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Lohri 2024: क्‍यों मनाते हैं लोहड़ी त्योहार, क्या है इसके पीछे की दुल्ला भट्टी कथा?


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नई दिल्लीः लोहड़ी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्‍यों के बड़े त्‍योहारों में से एक है. सिख और पंजाबी समुदाय के लोग इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं. हर साल 13 जनवरी को लोहड़ी का त्‍योहार मनाया जाता है. सिख समुदाय के लोग इस त्‍योहार को काफी धूमधाम से मनाते हैं और इस दिन अग्नि के इर्द-गिर्द परिक्रमा करते हैं. इस बीच अग्नि में गुड़, मूंगफली, रेवड़ी, गजक, पॉपकॉर्न आदि अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद परिवार के लोग और करीबी दोस्‍त, रिश्‍तेदार वगैरह मिलजुलकर ढोल-नगाढ़ों पर भांगड़ा और गिद्दा वगैरह करते हैं और एक दूसरे को लोहड़ी की बधाइयां देते हैं. आइए आपको बताते हैं कि इस त्‍योहार को क्‍यों मनाया जाता है, इसे लोहड़ी क्‍यों कहा जाता है और कौन हैं दुल्‍ला-भट्टी जिनकी कहानी (Dulla-Bhatti Story) के बगैर त्‍योहार की रस्‍में पूरी नहीं होतीं?

लोहड़ी शब्‍द का मतलब

लोहड़ी शब्‍द में ल का मतलब लकड़ी, ओह से गोहा यानी जलते हुए सूखे उपले और ड़ी का मतलब रेवड़ी से होता है. इसलिए इस पर्व को लोहड़ी कहा जाता है. लोहड़ी के बाद मौसम में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है और ठंडक का असर धीरे-धीरे कम होने लगता है. ठंड की इस रात में मनाए जाने वाले इस त्‍योहार के मौके पर लोग लकड़ी और उपलों की मदद से आग जलाते हैं, उसके बाद इसमें तिल की रेवड़ी, मूंगफली, मक्का आदि से बनी चीजों को अर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि लोहड़ी के बाद ठंड भी धीरे-धीरे कम होने लगती है.

क्‍यों मनाते हैं लोहड़ी त्योहार

इस पर्व के अवसर पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं. सभी लोग मिलकर भांगड़ा करते हैं. इस दिन लोहड़ी की आग में तिल, मूंगफली, गेंहू और गुड़ समेत कई चीजों को डाला जाता है और पूजा की जाती है. इस त्योहार पर बच्चों द्वारा घर-घर जाकर लकड़ियां एकत्र करने का ढंग बहुत रोचक है. इस दिन गाए जाने वाले पारंपरिक गीतों में से एक गीत बहुत लोकप्रिय है. माना जाता है कि इस गीत के बिना लोहड़ी का पर्व अधूरा है. क्या है वो गीत और उसके पीछे की धार्मिक कथा, आइए जानते हैं.

लोहड़ी की खास रस्‍में

  1. लोहड़ी के दौरान अलाव जलाने के बाद परिवार के सदस्‍य, दोस्‍त और दूसरे करीबीजन मिलजुलकर अग्नि की परिक्रमा जरूर करते हैं. परिक्रमा के दौरान तिल, मूंगफली, गजक, रेवड़ी, चिवड़ा आदि तमाम चीजें अग्नि में समर्पित की जाती हैं और बाद में इन्‍हें प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.
  2. लोहड़ी के मौके पर लोग नए वस्‍त्र पहनकर तैयार होते हैं. इसके बाद डांस जरूर किया जाता है. कई जगह ढोल-नगाड़े बजते हैं. पुरुष और स्त्रियां मिलजुलकर भांगड़ा और गिद्दा करते हैं. इन लोकनृत्य में पंजाब की विशेष शैली देखने को मिलती है.
  3. लोहड़ी के मौके पर कुछ खास पारंपरिक गीत गाए जाते हैं. लोग एक दूसरे के को गले मिलकर लोहड़ी की बधाई देते हैं. नई बहुओं के लिए ये दिन और भी विशेष होता है. ये चीजें लोहड़ी के पर्व को बेहद खास बना देती हैं.
  4. लोहड़ी के मौके पर दुल्‍ला भट्टी की कहानी जरूर सुनाई जाती है. इस कहानी के बिना लोहड़ी की रस्‍म पूरी नहीं मानी जाती.

कौन था दुल्ला भट्टी

अकबर के शासन काल में पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स रहा करता था. बताया जाता है कि दुल्ला भट्टी वाला एक नौजवान था जो हिंदू लड़कियों को बेचने का विरोध करता था। वो उन्हें चुपचाप कहीं ले जाकर किसी हिंदू लड़के से उनकी शादी करवा देता था। इस कारण उसे हिंदू परिवारों में बहुत पसंद किया जाता था और यही कारण है कि इस गीत में उसके प्रति आभार भी व्यक्त किया गया है। एक अन्य कहानी के मुताबिक एक गांव में सुंदरदास नामक किसान रहा करता था। उसकी सुंदरी और मुंदरी नाम की दो बेटियां थीं। इन दोनों लड़कियों की जबरदस्ती शादी करवाई जा रही थी। दुल्ला भट्टी ने मौके पर पहुंचकर इस शादी को रुकवा दिया था। इसके बाद दोनों लड़कियों की शादी खुशी-खुशी उचित वरों से करवाई गई।उस समय लोग मुनाफे के लिए लड़कियों को बेचकर उनका सौदा कर लेते थे. एक बार संदलबार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था. दुल्ला भट्टी ने सामान के बदले में इलाके की लड़कियों का सौदा होते देख लिया. इसके बाद उन्‍होंने बड़ी चतुराई से न सिर्फ उन लड़कियों को व्यापारियों के चंगुल से आजाद कराया, बल्कि उनके जीवन को बर्बादी से बचाने के लिए उनका विवाह भी करवाया. इसके बाद से दुल्‍ला भट्टी को नायक के तौर पर देखा जाने लगा. लोहड़ी पंजाब का बड़ा पर्व है और इसमें परिवार, दोस्‍त और करीबी, तमाम लोग इकट्ठे होते हैं, ऐसे मौके पर दुल्‍ला भट्टी की कहानी इसलिए सुनाई जाती है ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग इससे प्रेरणा लेकर घर की महिलाओं की हिफाजत करना सीखें, उनका सम्‍मान करें और जरूरतमंदों की मदद करें.

पंजाब में रहता था दुल्ला भट्टी

दुल्ला भट्टी मुगल शासक अकबर के समय पंजाब में रहता था। उसे नायक की उपाधि से भी से भी सम्मानित किया गया है। बताया जाता है कि दुल्ला भट्टी का समय मुगलों की गुलामी का था। कहा जाता है कि उस समय लड़कियों को बेचने का व्यापार होता था जहां पर वह गुलामी कर अमीरों की सेवा करती थी। सबसे अधिक अत्याचार हिंदुओं के परिवारों के साथ हो रहा था। कई ऐसी घटनाएं भी होती थी जिसमें शादी के मंडपों से हिंदू लड़कियों को उठाकर बेच दिया जाता था। दुल्ला भट्टी इन लड़कियों को मुगलों के इसी अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए आता था।

लोहड़ी अवसर पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं

लोहड़ी के त्योहार पर लोग आग जलाकर दुल्ला भट्टी का गीत गाते हैं। इस गीत के बोल हैं… सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन बेचारा हो। दुल्ला पठी वाला हो, दुल्ले ती विआई हो, शेर शकर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो , कुड़ी कौन समेटे हो, चाचा गाली देसे हो, चाचे चुरी कुटी हो ,जिम्मीदारा लूटी हो, जिम्मीदार सुधाये हो, कुड़ी डा लाल दुपटा हो, कुड़ी डा सालू पाटा हो, सालू कौन समेटे हो, आखो मुंडियों ताना ‘ताना’, बाग़ तमाशे जाना ‘ताना’ , बागों मनु कोडी लबी ‘ताना ‘कोडी दा मैं ‘ का ‘खरदिया ताना ‘ ‘का ‘ मैं गऊ नू दिता ‘ताना ‘ गऊ मनु दुध दिता ‘ताना ‘ दुध दी मैं खीर बनाई ‘ताना ‘ ,खीर मैं पंडित नू दिति ‘ताना ‘ पंडित ने मनु धोती दिति ‘ताना ‘ पाड़ पुढ़ के ‘काके’ दी लगोटी सीति ‘ताना ‘।

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