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विज्ञान

मानव स्वास्थ्य में खून में सीधे डालीजा सकेगी ऑक्सीजन


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मुंबई – मानव शरीर फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्तित्व के संघर्ष की स्थिति में पहुंच जाता है. कोविड-19 इसका सबसे ताजा उदाहरण हैं भारत में ही कोविड की दूसरी लहर में वेंटीलेटर (Ventilator) की कमी ने बहुत से लोगों की सिर्फ ऑक्सीजन कमी से जान ले ली थी. बहुत से मामलों में मरीजों को वेंटीलेटर पर रखना पड़ा था. वैज्ञानिकों ने अब एक नई तकनीक विकसित की है जो वेंटीलेटर की कार्यप्रणाली को बहुत बेहतर बना सकती है.

ऑक्सीजन ना केवल शरीर में डाली जा सकती है और खून भी शरीर में वहीं रह सकता है जहां वह है. रीफैक्ट्री हाइपॉक्सेमिया जैसे विकार में यह तरीका जीवनरक्षक साबित हो सकता है. इसमें विकार में मरीज वेंटीलेटर पर तक चला जाता है. इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने अपने शोधपत्र में लिखा है कि यदि यह तकनीक सफल होती है तो यह रिफैक्ट्री हाइपॉक्सेमिया के विकार में वेंटीलेटर संबंधी फेफड़ों में चोट जैसी घटनाओं को कम कर खत्म करने भी मदद कर सकती है.

ऑक्सीजन से भरे तरल पदार्थ को छोटे होते जाने वाले नोजल के जरिए खून में मिलाया जाता है. जब तक प्रक्रिया पूरी होती है, तक बुलबुले लाल रक्त कोशिकाओं से भी छोटे हो जाते हैं. इसका मतलब है कि उन्हें इंजेक्शन के जरिए सीधे खून में मिलाया जा सकता है. इस तकनीक का फायदा यह होगा इससे रक्त धमनियों में अवरोध भी पैदा नहीं होता है.

फिलहाल वेंटीलेटर मशीनें किसी भी इलाज में कारगर उपाय नहीं मानी जाती हैं. इनका इस्तेमाल भी खर्चीला होता है और इनसे संक्रमण और फेफड़ों के चोटिल होने जैसी कई तरह की समस्याएं भी पैदा हो सकती है. इस परंपरागत यांत्रिक वेंटीलेशन के लिए अलावा एक एक्स्टा कोर्पोरियल मेम्बरेन ऑक्सीजनेशन तकनीक भी है, जिसमें खून शरीर के बाहर निकाला जाता है उसके बाद खून में से ऑक्सीजन डाली और कार्बन डाइऑक्साइड निकाली जा सकती है.

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