नई दिल्ली – कोविड 19 की डेल्टा वेरिएंट भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में चिंता की वजह बनी हुई है। कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट या बी.1.617.2 को इसी वजह से डेल्टा प्लस वेरिएंट ऑफ कंसर्न का दर्जा दिया गया है। गौरतलब है कि भारत में दूसरी लहर के लिए डेल्टा वेरिएंट ही जिम्मेदार है। देश की कई बेहतरीन संस्थाओं के शोधकर्ताओं ने मिलकर डेल्टा वेरिएंट पर वैक्सीन के प्रभाव का अध्ययन किया है। इससे पता चला है कि कोविड से ठीक हुए मरीज, जिन्होंने वैक्सीन की सिंगल या डबल डोज लगा रखी है, वह सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं।
कोरोना वायरस का यह वेरिएंट इंसान के इम्यून सिस्टम को जल्द तबाह कर देता है और मानव अंगों में प्रवेश कर जाता है। नए वेरिएंट की स्पाइक प्रोटीन की संरचना में बदलाव आ जाने से इंसानी शरीर को ऑरिजनल कोविड स्ट्रेन से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। असल में डेल्टा वेरिएंट में दो और म्यूटेशन का जेनेटिक कोड भी मिल चुका है ‘ई484क्यू’ और ‘एल452आर’। इसलिए इसका संक्रमण तेजी से फैलता है और महामारी की स्थिति गंभीर बन जाती है।
एक नई स्टडी सामने आई है, जिसमें पता चला है कि डेल्टा वेरिएंट से कौन लोग ज्यादा सुरक्षित हैं। यह स्टडी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोसर्जरी, कमांड हॉस्पिटल (सदर्न कमांड), पुणे स्थित आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने की है। इनके मुताबिक कोरोना से ठीक हो चुके वे मरीज, जिन्होंने कोविड वैक्सीन की एक या दोनों डोज ले ली है, वह डेल्टा वेरिएंट से सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं। स्टडी का परिणाम यह कहता है कि वैक्सीन लगवाने के बाद इंफेक्टेड हुए लोग (ब्रेकथ्रू इंफेक्शन) और कोविड 19 से ठीक होकर वैक्सीन की सिंगल या डबल डोज ले चुके लोग उन लोगों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं, जो कभी संक्रमित नहीं हुए और जो लोग दोनों डोज लगवा चुके हैं।