Close
टेक्नोलॉजी

पृथ्वी के जीवन का होगा अंत, जानें वज़ह


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

नई दिल्लीः वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि पृथ्वी पर जीवन का अंत दम घुटने से हो सकता है। उन्होंने कहा कि दूसरे ग्रह पर जीवन की तलाश करनी होगी। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के वायुमंडल में एक नाटकीय बदलाव का अनुमान लगाया है, जिससे यह लगभग 2.4 अरब साल पहले ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट (GOE) से पहले जैसी स्थिति में लौट सकता है। इस घटना ने, जिसमें वायुमंडलीय ऑक्सीजन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिसने हमारे ग्रह के पर्यावरण को मौलिक रूप से बदल दिया है और मनुष्यों और सभी जीव-जंतुओं के जीवन को जीने के लिए सक्षम किया। हालांकि, साल 2021 में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि यह ऑक्सीजन-समृद्ध अवधि पृथ्वी के इतिहास की स्थायी विशेषता नहीं हो सकती है।

पृथ्वी में बदलाव

पृथ्वी में दो तरह के बदलाव हो रहे हैं. एक वे प्रक्रियाएं जो लाखों सालों से चल रही हैं और पृथ्वी को अलग अलग दौर में ले जाने का काम करती हैं. इससे होने वाले बदलाव पृथ्वी पर दूरगामी प्रभाव देते हैं. वहीं दूसरी तरफ वे बदलाव जो की बहुत तेजी से होते हैं लेकिन उनके असर बहुत गहरे होते हैं और यहां तक उनसे पृथ्वी की प्रक्रियाओं में बड़ा या लंबे समय तक रहने वाला बदलाव आ जाता है मानव जनित क्रियाओं के कारण होने वाला जलवायु परिवर्तन भी इसी का हिस्सा है. लेकिन लंबी प्रक्रियाओं में बदलाव के लिहाज से यह अध्ययन कई तरह की संवेदनशील जानकारी देने वाला है जिसके असर पृथ्वी के बार जीवन की तलाश संबंधी शोधों को बढ़ावा देगा.अध्ययन से ये भी संकेत मिलता है कि अगले अरब वर्षों के भीतर, तेजी से डीऑक्सीजनेशन की घटना घट सकती है, जिससे आर्कियन पृथ्वी के समान मीथेन गैस से भरा वातावरण बन सकता है। यह परिवर्तन मानव सभ्यता सहित ऑक्सीजन पर निर्भर जीवन के अंत का प्रतीक होगा, जब तक कि हम अपने इस ग्रह को छोड़ने के साधन विकसित नहीं कर लेते।

वायुमंडल में एक नाटकीय बदलाव

वैज्ञानिकों ने आंकलन किया है कि पृथ्वी की वायुमंडल में एक नाटकीय बदलाव हो रहा है जिससे वह उस अवस्था में पहुंच जाएगी जो 2.4 अरब साल पहले हुए ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट (जीओई) के ठीक पहले थी. इस घटना की वजह से पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा बहुत अधिक हो गई थी जिससे पृथ्वी की पर्यावरण बहुत बदल गया था और वह जीवन पनप सका जिसमें इंसानों का वर्चस्व है.

हमेशा नहीं था, हमेशा नहीं होगा

लेकिन ऑक्सीजन से समृद्ध होने के यह दौर हमेशा ही पृथ्वी की इतिहास का हिस्सा नहीं था और दो साल पहले प्रकाशित हुए शोध के अनुसार यह हमेशा पृथ्वी का हिस्सा रहेगा भी नहीं. इसके मुताबिक अगले एक अरब सालों में पृथ्वी पर तेजी से डीऑक्सीजनेशन की घटना हो सकती है जिससे पृथ्वी के वायुमंडल में मीथेन हावी हो जाएगी जैसा कि आर्कियान पृथ्वी के दौर में हुआ करता था.

सूर्य की बढ़ती चमक और गर्मी से बढ़ सकती है परेशानी

शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के जीवमंडल के जटिल मॉडल का उपयोग किया, जिसमें सूर्य की बढ़ती चमक और बढ़ती गर्मी के कारण गैस के टूटने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में गिरावट को ध्यान में रखा गया। शोध की रिपोर्ट के मुताबिक CO2 के निम्न स्तर के साथ, पौधों जैसे प्रकाश संश्लेषक जीव कम हो जाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन उत्पादन में भारी गिरावट आएगी।

खत्म होगा जीवन का यह स्वरूप


इस बदलाव का नतीजा यह होगा कि पृथ्वी पर ऑक्सीजन पर निर्भर जीवन खत्म हो जाएगा जिसमें इंसानी सभ्यता तक शामिल रहेगी, अगर हमने अपने ग्रह को छोड़ने के तरीके विकसित नहीं कर लिए. शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के जैवमंडल के जटिल मॉडलों का उपयोग किया और सूर्य की बढ़ती चमक और बहुत ही अधिक गर्मी के कारण कार्बनडाइऑक्साइड के टूटने से उसकी कमी जैसे कारकों को शामिल किया.पिछली भविष्यवाणियों में सुझाव दिया गया था कि बढ़ते सौर विकिरण से पृथ्वी के महासागर लगभग 2 अरब वर्षों में वाष्पित हो जाएंगे, लेकिन लगभग 4,00,000 सिमुलेशन पर आधारित इस नए मॉडल से पता चलता है कि ऑक्सीजन की कमी सतह के पानी के नुकसान से पहले होगी और तत्काल रूप ले जीवन के लिए अधिक घातक साबित होगी।

ऑक्सीजन में आ रही है गिरावट

जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के पृथ्वी वैज्ञानिक क्रिस रेनहार्ड ने अनुमानित ऑक्सीजन की गिरावट की गंभीरता पर जोर दिया। उन्होंने न्यू साइंटिस्ट को बताया कि अनुमान से पता चलता है कि यह मौजूदा स्तर से दस लाख गुना कम है। इस तरह की भारी कमी से हमारा ग्रह एरोबिक जीवों के लिए दुर्गम हो जाएगा, जो वर्तमान में पृथ्वी पर पनप रहे अधिकांश जीवन रूपों के अंत का संकेत होगा।

इस शोध का अलौकिक जीवन की खोज पर महत्वपूर्ण प्रभाव है। जैसे-जैसे खगोलशास्त्री रहने योग्य ग्रहों की खोज के लिए तेजी से शक्तिशाली दूरबीनों का उपयोग कर रहे हैं, निष्कर्ष बताते हैं कि जीवन का संकेत देने के लिए ऑक्सीजन एकमात्र बायोसिग्नेचर नहीं हो सकता है। नासा के एनईएक्सएसएस (नेक्सस फॉर एक्सोप्लैनेट सिस्टम साइंस) प्रोजेक्ट का हिस्सा इस अध्ययन को सलाह देता है कि जीवन का पता लगाने की खोज में वैकल्पिक बायोसिग्नेचर पर भी विचार किया जाना चाहिए।

महासागर तक खत्म हो जाएंगे पर उससे पहले…


अधिक गर्मी से CO2 की कमी होने से फोटोसिंथेटिक जीव जैसे कि पौधे खत्म होने लगेंगे और ऑक्सीजन की मात्रा में भारी कमी देखने को मिलने लगेगी. पिछले अनुमान सुझाव देते हैं कि सौर विकिरण बढ़ने से पृथ्वी के महासागर 2 अरब सालों में वाष्पीकृत हो जाएंगे, लकिन 4 लाख सिम्यूलेशन वाले इस नए मॉडल का कहना है कि पानी खत्म होने से पहले ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी.

ओजोन परत को हो रहा है नुकसान

जापान में टोहो विश्वविद्यालय के काज़ुमी ओज़ाकी, जिन्होंने अध्ययन में सहयोग किया, ने डीऑक्सीजनेशन के बाद के वातावरण को ऊंचा मीथेन स्तर, कम CO2 और कोई सुरक्षात्मक ओजोन परत नहीं होने के रूप में वर्णित किया। इस भविष्य के परिदृश्य में, अवायवीय जीवन रूपों का प्रभुत्व होगा, जो ऑक्सीजन पर निर्भर प्रजातियों के लुप्त होने के बाद भी लंबे समय तक जीवन चक्र जारी रखेंगे।इस शोध के निहितार्थ गहरे हैं, जो बताते हैं कि पृथ्वी का ऑक्सीजन-समृद्ध युग ग्रह के कुल जीवनकाल का केवल 20-30 प्रतिशत ही रह सकता है। जैसा कि मानवता जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट की चुनौतियों से जूझ रही है, सुदूर भविष्य की यह झलक हमारे ग्रह की लगातार बदलती प्रकृति और उन स्थितियों की क्षणभंगुरता की याद दिलाती है जो जीवन का समर्थन करती हैं जैसा कि हम जानते हैं।

कैसा होगा तब का वायुमंडल

इस शोध का पृथ्वी के बाहर तलाशने वाले जीवन संबंधी शोधों पर खासा असर देखने को मिलेगा. जबकि खगोलविद नए और उन्नत उपकरणों के जरिए पृथ्वी जैसे ग्रहों की शिद्दत से तलाश कर रहे हैं. इस दौर के वायुमंडल के बारे में शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि उस समय के वायुमंडल में बहुत ही अधिक मात्रा में मीथेन होगी, कम मात्रा में कार्बनडाइऑक्साइड होगी और किसी भी तरह के ओजोन परत नहीं होगी.इन हालातों में अवायुजीवी वाले जीवन के सभी प्रारूप हावी होने लगेंगे और ऑक्सजीन पर निर्भर रहना वाला जीवन खत्म हे के बाद जीवन चक्र फिर भी चलता रहेगा. वहीं आज जब इंसान जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण विखंडन की चुनौतियों से घिरा हुआ है. यह अध्ययन सुदूर भविष्य की तस्वीर दिखाता है कि पृथ्वी बदलती ही रहेगी जैसे कि पहले होता रहा है. इतना ही नहीं इससे हमें भविष्य के विकल्पों की तलाश को भी जारी रखना चाहिए.

एस्‍टेरॉयड टकराने से खत्‍म होगी पृथ्‍वी?


2017 में नेचर डॉट कॉम में प्रकाशित सिमुलेशन से पता चलता है कि इस तरह पृथ्‍वी को नष्‍ट करने के लिए वास्तव में एक विशाल अंतरिक्ष चट्टान की जरूरत होगी. पृथ्वी पर सभी जीवन को नष्ट करने के लिए एक ऐसे प्रभाव की आवश्यकता होगी जो सचमुच महासागरों को उबाल देगा. इस बात के प्रमाण हैं कि पृथ्वी थिया नामक एक बड़े ग्रह से टकराई थी, लेकिन अब इतनी बड़ी वस्तुओं के टकराने की संभावना बेहद कम है.

क्‍या डीऑक्सीजनेशन से खत्‍म होगी पृथ्‍वी?


पृथ्‍वी पर हर कोई ऑक्सीजनेशन की वजह से जिंदा है. अगर यह खत्‍म हो गई तो पृथ्‍वी से जीवन अपने आप ही खत्‍म हो जाएगा. लगभग 2.5 अरब साल पहले, ग्रेट ऑक्सीडेशन इवेंट नामक एक घटना ने हमें पृथ्‍वी पर सांस लेने योग्य वातावरण दिया था, जिसपर अब हम सभी निर्भर हैं. सायनोबैक्टीरिया के विस्फोट, जिसे कभी-कभी नीला-हरा शैवाल भी कहा जाता है, ने पृथ्‍वी के वायुमंडल को ऑक्सीजन से भर दिया था, जिससे एक ऐसी दुनिया का निर्माण हुआ, जहां जीवन पनप सका. क्या डीऑक्सीजनेशन की घटना फिर से हो सकती है? हालिया नेचर कम्युनिकेशन अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही हमारे महासागरों में ऑक्सीजन के स्तर को कम कर रहा है, जिससे संभावित रूप से समुद्री प्रजातियां खत्म हो रही हैं.

गामा-किरण विस्फोट से खत्‍म होगी दुनिया?


गामा किरणों के विस्‍फोट की घटनाएं अबतक अन्‍य गैलेक्सी में देखी गई हैं. यह समुद्र के ऊपरी स्तरों में रहने वाले जीवों को मिटा देगी. यह पता चला है, गामा किरणें वायुमंडलीय ऑक्सीजन और नाइट्रोजन को तोड़ देती हैं. इससे ये गैसें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाती हैं, जिसे आमतौर पर स्मॉग के रूप में जाना जाता है, जो भारी प्रदूषित शहरों के ऊपर सूर्य की रोशनी को रोकती है. इस धुंध के पूरी पृथ्वी पर छा जाने से धूप नहीं निकलेगी और वैश्विक हिमयुग शुरू हो जाएगा.

Back to top button