नई दिल्ली – राजधानी भोपाल में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। इस दिन को याद कर आज भी भोपाल के लोग सहम उठते हैं, आज भी लोगों के मन से दर्द निकला नहीं है। लेकिन सबसे बड़ा दर्द यह है कि इस घटना के मुख्य आरोपी को कभी सजा ही नहीं हुई, जिसके लिए लोग राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन और उसकी मूल कंपनी के साथ सांठगांठ करने का आरोप लगाते रहे हैं।
घटना के चश्मदीद आज भी वह डरावनी रात को याद करके सहम जाते हैं। गैस कांड की पीड़िता बसंती बाई ने बताया कि वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती। जो मेरी आंखो के सामने गिरा वो वापस नहीं उठा। ऐसा लग रहा था, जैसे कोई मौत का खेल खेल रहा है। जहां देखो चारों तरफ अफरा-तफरी और सफेद कपड़ों में लाशें नजर आ रही थी। अपने बच्चों को लेकर लोग इधर से उधर भाग रहे थे।
साल 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से गैस का रिसाव होने लगा। दरअसल यहां पर प्लांट को ठंडा रखने के लिए मिथाइल आइसोसायनाइड नाम की गैस को पानी के साथ मिलाया जाता था लेकिन उस रात इसके कॉन्बिनेशन में गड़बड़ी हो गई और पानी लीक होकर टैंक में पहुंच गया। इसके बर्फ प्लांट के 610 नंबर टैंक में तापमान के साथ प्रेशर बढ़ गया। इसके बाद गैस रिसाव तेजी से होने लगा। देखते ही देखते हालत बेकाबू हो गए और जहरीले के पूरे भोपाल शहर में फैल गई। यह गैस हवा के साथ मिलकर आसपास के इलाकों में फैल रही थी। इसके बाद भोपाल में लाशों के ढेर लग गए। अस्पतालों पर मरीजों की लंबी लाइन लग गई।
2 और 3 दिसंबर की रात हुए इस हादसे में लगभग 45 टन खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनेट गैस एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई थी, जिससे हजारों लोग मौत की नींद सो गए थे। यह औद्योगिक संयंत्र अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी का था। लीक होते ही गैस आसपास की घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई थी और इससे 16000 से अधिक लोग मारे जाने की बात सामने आई, हालांकि सरकारी आंकड़ों में केवल 3000 लोगों के मारे जाने की बात कही गई।