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रामचरितमानस पर विवाद सीएम योगी ने दी प्रतिक्रिया


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नई दिल्ली – मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस पर टिप्पणी की तो उसके कुछ ही दिन बाद यूपी में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस की चौपाई पर विवाद छेड़ कर सियासत को अगड़ा बनाम पिछड़ा का शक्ल देने की पूरी कोशिश की. सवाल है कि क्या इसी बुनियाद पर समाजवादी पार्टी और आरजेडी 2024 के आम चुनाव में बीजेपी की हैट्रिक रोकेगी?

सपा प्रमुख की ओर से इनकी वकालत करने से पहले उन्हें लखनऊ स्टेट गेस्ट हाउस के दिनांक 2 जून सन 1995 की घटना को भी यादकर अपने गिरेबान में जरूर झांककर देखना चाहिए, जब सीएम बनने जा रही एक दलित की बेटी पर सपा सरकार में जानलेवा हमला कराया गया था।बसपा मुखिया ने कहा कि यह जगजाहिर है कि देश में एससी, एसटी, ओबीसी, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों आदि के आत्म-सम्मान एवं स्वाभिमान की कद्र बीएसपी में ही हमेशा से निहित व सुरक्षित है, जबकि बाकी पार्टियां इनके वोटों के स्वार्थ की खातिर किस्म-किस्म की नाटकबाजी ही ज्यादा करती रहती हैं।

इन बयानों से समझ में आ गया होगा कि यूपी में जातियों के चक्रव्यूह में बीजेपी के विजयी रथ को रोकने की तैयारी शुरु हो चुकी है. अखिलेश के पुराने सहयोगी सपा से नाराज हैं, जबकि बीजेपी को पता है कि मामला गंभीर है. बयानों पर डिप्टी सीएम और प्रदेश में बीजेपी का मजबूत ओबीसी चेहरा केशव मौर्य सामने आए और कहा- समाजवादी पार्टी का इस समय अभियान चल रहा है कि जैसे दूध में नींबू डालकर फाड़ने का काम किया जाता है उसी तरह समाज को बांटे, लेकिन उनकी ये साजिश सफल नहीं होगी.

फिलहाल, अगला-पिछड़ा की लड़ाई में बीजेपी को बसपा सुप्रीमो के बयान से राहत मिली है. मायावती ने रामचरितमानस विवाद पर सपा को निशाने पर लेते हुए ट्विटर पर लिखा, “देश में कमजोर व उपेक्षित वर्गों का रामचरितमानस व मनुस्मृति आदि ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संविधान है जिसमें बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने इनको शूद्रों की नहीं बल्कि एससी, एसटी व ओबीसी की संज्ञा दी है. अतः इन्हें शूद्र कहकर सपा इनका अपमान न करे तथा न ही संविधान की अवहेलना करे.”उधर अखिलेश यादव ने बिना नाम लिए ही मायावती पर निशाना साधा और कहा, उत्तर प्रदेश और देश की जनता जानती है कि कौन सा दल भारतीय जनता पार्टी की मदद कर रहा है.

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