पूरी दुनिया ने जंग में अकेला क्यों छोड़ा यूक्रेन को? अमेरिका-नाटो क्यों डर रहे हैं पुतिन से
नई दिल्ली : यूरोप में छिड़ी जंग में यूक्रेन अकेला छूट गया है। उसे रूस के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है। रूसी टैंक यूक्रेन की राजधानी से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर खड़े हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि 96 घंटे के अंदर राजधानी कीव पर रूस का कब्जा होगा और एक सप्ताह के अंदर यूक्रेन की सरकार भी गिरा दी जाएगी।
ऐसे में सवाल उठता है कि, अमेरिकी समर्थन वाला यूक्रेन इस जंग में इतना अलग-थलग क्यों पड़ गया? आखिर क्यों नाटो सदस्य देश और अमेरिका सीधे तौर पर रूस से टकराने से क्यों पीछे हट रहे हैं। सीधे हमले के बजाय वे बस बयानबाजी और प्रतिबंधों तक क्यों सीमित हैं?
बता दें, पुतिन से सीधे टकराना इतना आसान नहीं है। हालांकि रूस के राष्ट्रपति पुतिन से टकराना किसी भी देश के लिए आसान नहीं है। यह बात अमेरिका भी जानता है। यही कारण है कि अमेरिका ने सीधे तौर पर कहा दिया कि वह अपनी सेना यूक्रेन में नहीं भेजेंगे। ऐसा ही संदेश नाटो की ओर से भी दिया गया है। इसका मतलब है कि, यूक्रेन को यह जंग अकेले ही लड़नी पड़ेगी।
डर रहे यूरोपीय देश भी
रूस पर सीधे हमले से यूरोपीय देश भी पीछे हट रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है, इन देशों की रूस पर निर्भरता। दरअसल, यूरोपीय देश ऊर्जा के लिए बहुत हद तक रूस पर निर्भर हैं। यूरोपीय संघ के कई देश, जो नाटो सदस्य भी हैं अपनी प्राकृतिक गैस आपूर्ति का 40 फीसदी हिस्सा रूस से प्राप्त करते हैं।
ऐसे में अगर रूस गैस और कच्चे तेल की सप्लाई रोक देता है, तो यूरोप बड़े ऊर्जा संकट की कगार पर खड़ा हो जाएगा। बिजली व पेट्रोलियम उत्पादों पर महंगाई कमर तोड़ सकती है। यह बात सभी देश जानते हैं। इसलिए यूरोपीय देश सीधे तौर पर रूस से टकराने से हिचक रहे हैं।
रूस पर प्रतिबंधों का कुछ खास असर नहीं
अमेरिका व अन्य कई देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इसके बावजूद रूस रुकने के लिए तैयार नहीं है। दरअसल, रूस ने अपनी ताकत को इस कदर बढ़ाया है कि, यह देश किसी भी तरह के प्रतिबंध से बहुत प्रभावित होने वाला नहीं है।
अमेरिका व नाटो देशों द्वारा सीधे हमला न करने का एक कारण यह भी है। दरअसल, जनवरी में रूस का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार 630 अरब डॉलर था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि इसमें से महज 16 फीसदी हिस्सा ही डॉलर के तौर पर रखा है। जबकि, पांच वर्ष पहले यह 40 फीसदी था।
चीन का साथ
अमेरिका यह बात भी जानता है कि चीन एशिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक है और पिछले कुछ सालों में रूस और चीन के बीच करीबी बढ़ी है। वहीं अमेरिका पहले से चीन से दुश्मनी मोल ले चुका है। ऐसे में अगर रूस पर सीधा हमला होता है, तो चीन का साथ उसे जरूर मिलेगा। इसलिए, शक्तिशाली देशों के बीच टकराव हर किसी के लिए नुकसानदायक होगा।
इसके अलावा,सबसे बड़ी बात हैं कि रूस परमाणु शक्ति से सम्पन्न राष्ट्र है। उसके पास हथियारों को बड़ा जखीरा है। दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक रूस के पास है।
वहीं दूसरी तरफ रूस अपनी मिसाइल टेक्नोलॉजी से किसी को भी धूल चटाने की ताकत रखता है। पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि यूक्रेन मामले में किसी ने भी दखल दी तो वह इतिहास का सबसे बुरा अंजाम देखेगा। इसलिए अमेरिका व नाटो सदस्य राष्ट्र जानते हैं कि पुतिन से सीधे टकराने का मतलब भारी तबाही होगी।