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रिलीज से पहले मुश्किल में फंसी फिल्म स्वतंत्र वीर सावरकर, रणदीप हुड्डा पर लगा बड़ा इल्जाम-जानें


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मुंबई – रणदीप हुड्डा काफी समय से अपनी अगली फिल्म ‘स्वतंत्र वीर सावरकर’ की वजह से सुर्खियों में बने हुए हैं.बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुड्डा इन दिनों अपनी अगली फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर में बिज़ी चल रहे हैं. इस फिल्म के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है. रणदीप फिल्म में सावरकर का किरदार तो निभा ही रहे हैं साथ में वो इसका निर्देशन भी कर रहे हैं. फिल्म का टीज़र भी आ चुका है. अब अभिनेता और निर्देशक महेश मांजरेकर ने खुलासा किया है कि फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर का निर्देशन पहले वो करने वाले थे. हालांकि जब रणदीप ने इस मामले में दखल दिया और कई सारे बदलाव करवाने की कोशिश की, तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को छोड़ने का फैसला किया। इसका खुलासा उन्होंने एक इंटरव्यू में किया है।

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इस फिल्म में एक्टर वीर सावरकर के किरदार से फिर हैरान करते नजर आ रहे हैं. रणदीप ने इस फिल्म में लीड रोल निभाने के साथ-साथ उन्होंने ही इसके निर्देशन की कमान भी संभाली है. इसी फिल्म के जरिए वह डायरेक्टर के तौर पर अपनी पारी शुरू करने जा रहे हैं. हालांकि, फिल्म की रिलीज से पहले ही रणदीप विवादों में भी आ गए हैं.पहले महेश मांजरेकर वीर सावरकर की बायोपिक का निर्देशन कर रहे थे लेकिन जब रणदीप हुड्डा ने इसमें कई बार बदलाव करवाने का प्रयास किया। काफी टिप्पणी की। कई चीजों में फेर-बदल करना चाहा तो परेशान होकर महेश ने फिल्म छोड़ दी। इस बात का खुलासा डायरेक्टर ने एक इंटरव्यू में किया है।

महेश मांजरेकर ने एक वेबसाइट से बातचीत के दौरान कहा कि वो फिल्म के साथ डायरेक्टर के तौर पर जुड़े थे पर रणदीप हुड्डा ने उनके काम में दखल देना शुरू कर दिया और कई बदलाव करने की भी कोशिश की. रणदीप की इन हरकतों के चलते महेश मांजरेकर ने फिल्म छोड़ने का फैसला कर दिया,एक इंटरव्यू में महेश मांजरेकर ने कहा, “मैं रणदीप से मिला और मैंने देखा कि वो काफी ईमानदार हैं और सब्जेक्ट में काफी घुले मिले हैं. हमने कुछ मुलाकातें की. उन्होंने आजादी की लड़ाई और वर्ल्ड वॉर से जुड़ी कुछ किताबे पढ़ी थीं. मुझे ये जानकर अच्छा लगा. पहला ड्राफ्ट उन्हें पढ़कर सुनाया.

महेश ने आगे कहा, ‘दूसरे ड्राफ्ट में भी उन्हें काफी दिक्कतें हुईं. मैंने उसने कहा कि अगर ऐसा होने वाला है तो काम करने में परेशानी होगी. इसके बाद उन्होंने मुझे तसल्ली दिलाई कि एक बार स्क्रिप्ट फाइनल हो जाए तो वह कोई सवाल नहीं करेंगे.’ महेश का कहना है कि इस प्रोजेक्ट पर रणदीप के अपने ही कुछ विचार थे, जो वह चाहते थे कि स्क्रिप्ट में जोड़ दिए जाएं.’महेश मांजरेकर ने कहा, ‘उसमें उनको कुछ दिक्कते थीं, जो कि ठीक भी था। फिर दूसरे ड्राफ्ट के दौरान भी उन्हें कुछ ऑब्जेक्शन्स थे। मैंने उनसे कहा अगर ऐसा ही होता रहा तो फिल्म में दिक्कत होगी। तब उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि एक बार स्क्रिप्ट तय हो जाएगी तो वो कुछ भी सवाल नहीं करेंगे।’ इसके बाद महेश ने बताया कि कैसे रणदीप अपने विचारों को फिल्म की स्क्रिप्ट में शामिल करना चाहते थे और बाद में उन सब चीजों से ही दिक्कतें पैदा हुईं। महेश ने कहा कि रणदीप फिल्म में हिटलर, इंग्लैंड के राजा, इंग्लैंड के प्रधान मंत्री को शामिल करना चाहते थे जो निर्देशक को पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा कि इतना कुछ पढ़ने के बाद भी रणदीप कुछ बदलावों को लेकर अड़े रहे।

महेश की माने तो रणदीप उन्हें ये सिखाने की कोशिश कर रहे थे कि फिल्में कैसे बनाई जाती हैं. जिसके बाद उन्होंने साफ-साफ कह दिया वह अपने हिसाब से फिल्म डायरेक्ट करेंगे. महेश को एहसास हुआ कि रणदीप उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं. महेश ने इस बात का भी खुलासा किया कि जब वह प्रोड्यूसर से मिले तो उन्होंने कहा कि वह दोनों फिल्म का हिस्सा रहे तो फिल्म नहीं बनेगी.महेश ने अपनी बात पूरी करते हुए आगे कहा, ‘मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि वह मुझे बता रहे हैं कि काम कैसे करना है. मैंने उनसे साफ कहा कि मैं अपने तरीके से काम करुंगा. फिर मुझे लगा कि मुझे काम नहीं करने दिया जा रहा है. इसके बाद मैं प्रोड्यूसर से मिला और मैंने उन्हें कहा कि इस फिल्म में या तो मैं रहूंगा या रणदीप, वरना ये फिल्म नहीं बन पाएगी.’ महेश का कहना है कि अब शायद मेकर्स को एहसास होगा कि उन्होंने गलत फैसला लिया.

महेश मांजरेकर ने कहा कि उन्हें इस बात से दिक्कत है कि स्टोरी में फैक्चुअल रूप से गलत चीजों को जबरदस्ती शामिल किया जा रहा है, ‘वह सावरकर के साथ भगत सिंह का एक सीन शामिल करना चाहते थे। मैं शॉक्ड था कि ये कहां हुआ? वह अंडमान जेल में 1857 के विद्रोह के कैदियों को भी शामिल करना चाहते थे। मैंने पूछा, ‘हम इसे कैसे दिखा सकते हैं?’ उन्होंने जोर देकर कहा कि हम कर सकते हैं और वे 90 साल के रहे होंगे (जब सावरकर को उसी जेल में कैद किया गया था)।’वीर सावरकर के टीजर को विशेष रूप से इसके डायलॉग, ‘गांधीजी बुरे नहीं थे’ के लिए आलोचना की गई थी। कहा गया था कि अगर वो अपनी अहिंसावादी सोच पर कायम नहीं रहते, तो भारत 35 साल पहले ही आजाद हो जाता।’ कई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई क्योंकि महात्मा गांधी 1915 में ही भारत लौटे थे- हमारी आजादी से 35 साल पहले यानी 1912 में राष्ट्रपिता दक्षिण अफ्रीका में थे।

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