पाए दोषी को 14 साल जेल में ही बिताने होते हैं.उसके बाद अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार और अन्य चीजों को ध्यान में रखते हुए सजा घटाने या रिहाई पर विचार किया जा सकता है. बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषी जेल में 15 साल बिता चुके हैं.जिसके बाद दोषियों ने सजा में रियायत की गुहार लगाई थी.जिस पर गुजरात सरकार ने अपनी माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों को जेल से रिहा कर दिया.

अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है

जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अपराधियों को सजा इसलिए दी जाती है, ताकि भविष्य में अपराध रुकें. अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है. लेकिन पीड़िता की तकलीफ का भी एहसास होना चाहिए. हमारा मानना ​​है कि इन दोषियों को स्वतंत्रता से वंचित करना उचित है. एक बार उन्हें दोषी ठहराए जाने और जेल में डाल दिए जाने के बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का अधिकार खो दिया है. साथ ही, यदि वे दोबारा सजा में छूट चाहते हैं तो यह जरूरी है कि उन्हें जेल में रहना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को 2 हफ्ते में सरेंडर करने के लिए कहा है.

क्या था बिलकिस बानो का मामला

गुजरात में वर्ष 2002 में दंगा हुआ. तभी बिलकिस बानो से नृशंस गैंगरेप तो हुआ ही, साथ ही उसके परिवार के 07 लोगों की आंखों के सामने ही हत्या कर दी गई. इसके बाद दोषियों को आजीवन कारावास की सजा हुई. मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 2008 में 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी. फिर बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस सज़ा पर मुहर लगाई.गुजरात सरकार ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था. ये रिहाई गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत की गई. जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढ़वाडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से रिहा कर दिया गयाजिस पर देश में विवाद छिड़ गया. इसे लेकर जगह जगह प्रदर्शन हुए.

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