मसाने की होली : काशी में खेली जाती है चिता के भस्म की होली
नई दिल्ली – काशी में होली खेलने की परंपरा सबसे अलग है. काशी नगरी को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है. यहां हरिश्चंद्र घाट और मणिकर्णिमा घाट है. यहां हर दिन चिताएं जलती रहती है और शवयात्रा का सिलसिला लगा रहता है. लेकिन मातम पसरे इस घाट में साल का एक ऐसा दिन आता है जब यहां होली खेली जाती है वो भी रंगों से नहीं बल्कि चिताओं की भस्म से. यदि आपसे कहा जाए कि, रंग-गुलाल नहीं बल्कि श्मशान घाट में चिताओं के भस्म से होली खेले तो यह सुनकर आप शायद डर जाएंगे. लेकिन काशी में ऐसी ही विचित्र होली खेली जाती है. मान्यता है कि भगवान शिव यहां रंग-गुलाल नहीं बल्कि चिताओं के भस्म से होली खेलते हैं.
ये त्योहार शमशाम पर खुशी के साथ मनाते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां कभी चिता की आग ठंडी नहीं होती है क्योंकि अंतिम संस्कार के लिए शवों की लाइन लगी रहती है. लोग अपने परिजनों की मृत्यु का शोक यहां मनाते हैं और पूजा करवाते हैं जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले. मगर होली के करीब 3-4 दिन पहले रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मसान होली मनाई जाती है. मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी पर अपने भक्तों के साथ होली खेलने आते हैं. मणिकर्णिका घाट पर बाबा अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली भी खेलते हैं.
बाबा विश्वनाथ खुद इस घाट पर विराजमान रहते हैं और भूत, प्रेत, पिशाच जैसी बुरी शक्तियों को इंसानों के बीच जाने से रोकते हैं. मसान होली की शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाशमशान नाथ की आरती से होती है. इसका आयोजन डोम राजा का परिवार करता है और यहां मसाननाथ की मूर्ति पर पहले गुलाल उसके बाद चिता भस्म लगाने के साथ होली की शुरुआत होती है.