x
कोरोनाविश्व

WHO: डेल्‍टा से भी ज्‍यादा खतरनाक ओमिक्रॉन वेरिएंट


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

वाशिंगटन – अभी तक पूरे देश से कोरोना वायरस गया भी नहीं है। उसी बीच एक और खतरा पूरी दुनिया पर मंडराता हुआ दिख रहा है। साउथ अफ्रीका में कोरोनावायरस के नए वेरिएंट ओमीक्रोन के मिलने के बाद से दुनिया के अधिकांश देशों ने सतर्कता बढ़ा दी है। कोरोना वायरस का नया वेरिएंट B.1.1.529 (ओमिक्रॉन) दुनिया के सामने एक नई मुसीबत बनकर खड़ा हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पूरी तरह से सक्रिय इस नए वैरिएंट के बारे में जानकारी हासिल कर रहा है। WHO ने ओमीक्रोम को ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ कैटेगरी में रखा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख साइंटिस्ट डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने इंटरव्यू में कहा की इस नए वेरिएंट से इंडिया में Covid19 के सही व्यवहार को समझने के लिए यह ‘वेक अप कॉल’ हो सकता है। लोगो को मास्क लगाने के साथ सावधानी बरतने पर बल दिया है। दुनियाभर के वैज्ञानिक भी ओमीक्रोन वेरिएंट को अब तक के सबसे खतरनाक रूप में देख रहे है। लेकिन अब WHO का भी एक बयान आया है कि कोरोनावायरस के नए वेरिएंट के खिलाफ मास्क ही सबसे बड़ा हथियार है।

दक्षिण अफ्रीका समेत अन्य देशों में ओमिक्रॉन इंफेक्शन के प्रारंभिक विश्लेषण के आधार पर इसे डेल्टा वेरिएंट से छह गुना ज्यादा ताकतवर बताया जा रहा है। डेल्टा वही वेरिएंट है जिसने भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान तबाही मचाकर रख दी थी। यह वेरिएंट इम्यून सिस्टम को भी चकमा दे सकता है। ज्यादा इंफेक्शन और लोगों को तेजी से मौत के घाट उतारने वाले डेल्टा वेरिएंट पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थैरेपी का असर दिखाई देता है। जबकि डेल्टा प्लस वेरिएंट पर इस थैरेपी का कोई असर नहीं होता है, जो कि Covid19 इंफेक्शन के शुरुआती चरणों में एक चमत्कारी इलाज माना जाता है। डेल्टा प्लस वेरिएंट के बाद ओमिक्रॉन दूसरा ऐसा वेरिएंट है जिस पर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी ट्रीटमेंट का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन का पहला केस 24 नवंबर 2021 को साउथ अफ्रीका में मिला था। साउथ अफ्रीका के अलावा यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, बोत्सवाना, हांगकांग और इजराइल में भी इस वैरिएंट की पहचान हुई है। इस वैरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के कई देशों ने दक्षिणी अफ्रीका से आने-जाने यात्रियों पर रोक लगा दी है।

नए वैरिएंट पर विश्व स्वास्थ्य संगठन भी खुल के नहीं बोल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी जो भी नतीजे आए है वें बहुत ही प्रारंभिक दौर के हैं। ऐसे में किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए और अध्ययन की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि विश्वविद्यालयों में किए गए प्रारंभिक शोध युवाओं पर किए गए हैं। युवाओं में पहले से ही अधिक गंभीर बीमारी नहीं होती है, इसलिए इस पर विस्तृत रिपोर्ट आने में कुछ सप्ताह का समय लग सकता है।

Back to top button