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क्या आप जानते है नेवी में भी एयरफोर्स की तरह होते है पायलट


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नई दिल्ली – भारत की तीनो पाँख थल सेना, नेवी और वायु सेना देश की सुरक्षा के लिए हमेशा से तत्पर रहती है। भारतीय नेवी पानी में भारत की सुरक्षा के लिए तैयार रहती है तो एयर फोर्स हवा में दुश्मन को धूल चटाने की हिम्मत रखती है। जबकि थल सेना जमीन पर रहकर देश की बॉर्डर पर रहकर देश की रक्षा करती है। सभी सेनाओं का काम करने का तरीका और किसी भी ऑपरेशन को अंजाम देने का तरीका अलग-अलग होता है।

लेकिन क्या आप जानते हे की नेवी में भी कई रैंक के ऑफिसर होते है, जो जल में रहकर भारत की सीमा का ध्यान रखते है, जिनमें पायलट भी होते है। नेवी में एयरफोर्स की तरह पायलट होते है, जो प्लेन उड़ाने का काम भी करते है। एयरफोर्स में तो पायलट का काफी काम होता है, लेकिन नेवी के पायलट के बारे में बहुत कम लोग जानते है। चलिए आज हम आपको बताते है की आखिर नेवी के पायलट एयरफोर्स से कितने अलग होते हैं और उनका क्या काम होता है।

ट्रेनिंग- वायु सेना और नेवी के पायलट की ट्रेनिंग अलग होती है। मिशन और ऑपरेशन में अंतर होने की वजह से उन्हें उनके मिशन के आधार पर तैयार किया जाता है। नौसेना के पायलट आमतौर पर मिशन के लिए तेज रिएक्ट करते है क्योंकि उनकी पोस्टिंग विमान वाहक पर होती है और वहां के आस-पास के क्षेत्र में ही उन्हें ऑपरेशन को अंजाम देना होता है। नेवी पायलट को विमान वाहक से लैंडिंग और टेकऑफ को अंजाम देना होता है। किसी बड़ी खाली जमीन में प्लेन को लैंड करवाने से ज्यादा मुश्किल विमान वाहक पर करना है। वहीं वायु सेना के पायलट अपने रिजन के एयर बेस में तैनात रहते है और उन्हें एक्शन लेने में टाइम लगता है। इसलिए उन्हें उस स्थिति के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।

एयरफोर्स के पायलट और नेवी पायलट का काम मिशन के आधार पर होता है। मिशन और ऑपरेशन में अंतर होने की वजह से उन्हें उनके मिशन के आधार पर तैयार किया जाता है। नेवी पायलट शिप पर रहते है और एयरफोर्स के पायलट एयर बेस कैंप पर रहते है। नेवी पायलट का ज्यादा काम कार्गो प्लेन से संबंधित होता है और वे समुद्री सीमा में ऑपरेशन को अंजाम देते है, जबकि एयरफोर्स के पायलट एयर टू एयर फाइट में ज्यादा माहिर होते है।

नेवी के पायलट विमान वाहक के डेक पर टेकऑफ और लैंडिंग के लिए छोटे विमानों का ज्यादा इस्तेमाल करते है, जबकि वायु सेना के पायलट बड़े विमान से ऑपरेशन को अंजाम देते है। नेवी में कार्गो प्लेन का ज्यादा इस्तेमाल होता है। अहम काम टेक ऑफ और लेंडिग का होता है, क्योंकि दोनों पायलट अलग अलग प्लेटफॉर्म से काम करता है। नेवी में हेलीकॉप्टर का भी ज्यादा इस्तेमाल होता है, इसलिए ये पायलट हैलीकॉप्टर के आधार पर ट्रेंड किए जाते है।

पायलट विंग्स- एयरफोर्स पायलट हो या नेवी पायलट उन्हें एक बार प्लेन उड़ाने की इजाजत मिलने के बाद बैज के रूप में विंग्स दिए जाते है। यह विंग्स सेना की अलग-अलग शाखाओं के आधार पर होते है। एयरफोर्स पायलट को सिल्वर और नेवी के पायलट को गोल्ड विंग्स दिए जाते है। जब उम्मीदवारों का चयन नेवी या एयरफोर्स के लिए होता है, तो उन्हें ट्रेनिंग से पहले अलग-अलग कोर्स का चयन करना होता है। इसमें नेवी और एयरफोर्स के पायलट के लिए अलग अलग मिशन के हिसाब से इन्हें तैयार किया जाता है।

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