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निठारी कांड: नरसंहार मामले में कोली और पंढेर बरी,CBI की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल


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नई दिल्लीः देश और दुनिया को झकझोर देने वाला नोएडा का बहुचर्चित निठारी कांड…18 साल बाद भी 18 मासूमों और एक महिला को इंसाफ नहीं मिल सका। इन सभी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। शरीर के अंग और कंकाल नाले और झाड़ियों में मिले थे। जांच यूपी पुलिस से सबसे बड़ी एजेंसी सीबीआई तक पहुंची। खुद के कबूलनामे पर सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर आरोपी बनाए गए। ट्रायल अदालत ने फांसी की सजा दी, इलाहाबाद हाईकोर्ट से सबूतों के अभाव में बरी हो गए। ये सवाल अब भी जवाब मांग रहे हैं कि मासूमों की हत्या किसने की… बेरहमी से शवों के टुकड़े किसने किए… दुष्कर्म जैसे घिनौना कृत्य किसने किया… नरभक्षी कौन थे?

बुनियादी नियमों का उल्लंघन

निठारी कांड की जांच को लेकर निराशा व्यक्त करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार (16 अक्टूबर) को आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया. अदालत ने पाया कि जांच में गड़बड़ी हुई और साक्ष्य संग्रह के बुनियादी नियमों का ‘बेशर्मी से उल्लंघन’ किया गया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष की विफलता, जिम्मेदार एजेंसियों द्वारा जन आस्था के साथ धोखे से कम नहीं है. पंढेर को उन दो मामलों में बरी कर दिया गया जिनमें उसे फांसी की सजा हुई थी, जबकि कोली को 12 मामलों में बरी कर दिया गया जिनमें उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी.

हाईकोर्ट ने कहा, जांच एजेंसियों ने अंग व्यापार के गंभीर पहलुओं की जांच किए बिना एक गरीब नौकर को खलनायक की तरह पेश कर उसे फंसाने का आसान तरीका चुना। ऐसी गंभीर चूक के कारण मिलीभगत सहित कई तरह के निष्कर्ष संभव हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी अपीलकर्ताओं की निचली अदालत से स्पष्ट रूप से निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिला। सीबीआई की विशेष अदालत ने 13 फरवरी 2009 को दोनों को दुष्कर्म और हत्या का दोषी मानकर फांसी की सजा सुनाई थी। पंढेर और कोली पर 18 मासूमों और एक महिला से दुष्कर्म व हत्या का आरोप था। इस मामले अदालत में पहला केस 8 फरवरी, 2005 को दर्ज किया गया था।

साबित करने में विफल

सैयद आफताब हुसैन रिजवी और अश्वनी कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, “इस मामले में साक्ष्य के आंकलन पर, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक आरोपी को मुकदमे में निष्पक्ष सुनवाई की दी गई गारंटी के मद्देनजर, हमने पाया कि अभियोग पक्ष आरोपी एसके और पंढेर का अपराध, परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित एक मामले के तय मानकों पर उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा.”

निठारी में 2006 में सामने आया था मामला

नोएडा के निठारी में एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिलने के साथ दिसंबर 2006 में प्रकाश में आए इस सनसनीखेज मामले की जांच शुरुआत में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जिसे बाद में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया गया. निठारी कांड की जिस तरह से जांच की गई उस पर कोर्ट ने निराशा व्यक्त की खासकर पीड़ित ‘ए’ के लापता होने की जांच के संबंध में. पीठ ने कहा, “अभियोग का यह मामला आरोपी एसके (सुरेंद्र कोली) की स्वीकारोक्ति पर आधारित है जो उसने 29 दिसंबर, 2006 को यूपी पुलिस के समक्ष की.”

निठारी निवासी राजवती जो कि अब जूता-चप्पल की दुकान चला रही हैं उन्होंने अपना 5 साल का बच्चा निठारी कांड में खोया था। बातचीत में बताया कि शादी के 8 साल बाद उनको बच्चा हुआ था। 27 अप्रेल 2006 को वह घर के बाहर खेलने के लिए गया था लेकिन वापस नहीं लौटा। फिर मुझे यह जानकारी मिली कि उसका कंकाल डी-5 बंगले के सामने बहने वाले नाले में मिला था। राजवती जोर देकर कहती हैं कि अगर कोर्ट ने कह दिया है कि वो दोनों दोषी नहीं हैं तो किसने मेरे बच्चे को मारा है।

पंढेर की कोठी से हड्डी या कंकाल नहीं मिला

अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि अभियोजन पक्ष लगातार अपना रुख बदलता रहा। पहले पंढेर और कोली पर संयुक्त रूप से आरोप लगाए। बाद में कोली पर दोष मढ़ दिया। अदालत ने पाया कि मानव कंकाल की सभी बरामदगी मकान नंबर डी-5 (पंढेर) और डी-6 (एक डाक्टर के मकान) की दीवार से परे स्थित एक नाले से की गई और पंढेर के मकान से कोई बरामदगी नहीं की गई. पीठ ने कहा, “खोपड़ी, कंकाल/हड्डी की कोई बरामदगी मकान नंबर डी-5 के अंदर से नहीं की गई. इस मकान से केवल दो चाकुओं और एक कुल्हाड़ी की बरामदगी की गई जिसका दुष्कर्म, हत्या आदि के अपराध में निःसंदेह उपयोग नहीं किया गया, लेकिन कथित तौर पर पीड़ितों को गला घोंटकर मारने के बाद शरीर के अंगों को काटने के लिए इनका उपयोग किया गया था.” पंढेर के घर से कोई बरामदगी नहीं की गई थी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?

पीठ ने कहा कि आरोपी से पूछताछ दर्ज करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी जिसके कारण कंकाल, हड्डियां बरामद हुईं. पीठ ने कहा, जिस अनौपचारिक और सहज तरीके से गिरफ्तारी, बरामदगी और स्वीकारोक्ति के महत्वपूर्ण पहलुओं से निपटा गया, उनमे ज्यादातर निराशाजनक हैं. अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष शुरुआत में बरामदगी को संयुक्त रूप से पंढेर और कोली से दिखाने से लेकर बाद के चरण में दोष केवल कोली पर मढ़ने तक अपनी स्थिति बदलता रहा.

“जन आस्था के साथ धोखे से कम नहीं”

पीठ ने कहा कि भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति की विशेष सिफारिशों के बावजूद मानव अंग के व्यापार की संभावित संलिप्तता की जांच करने में अभियोजन पक्ष की विफलता, जिम्मेदार एजेंसियों द्वारा जन आस्था के साथ धोखे से कम नहीं है. अदालत ने कहा कि अंग व्यापार की संगठित गतिविधि की संभावित संलिप्तता के गंभीर पहुलओं की विस्तृत जांच में सावधानी बरते बगैर उस मकान के एक गरीब नौकर को ‘दैत्य’ बनाकर उसे फंसाने का विकल्प इस जांच में अपनाया गया.

“आरोपी अपीलकर्ता चतुराई से निष्पक्ष सुनवाई से बच गए”

पीठ ने कहा, जांच के दौरान इस तरह की गंभीर खामियों के संभावित कारण मिलीभगत सहित कई तरह के अनुमान हो सकते हैं. हालांकि, हम इन पहलुओं पर कोई निश्चित राय व्यक्त नहीं करना चाहेंगे और इन मुद्दों को उचित स्तर पर जांच के लिए छोड़ते हैं. गाजियाबाद के सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा को पलटते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में आरोपी अपीलकर्ता चतुराई से निष्पक्ष सुनवाई से बच गए. अदालत ने कहा, निचली अदालत द्वारा 24 जुलाई, 2017 को पारित आदेश के तहत आरोपी एसके और पंढेर की दोषसिद्धि और सजा को पलटा जाता है.

आरोपी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437ए के अनुपालन पर रिहा किए जाएंगे बशर्ते वे किसी अन्य मामले में वांछित ना हों. पीठ ने कहा कि बच्चों और महिलाओं की जान जाना एक गंभीर मामला है खासकर तब जब एक बहुत अमानवीय ढंग से उनकी हत्या की गई हो, लेकिन यह अपने आप में आरोपियों को उचित सुनवाई का अवसर देने से मना करना न्यायोचित नहीं होगा और साक्ष्य के अभाव में उनकी सजा को न्यायोचित ठहराना भी सही नहीं होगा.

पेश हुए 38 गवाह

निठारी कांड के अन्य मामलों का खुलासा होने पर इस मामले को भी सीबीआई ने 11 जनवरी 2007 को अपने हाथ में ले लिया था। सीबीआई ने 26 जुलाई 2007 को अदालत में चार्जशीट पेश की थी। मामले में सीबीआई कोर्ट में 305 दिन सुनवाई हुई। इस दौरान कुल 38 गवाह पेश किए गए।

निठारी कांड में कब क्या हुआ

  • 29 दिसंबर 2006 : कोठी के पीछे और आगे नाले में बच्चों और महिलाओं के कंकाल मिले थे, मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली गिरफ्तार।
  • 8 फरवरी 2007- कोली और पंढेर को 14 दिन की सीबीआई हिरासत में भेजा गया।
  • मई 2007 – सीबीआई ने पंढेर को अपनी चार्जशीट में अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया था। दो महीने बाद कोर्ट की फटकार के बाद सीबीआई ने उसे फिर सहअभियुक्त बनाया।
  • 13 फरवरी 2009- विशेष अदालत ने पंढेर और कोली को 15 वर्षीय किशोरी के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई। यह पहला फैसला था।
  • 3 सितंबर 2014- कोली के खिलाफ कोर्ट ने मौत का वारंट भी जारी किया।
  • 4 सितंबर 2014 – कोली को डासना जेल से मेरठ जेल फांसी के लिए ट्रांसफर किया गया।
  • 12 सितंबर 2014 – से पहले सुरेंद्र कोली को फांसी दी जानी थी। वकीलों के समूह डेथ पेनल्टी लिटिगेशन ग्रुप्स ने कोली को मृत्युदंड दिए जाने पर पुनर्विचार याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा।
  • 12 सितंबर 2014 – सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा पर अक्तूबर 29 तक के लिए रोक लगाई।
  • 28 अक्तूबर 2014 – सुरेंद्र कोली की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को खारिज किया। 2014 में राष्ट्रपति ने भी दया याचिका रद्द कर दी।
  • 28 जनवरी 2015 – हत्या मामले में कोली की फांसी की सजा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उम्रकैद में तब्दील किया।

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