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समलैंगिक संबंधों के लिए समाज में एक स्वीकृति, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी


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नई दिल्लीः समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है.भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई शुरू की। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच द्वारा मामले की सुनवाई की जा रही है. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में राज्यों को भी पार्टी बनाया जाए.

एसजी मेहता ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम में कोई कानूनी कमी नहीं है और सवाल सामाजिक-कानूनी मंजूरी देने का नहीं है। उन्होंने अदालत को अवगत कराया कि यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण के प्रावधान हैं। सरकार और समाज की मान्यता के बाद भी कई कानूनी सवालों के जवाब नहीं मिल रहे, क्योंकि वो व्यवहारिक सवाल है. रोहतगी ने कहा कि विवाह के बहुत से प्रकार हैं, लेकिन समय-समय पर इसमें सुधारात्मक बदलाव भी हुए हैं. बहु विवाह, अस्थाई विवाह जैसी चीजें अब इतिहास का हिस्सा हैं. 1905 में हिंदू विवाह अधिनियम आया. इन कानूनी और संवैधानिक बदलावों में आईपीसी की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर निकलने के दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले भी हैं.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आने वाली पीढ़ियां ये ना कहें कि हमने इस मुद्दे को अदालत के ध्यान में नहीं दिलाया. हर राज्य में शादी को लेकर अलग नियम हैं. राज्य के विचार को ध्यान में रखा जाना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल केंद्र का अनुरोध ठुकरा दिया है और केंद्र की पहले मामले के सुनवाई योग्य होने पर सुनवाई की मांग नहीं मानी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र की बात बाद में सुनेंगे.

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