कोरोना गाइडलाइन के तहत पुष्कर मेले के आयोजन को मिली स्वीकृति
अजमेर – राजस्थान में अजमेर के पुष्कर में हर साल कार्तिक माह में अन्तरार्ष्ट्रीय पुष्कर मेले के आयोजन होता है। इस मेले में बड़े पैमाने पर ऊँटो की हराजी होती है। इसलिए इस मेले को ऊँटो का मेला भी कहा जाता है।
राजस्थान में अजमेर के पुष्कर में कार्तिक माह के अन्तरार्ष्ट्रीय पुष्कर मेले के आयोजन के लिए स्वीकृति मिल गई हैं और अब कोरोना गाइउलांइस के तहत इसका आयोजन किया जाएगा। पशुपालन विभाग की शासन सचिव डा. आरूषि मलिक ने गुरुवार देर शाम आदेश जारी कर कोरोना गाइडलाइनों के तहत श्री पुष्कर पशु मेला-2०21 के लिए स्वीकृति जारी कर दी। अभी तक धार्मिक मेले के लिए कोई निदेर्श नहीं दिए गए है। पांच से 21 नवम्बर तक दो हिस्सों में पशुमेला एवं पंचतीर्थ स्नान का धार्मिक मेला भरा जाना है। पशुमेला स्वीकृति के बाद पुष्करवासी, पशुपालक, होटल व्यवसायी व मेले से रोजगार हासिल करने वाले खुश नजर आ रहे है।
खास तौर पर कार्तिक पूर्णिमा से पहले बड़ी संख्या में यात्री पुष्कर आते है। पुष्कर सरोवर में कार्तिक स्नान का काफी महत्व है। इस दरमियान जब पशुओं की खरीद-फरोख्त बढ़ने लगी तो पशु मेले का आयोजन होने लगा। पुष्कर के धोरों में मेले के दौरान सतरंगी लोक संस्कृति की छटा बिखरने लगी। विदेशी पर्यटक भी इससे आकर्षित होने लगे। पशुओं के साथ आने वाले पशु पालकों के परिवार को खुले आसमान के नीचे खाना बनाते हुए देखना विदेशी पर्यटकों को लुभाने लगा।
पुष्कर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह देसी-विदेशी पर्यटकों पर निर्भर हो चुकी है। बीते पौने 2 वर्षों में पुष्कर के पर्यटन उद्योग को जबरदस्त झटका लगा है। कोरोना की वजह से विदेशी पर्यटकों का आवागमन बंद हो गया। वहीं देसी पर्यटकों की संख्या भी घट गई। वर्तमान में कोरोना प्रकोप थम गया है और हालात सामान्य हो चुके है। विदेशियों के आवागमन को भी छूट मिल चुकी है। पुष्कर के धार्मिक स्थान खुले हुए है। लेकिन धार्मिक आयोजनों पर अंकुश जारी है।
पुष्कर में विश्व का इकलौता ब्रह्मा का मंदिर है। शास्त्रों में पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरू बताया गया है। सदियों से देश के कोने-कोने से तीर्थ यात्री पुष्कर में आते रहे है। सदियों पहले जब परिवहन के साधन नहीं हुआ करते थे, तब कई यात्री अपने साथ पशु लेकर आते थे। धीरे-धीरे पुष्कर में पशुओं की खरीद-फरोख्त होने लगी।