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डॉ अब्दुल कलाम जन्म जयंती विशेष: फाइटर पायलट बनने का था सपना फिर बने वैज्ञानिक


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नई दिल्लीः हर बड़े वैज्ञानिक का जीवन सीखों से भरपूर होता है. डॉ एपीएजे अब्दुल कलाम का जीवन भी इसका अपवाद नहीं है. उन्होंने भी आम लोगों की तरह अपने जीवन में काफी कुछ गंवाया, लेकिन अपनी मेहनत और लगन से उम्मीदों से कहीं ज्यादा पाया. लेकिन वे अपने पूरी जीवन में अपने सिद्धांतों और अपनी पसंदीदा जीवन शैली से जुड़े रहे. 15 अक्टूबर को उनकी जयंती उनके प्रेरणादायी जीवन को याद दिलाती है जो देश के युवाओं को दिशा देने का करती है. उनका जीवन सबसे बड़ी मिसाल है कि जीवन का सबसे बड़ा सपना टूटना सब कुछ खत्म हो जाना नहीं है.

भाई-बहनों में सबसे छोटे थे कलाम

कलाम अपने चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे. कलाम का जब जन्म हुआ था तब परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी. बचपन में कलाम को परिवार को सहारा देने के लिए अखबार बेचने पड़े थे. कलाम के पिता जैनुलाब्दीन मराकायर के पास एक नाव थी और वह एक स्थानीय मस्जिद के इमाम थे. मां अशिअम्मा एक गृहिणी थीं. पिता नाव से हिंदू तीर्थ यात्रियों को रामेश्वरम और धनुषकोडी की यात्रा कराते थे.

परिवार को सहारा देने के लिए बेचे अखबार

अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम के धनुषकोडी गांव में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता मछुआरों को नाव किराये से देते थे और कभी खुद भी नाव से हिंदुओं की तीर्थ यात्रा कराते थे. बचपन में कलाम का परिवार की गरीबी की वजह से कलाम को अखबार बेचने तक का काम भी करना पड़ा था.

मेहनती छात्र थे कलाम

स्कूल के दिनों में कलाम की ग्रेड औसत आती थी लेकिन वह एक प्रतिभाशाली और मेहनती छात्र थे, जिसमें सीखने की तीव्र इच्छा थी. उन्होंने पढ़ाई पर खूब समय लगाया, विशेषकर गणित पढ़ने में उन्हें रुचि थी. रामनाथपुरम के श्वार्ट्ज हायर सेकेंडरी स्कूल उन्होंने पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से पढ़ाई की, जो उस समय मद्रास विश्वविद्यालय से संबद्ध था. यहां से उन्होंने 1954 में भौतिकी में स्नातक (ग्रेजुएशन) की पढ़ाई पूरी की. 1955 में वह मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए मद्रास चले गए.

लड़ाकू पायलट बनने का था सपना

दुनिया में बहुत से लोग अपने जीवन में बड़ा लक्ष्य लेकर चलते हैं.एक बार कलाम एक सीनियर क्लास के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे लेकिन डीन उनकी प्रगति से खुश नहीं थे. डीन ने कलाम को अगले तीन दिनों में प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए कहा. ऐसा नहीं होने पर उन्होंने कलाम का छात्रवृत्ति रद्द करने की चेतावनी दी. कलाम ने समय पर काम पूरा कर दिया, जिससे डीन काफी प्रभावित हुए. कलाम उस समय लड़ाकू पायलट बनना चाहते थे लेकिन ऐसा करने से चूक गए थे. क्वालीफायर में वह नौवें नंबर पर थे जबकि भारतीय वायुसेना तब आठ जगहों के लिए छात्रों का चयन हो चुका था. इसके लिए शुरुआती जीवन में तमाम विषमताओं के वावजूद पढ़ाई में बहुत लगन से मेहनत की और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे हैं. लेकिन जब कई लोगों की तरह उनकी महत्वाकांक्षा भी पूरी नहीं हो सकी जिसके बाद उनका जीवन ही बदल गया.

एपीजे अब्दुल कलाम ने छात्रों को किया प्रोत्साहित

स्कूल के दिनों में एपीजे अब्दुल कलाम की ग्रेड औसत आती थी, लेकिन वह एक प्रतिभाशाली और मेहनती छात्र थे, जिसमें सीखने की तीव्र इच्छा थी. उन्होंने पढ़ाई पर खूब समय लगाया, विशेषकर गणित पढ़ने में उन्हें रुचि थी. पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने हमेशा छात्रों को बड़े सपने देखने और असफलता से कभी न डरने के लिए प्रोत्साहित किया. वह कहते थे, ‘सपने वे नहीं होते जो रात में सोते समय नींद में आएं, बल्कि सपने वे होते हैं जो रात में सोने ही न दें.’

प्रमुख स्वामी को मानते थे गुरु

कलाम 2001 बीएपीएस स्वामीनारायण संप्रदाय के हिंदू गुरु प्रमुख स्वामी के संपर्क में आए थे, इसके बाद उनकी कई मुलाकातें हुईं. प्रमुख स्वामी को कलाम अपना आध्यात्मिक शिक्षक और गुरु मानते थे. प्रमुख स्वामी के साथ बिताए समय को कलाम ने एक किताब की शक्ल दी.

कलाम की प्रमुख किताबें

1999 में उनकी आत्मकथा विंग्स ऑफ फायर प्रकाशित हुई थी, जिसे कलाम और अरुण तिवारी ने लिखा था. इसके अलावा उनकी प्रमुख किताबों में ‘इंडिया 2020’, ‘इग्नाइटेड माइंड्स’, ‘इंडॉमिटेबल’, ‘ट्रांसेडेंस: माय स्प्रिचुअल एक्सपीरिएंसेज विद प्रमुख स्वामी जी’

27 जुलाई 2015 को निधन हुआ

27 जुलाई 2015 को 83 वर्ष की उम्र में कार्डियक अरेस्ट से उनका निधन हो गया था. 30 जुलाई 2015 को पूर्व राष्ट्रपति को पूरे राजकीय सम्मान के साथ रामेश्वरम के पेई करुम्बु मैदान में अंतिम संस्कार किया गया था. उस दौरान देश की जानी-मानी हस्तियों समेत करीब साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग उनके अंतिम संस्कार में श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे थे.

1997 में कलाम को भारत रत्न से किया गया था सम्मानित

कलाम को कई मानद उपाधियां और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.

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