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Khufiya Review : रहस्‍य और रोमांच के साथ विशाल और तब्बू की दमदार वापसी


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मुंबई – उपन्यासों के सिनेमाई रूपांतरण में फिल्‍ममेकर विशाल भारद्वाज का नाम अग्रणी है। शेक्‍सपियर के नाटकों पर आधारित उनकी फिल्‍में ‘ओंकारा’, ‘मकबूल’ और ‘हैदर’ हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्‍मों में शामिल होती हैं।अब उनकी फिल्‍म खुफिया अमर भूषण के उपन्यास ‘एस्‍केप टू नो वेयर’ पर आधारित है। सच्‍ची घटना पर आधारित इस उपन्‍यास का नायक केएम पुरुष है। हालांकि, विशाल का कहना है कि कोई पुरुष कलाकार इस भूमिका को निभाने को तैयार नहीं हुआ तो उन्‍होंने इसे महिला पात्र में परिवर्तित कर दिया।‘तलवार’ के बाद ‘खुफिया’ सत्‍य घटना पर आधारित विशाल की दूसरी फिल्‍म है। यहां पर भी रहस्‍य और रोमांच को गढ़ने में वह कामयाब रहे हैं।एक रॉ अफसर को एजेंसी में एक ऐसे इंसान का पता लगाने का जिम्‍मा सौंपा जाता है, जो गद्दार हो गया है। इस गद्दार के कारण रॉ के एक एजेंट की हत्या हो चुकी है। अब रॉ के एजेंट की मौत का बदला लेने के लिए संदिग्‍ध के ऊपर निगरानी रखी जा रही है। यह संदिग्‍ध एक जासूस भी है, एक प्रेमी भी। वह अपनी दोहरी पहचान के लिए जी रहा है। लेकिन क्‍या जिसे सब दोषी मान रहे हैं, वह वाकई गद्दार है?

2004 में लापता हुए एजेंट का सच्चा किस्सा

जासूसी उपन्यासों के शौकीनों के लिए फिल्म ‘खुफिया’ इस साल अब तक रिलीज हुई फिल्मों में बेहतरीन सौगात है। फिल्म चूंकि जासूसी कहानी है तो इसके बारे में कुछ भी बताना फिल्म देखने का मजा किरकिरा करने वाली बात होगी। लेकिन, जितना कुछ फिल्म के ट्रेलर में है, और जितना कुछ सार्वजनिक रूप से अखबारों, किताबों और सोशल मीडिया पर उपलब्ध है, उससे कोई भी दर्शक इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि 2004 में एकाएक लापता हुए रॉ एजेंट का अंजाम क्या हुआ था? एक विदेशी एजेंसी का भारत की सबसे प्रतिष्ठित जासूसी एजेंसी में सेंध लगा देना, और इस काम के लिए उसका जो तरीका है, वह हैरान कर देने वाला है। रोहन नरूला के साथ मिलकर विशाल ने इसकी पटकथा बिल्कुल सटीक लिखी है।

क्या है खुफिया की कहानी?

खुफिया 2004 में सेट है। भारत और पाकिस्तान बांग्लादेश में एक महत्वपूर्ण चुनाव पर गहरी नजर रख रहे हैं। भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर बातचीत चल रही है। इसमें अंकल सैम की भी दिलचस्‍पी है। शुरुआत में हम ढाका में जासूस आक्‍टोपस (अजमेरी हक) से परिचित होते हैं।घटनाक्रम कुछ ऐसे मोड़ लेते हैं कि उसकी हत्‍या हो जाती है। उसके कत्ल से वरिष्‍ठ खुफिया रॉ एजेंट कृष्‍णा मेहरा उर्फ के एम (तब्‍बू) बौखला जाती है। पता चलता है कि दिल्‍ली में रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) में कोई गोपनीय सूचनाएं लीक कर रहा है। शक की सुई खुफिया विभाग का अधिकारी रवि मोहन (अली फजल) पर जाती है, जिसका रहन-सहन उसकी आय से मेल नहीं खाता।

वही खुफिया जानकारी लीक कर रहा है। रवि के परिवार में उसकी मां (नवनींद्र बहल), पत्‍नी चारू (वामिका गब्‍बी) और एक छह साल का बेटा है। उसके खिलाफ सुबूत जुटाने के लिए खुफिया विभाग एक टीम तैयार करता है। उसके घर में गोपनीय कैमरे लगाए जाते हैं। केएम की निजी जिंदगी की झलक मिलती है। रवि वाकई गद्दार हैं? अगर हां तो वह किसके हाथ की कठपुतली है? खुफिया विभाग क्‍या उन तक पहुंच पाएगा कहानी इस संबंध में हैं।

खुफिया का डायरेक्शन

विशाल भारद्वाज देसी सिनेमा के माहिर हैं. वह हार्टलैंड की शानदार कहानियां भी लेकर आए हैं. लेकिन यहां वह चूक गए हैं. स्पाई ड्रामा में जिस तरह की बारीकियों को ध्यान में रखता है, वह उस पर फोकस नहीं कर पाए हैं. यह खामियां फिल्म देखते ही एकदम पकड़ में आ जाएंगी. चाहे वह उस दौर की बीरीकियां हों या फिर आतंकवादियों पर नजर रखती एजेंट. चीजें बहुत ही बचकानी नजर आती हैं. कुल मिलाकर डायरेक्शन के मामले में विशाल कसौटी पर खरा नहीं उतर पाते हैं.विशाल भारद्वाज ने जिस उपन्यास से यह कहानी ली है, वह रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) की काउंटर एस्पियनेज यूनिट के पूर्व प्रमुख ने लिखी है। लिहाजा, फिल्‍म के स्‍क्रीनप्‍ले में भी जासूसी के तकनीकी पक्षों का पूरा खयाल रखा गया है। यही कारण है कि पर्दे पर जब एजेंसी के लोग कोड को डिकोड करने, गुप्त सूचनाओं तक पहुंचने, दफ्तरों में बगिंग और एजेंट्स के डबल क्रॉस करने जैसे एक्‍शन में जुटते हैं, तो यह सब बहुत ही प्रामाणिक लगता है।पर्दे पर जासूसों को लेकर दर्शकों की दिलचस्‍पी हमेशा से रही है। यहां भी विशाल भारद्वाज ने कई ऐसे फौलादी गुर्गे शामिल किए हैं, जो आपको चौंका देंगे। जिस टीम का नेतृत्व KM या उसके बॉस जीव (आशीष विद्यार्थी) कर रहे हैं, वह जितनी मानवीय है उतनी ही कठोर दिल वाली भी है। फिल्‍म में एक जगह जीव कहते हैं, ‘हमारे जिस्म में दिमाग धड़कता है, दिल नहीं।’

खुफिया में स्टार कास्ट

खुफिया में तब्बू ने अच्छी एक्टिंग की है. तब्बू की बांग्लादेशी एक्ट्रेस अजमेरी हक बधोन के साथ रोमांटिक कनेक्शन भी बॉलीवुड में बहुत ज्यादा एक्सप्लोर किया गया कॉन्सेप्ट नहीं है. तब्बू अपने किरदार में जमी हैं और अजमेरी ने उनका साथ अच्छे से दिया है. उनका किरदार काफी इम्प्रेसिव है. इसके अलावा अली फजल, वामिका गब्बी और बाकी एक्टर सामान्य हैं. लेकिन नवनींद्र बहल की एक्टिंग शानदार है. नवनींद्र ने अली फजल की मां का रोल किया है और उस किरदार को विशाल भारद्वाज ने मजबूती से गढ़ा है और नवनींद्र की तारीफ इस किरदार के लिए बनती है.

खुफिया का वर्डिक्ट

विशाल भारद्वाज एक खास तरह का सिनेमा लेकर आते हैं. यह फिल्म उससे कुछ अलग है. हालांकि शेड वैसे ही समेटे हुए है. टॉपिक अच्छा है, लेकिन कहानी के साथ ट्रीटमेंट कमजोर है. जिन्हें विशाल भारद्वाज का सिनेमा पसंद है और स्तरीय स्पाई फिल्में देखने का शौक है, उन्हें खुफिया देखकर जरूर निराशा हो सकती है.

विशाल भारद्वाज का वनवास पूरा

फिल्म ‘खुफिया’ बनाने में विशाल भारद्वाज ने वे सारी मेहनतें की हैं जो अमूमन अपनी हर फिल्म में करते आए हैं। वह निर्माता भी हैं, लेखक भी हैं, गीतकार भी हैं, संगीतकार भी हैं और इस बार तो गायक भी हैं। राहुल राम से उन्होंने कबीर और रहीम के दोहे गवाए हैं। अरिजीत और सुनिधि को उन्होंने गुलजार के लिखे मौसम के राग दिए हैं। रेखा भारद्वाज तो अर्धांगिनी ही हैं और हर अरण्य में उनके साथ ही रहती हैं। अरसे बाद विशाल भारद्वाज ने भी हर डिपार्टमेंट में अपना सौ फीसदी देने की कोशिश की है और कोई 14 साल बाद बतौर निर्देशक उनकी तारीफ करते हुए ये कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं कि उनका एक रचनाकार के तौर पर पुनर्जनम हो चुका है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई साल की ये बेहतरीन हिंदी फिल्म है और अब आगे कोई दूसरी बड़ी हिंदी फिल्म इस ओटीटी पर बाकी बचे तीन महीनों में आ भी नहीं रही तो इसी को इस ओटीटी की साल की सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का तमगा आसानी से दिया जा सकता है। कुछ तमगे इस फिल्म को इस साल के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जब भी बटेंगे, तब भी मिलना पक्का तय है।

फिल्‍म में तब्बू ने एक तेज तर्रार जासूस और एक प्रेमी के साथ ही नौकरी और परिवार के बीच फंसी एक महिला के रूप में बेहतरीन काम किया है। वह हर अंदाज में गजब तरीके फिट बैठती हैं। उनके पूर्व पति के रोल में अतुल कुलकर्णी की भूमिका छोटी है, लेकिन दमदार है। अली फजल अपने टॉप फॉर्म में हैं। एक गद्दार के रूप में उन्‍होंने इस किरदार को जीने का काम किया है। वामिका गब्बी एक प्यारी औ साहसी बीवी, एक मां के किरदार में अपनी चमक दिखाती हैं। बांग्लादेशी एक्‍ट्रेस अजमेरी हक बधोन ने भी अपने छोटे के रोल में छाप छोड़ी है।अपराधी को पकड़ने के लिए बिछाए गए जाल के रोमांच के अलावा, कहानी में जो ट्व‍िस्‍ट्स हैं, वो रोमांच बढ़ाते हैं। इसके साथ ही फिल्‍म यह भी बताती है कि जासूसों के पर्सनल लाइफ में क्या रहस्य हो सकते हैं। 2 घंटे और 37 मिनट तक यह फिल्म ध्यान भटकाए बिना अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती रहती है। हालांकि, सेकेंड हाफ में कहीं-कहीं यह पकड़ भी खो देती है।खुफिया’ का म्‍यजिक भी अपीलिंग है। कवि और गीतकार गुलजार साहब के साथ विशाल भारद्वाज ने फिर से जादू किया है। फिर चाहे रेखा भारद्वाज का गाया ‘मत आना’ हो, या राहुल राम का ‘मन ना रंगाव’। ये गाने फिल्‍म के साथ भी और फिल्‍म के बाद भी आपके साथ रहते हैं।

ओटीटी पर आने वाली फिल्मों से लगातार उम्मीद कम होती जा रही है

ओटीटी पर आने वाली फिल्मों से लगातार उम्मीद कम होती जा रही है. इन फिल्मों के टीजर और ट्रेलर बांधने वाले होते हैं. इन्हें धमाकेदार अंदाज में प्रमोट भी किया जाता है. लेकिन आखिर में खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाले हालात ही नजर आते हैं. बड़े-बड़े डायरेक्टर ओटीटी के लिए फिल्में बना रहे हैं. लेकिन ये फिल्में देखने के बाद माजरा समझ आ जाता है कि इन फिल्मों का सिनेमाघरों में हाथ थामना डिस्ट्रिब्यूटर्स के बूते की बात नहीं. इसलिए इन्हें ओटीटी पर रिलीज कर दिया जाता है. ऐसी ही एक फिल्म इस हफ्ते नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. फिल्म का नाम है खुफिया. खुफिया नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है. डायरेक्टर विशाल भारद्वाज हैं. फिल्म में तब्बू, अजमेरी हक बधोन, अली फजल, वामिका गब्बी, आशीष विद्यार्थी, अतुल कुलकर्णी और नवनींद्र बहल जैसे एक्टर हैं. लेकिन एक अच्छी कहानी होने के बावजूद कमजोर एक्जिक्यूशन निराश कर देता है. 

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