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Mission Raniganj Review : अक्षय कुमार की मिशन रानीगंज ने लोगों का जीता दिल


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मुंबई – अक्षय कुमार और हाल ही में दुल्‍हन‍ियां बनीं एक्‍ट्रेस परिणी‍त‍ि चोपड़ा की फ‍िल्‍म ‘म‍िशन रानीगंज’ र‍िलीज हो गई है. . पूजा एंटरटेनमेंट के प्रोडक्‍शन में बनी इस फ‍िल्‍म में पश्चि‍म बंगाल में कोयले की एक खदान में 1989 में हुए हादसे को आधार बनाया गया है.अक्षय कुमार की फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ एक सत्यघटना से प्रेरित है. इस फिल्म में अक्षय, रियल लाइफ हीरो जसवंत सिंह गिल का किरदार निभा रहे हैं, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाते हुए जमीन से लगभग 350 फीट नीचे फंसे हुए 65 खदान मजदूरों की जान बचाई थी. इस हफ्ते रिलीज होने वाली फिल्मों की भीड़ में अक्षय कुमार की फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ भी है.

1989 की सच्ची घटना पर आधारित ये फिल्म

2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में नई तकनीक होने के बावजूद 50 फीट नीचे बोरवेल में गिरे प्रिंस को बचाने का अभियान जहां 3 दिन चला था, वही इस घटना से 18 साल पहले 1989 में जसवंत सिंह गिल ने महज 2 दिनों में जमीन में 350 फीट नीचे फंसे 65 मजदूरों की जान बचाई थी. ‘कैप्सूल मैन’ जसवंत सिंह के किरदार के जरिए अक्षय कुमार ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का नया पहलू हमारे सामने पेश किया है. शुरुआत से लेकर आखिरी पल तक ये फिल्म हमें कुर्सी से हिलने नहीं देती.पिछले तीन दिनों में जो सबसे कम था, वो था वक्त, और जो सबसे ज्यादा थी, वो थी हिम्मत.. और इन दोनों के बीच थे सरदार जसवंत सिंह गिल..” 1989 की सच्ची घटना पर आधारित ये फिल्म हमें एक ऐसे रियल लाइफ हीरो परिचय करवाती है, जिन्होंने अपनी बहादुरी, सूझबूझ और संवेदनशीलता से 65 जानें बचाई थीं। इस रेस्क्यू ड्रामा में अक्षय कुमार ने जसवंत सिंह गिल का किरदार निभाया है। और कोई दो राय नहीं कि अक्षय को इस तरह की कहानी में देखना दिलचस्प अनुभव है।

कहानी

फिल्म की कहानी जसवंत सिंह गिल पर आधारित है, जो आईआईटी धनबाद के इंजीनियर थे.जसवंत सिंह गिल (अक्षय कुमार) अपनी प्रेग्नेंट पत्नी निर्दोष (परिणीति चोपड़ा) के साथ रानीगंज आते हैं. पश्चिम बंगाल के रानीगंज में जसवंत कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) में बतौर रेस्क्यू इंजीनियर काम कर रहे थे. जब माइन में हुए ब्लास्ट के बाद खदान में पानी भर गया, तब जमीन के नीचे फंसे 71 लोगों को बचाने की जिम्मेदारी जसवंत ने अपने कंधों पर ली. हालांकि मिशन शुरू होने से पहले ही 6 मजदूरों ने दम तोड़ दिया था. किस तरह जसवंत ये मुश्किल मिशन पूरा करते हैं, ये जानने के लिए आपको थिएटर में ‘मिशन रानीगंज‘ देखनी होगी.

असली बचाव अभियान पर बनी फिल्म

फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ उन जसवंत सिंह गिल की कहानी है जिन्होंने हकीकत में एक कोयला खदान में फंसे मजदूरों को अपनी त्वरित बुद्धि से बचा लिया था। फिल्म अपना कालखंड स्थापित करने के लिए दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कालजयी धारावाहिक ‘महाभारत’ की मदद लेती है और शुरुआती नाच गाने के बाद थोड़ी देर से मुद्दे पर आती है। जसवंत सिंह गिल को शुरू में कोई गंभीरता से नहीं लेता है लेकिन खदान के स्थानीय प्रबंधन को उसमें उम्मीद नजर आती है। पारंपरिक तकनीक से इतर प्रयोग करने में उसका साथ देने वाले तकनीशियन की मदद से एक और एक ग्यारह बनते हैं। काम शुरू होता है। कारोबारी रंजिश रखने वाले कुछ लोग चाहते हैं कि ये मिशन किसी तरह सफल न हो। अड़ंगे लगाए जाते हैं। साजिशें रची जाती हैं लेकिन अंत भला तो सब भला…।

एक्टिंग

कहानी के​ किरदारों के हिसाब से ढ़लने में अक्षय कुमार को महारत हासिल है. जसवंत सिंह गिल के तौर पर उन्होंने इस किरदार की आत्मा को पकड़ा है. ऐसी मुश्किल भरी सिचुएशन में विश्वास और सूझबूझ के साथ किस तरह उस दौर में असल जसवंत सिंह ने मोर्चा संभाला था, यह अक्षय ने बखूबी दिखाया है.ये ‘अक्षय कुमार’ फिल्म है, अपनी खुद की सेहत को नजरअंदाज कर मुश्किल समय में दिमाग शांत रखकर अपना काम करने वाले जसवंत सिंह का किरदार अक्षय कुमार ने बेहद खूबसूरती से निभाया है. एयरलिफ्ट से ज्यादा ‘मिशन रानीगंज’ प्रभावित करती है. फिल्म में एक तरफ जसवंत है और दूसरी तरफ उनकी पत्नी. अक्षय कुमार की पत्नी का किरदार निभाने वाली परिणीति चोपड़ा, उन्हें देख सामने वाले को परेशानी हो जाए, इस हद तक पॉजिटिव नजर आ रही हैं. हालांकि इस फिल्म में उन्हें करने लायक कुछ खास नहीं मिला है. वरुण बड़ौला, कुमुद मिश्रा, रवि किशन, पवन मल्होत्रा और दिव्येंदू भट्टाचार्य जैसे कलाकार अपने किरदार को पूरी तरह से न्याय देते हैं.

अक्षय कुमार की सोलो फिल्म

लगातार कोई आधा दर्जन फ्लॉप फिल्में देने के बाद अभिनेता अक्षय कुमार की किस्मत उनकी पिछली फिल्म ‘ओएमजी 2’ से बदली है हालांकि उस फिल्म की सफलता का अधिकतर श्रेय इसके दो मुख्य कलाकारों पंकज त्रिपाठी और यामी गौतम को जाता है। फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ अक्षय कुमार की सोलो फिल्म है। इन दिनों हालांकि वह सोलो फिल्में करने से बच रहे हैं और ऐसी फिल्में ही अधिक कर रहे है जिनमें फिल्मों को संभालने की जिम्मेदारी उनके साथ साथ कुछ और मुख्य कलाकार भी निभाएं लेकिन अप्रत्याशित रूप से ये अच्छी फिल्म बन पड़ी है और इसमें एक सरदार की वेशभूषा में अक्षय कुमार ने खासा प्रभावित भी किया है। घर में पत्नी के गर्भवती होने और उसे डॉक्टर को दिखाने ले जाने की तारीख होने के बावजूद गिल जब अपना कर्तव्य निभाने मैदान में आ डटता है तो दर्शकों की सहानुभूति इस किरदार के साथ अपने आप आ जुटती है। अक्षय ने भी अपनी चिर परिचित हरकतों को किनारे रख यहां संजीदा अभिनय किया है और फिल्म को आखिर तक संभाले रखा है।

सहायक कलाकारों की टीम

आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘लगान’ की तरह निर्देशक सुरेश टीनू देसाई ने यहां भी सहायक कलाकारों की एक लंबी फौज कहानी को संभाले रखने के लिए अपने साथ ली है। और, उन्हें इसमें मदद भी खूब मिलती है। खासतौर से उज्ज्वल के रूप में कुमुद मिश्रा, पाशु के रोल में जमील खान, भोला के किरदार में रवि किशन और जुगाड़ वाले तकनीशियन के रूप में पवन मल्होत्रा ने फिल्म में सराहनीय काम किया है। बचन पचेरा, सुधीर पांडे, मुकेश भट्ट और ओंकार दास मानिकपुरी जैसे परिचित चेहरों की मौजूदगी भी फिल्म का तनाव बनाए रखने में मदद करती है। दिब्येंदु भट्टाचार्य, राजेश शर्मा और शिशिर शर्मा ने फिल्म के स्याह रंगों को संभाला है। फिल्म में परिणीति चोपड़ा के जिम्मे दो गाने और चार पांच दृश्य ही आए हैं लेकिन फिर भी उनकी मौजूदगी फिल्म को जहां जरूरी होता है वहां एक भावुक मोड़ देने के काम आती रहती है।

डायरेक्शन और राइटिंग

कहानी का विषय ही ऐसा ही कि यदि इसे अच्छी तरह से प्रजेंट नहीं किया जाता तो इसकी आत्मा खत्म हो जाती. यहां निर्देशक टीनू सुरेश देसाई की तारीफ करनी होगी. देसाई ने फिल्म के पहले शॉट से लेकर क्लाइमैक्स तक पकड़ बनाए रखी है. भय, रोमांच, विश्वास को उन्होंने बखूबी दर्शाया है, जो दर्शकों को पूरे टाइम बांधे रखता है. फर्स्‍ट हाफ में चीजें ब‍िल्‍डअप करने से लेकर सेकंड हाफ में क्‍लाइमैक्‍स तक, कहानी कहीं भी रोमांच को ढीला नहीं पड़ने देती है.ये फिल्म डायरेक्ट की है टीनू देसाई ने, रुस्तम के बाद ये टीनू की अक्षय कुमार के साथ दूसरी फिल्म है और इस फिल्म में वो हमें बिल्कुल भी निराश नहीं करते. लगभग 7 साल में टीनू का विजन और उनके डायरेक्शन में काफी बदलाव आया है और ये बदलाव इस फिल्म में नजर भी आ रहा है. ये कॉन्सेप्ट है पूनम गिल यानी जसवंत गिल की बेटी का और इस कहानी का स्क्रीनप्ले विपुल के रावत ने लिखा है.‘मिशन रानीगंज’ के निर्देशन की बात करें तो इस फिल्म की कहानी के साथ-साथ डिटेलिंग भी आपको प्रभावित कर देगी. फिल्म में 80 के दशक को दिखाने की बेहतरीन कोशिश की गई है. उस समय का माहौल, लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े और उनकी भाषा इन सभी का काफी ध्यान रखा गया है. फिल्म में पुराने जमाने की कारों का इस्तेमाल किया गया है. इस रेस्क्यू मिशन के दौरान डॉक्यूमेंट्री की तरह कहानी एक ही स्पीड से आगे नहीं बढ़ती. कभी ये टेंशन के माहौल में भी आपको हंसती है, तो कभी हंसते-हंसते तुरंत रुलाती है. शुरुआत और एंडिंग पता होने के बावजूद आप इस फिल्म से कनेक्ट होते हैं और यही टीनू की सबसे बड़ी सफलता है.

सिनेमाटोग्राफी, म्यूजिक और तकनीक

फिल्म की एडिटिंग का कहानी को दिलचस्प बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. खदान की डिटेलिंग और अंधेरे में की गई लाइटिंग और खदान बनाकर की गई शूटिंग में असीम मिश्रा की सिनेमाटोग्राफी फ्लाइंग कलर से पास हुई है. फिल्म में गाने कुछ खास नहीं हैं, लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक कमाल का है, जिसकी वजह से हर सीन और ज्यादा दिलचस्प बना है. फिर चाहे वो खदान में पानी भरना, रेस्क्यू के लिए कैप्सूल बनाना, या फिर फिल्म का क्लाइमेक्स हो.

टीनू सुरेश देसाई के निर्देशन में बनी अक्षय कुमार स्टारर फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ आपको ढ़ाई घंटे तक लगातार बांधे रखती है। सच्ची घटना पर आधारित ये फिल्म रियल मायनों में देशभक्ति वाली भावनाओं से भरपूर है.. और कई जगह आपको इमोशनल करती है।अपने आस-पास सुपर हीरो ढूंढने वालों को ये फिल्म सिखाती है कि आपकी कहानी के हीरो आप खुद बन सकते हो, लेकिन इसके लिए जरूरी है मुश्किलों का सामना करना. हर किसी के अंदर एक जसवंत सिंह गिल होता है, जो सही सोच और हिम्मत के साथ हर नामुमकिन चीज मुमकिन कर देता है.

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