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वोल्बाचिया बैक्टीरिया रोकेंगे डेंगू का प्रसार


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नई दिल्लीः भविष्य में हमें डेंगू और चिकनगुनिया जैसी संक्रामक बीमारी से मुक्ति मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (वीसीआरसी) के विज्ञानियों ने लैब में ‘खास मच्छर’ की दो प्रजातियां तैयार की हैं जो डेंगू को फैलने से रोकेंगे। वीसीआरसी के विज्ञानियों ने एडीज एजिप्टी मच्छर की दो प्रजातियों को विकसित किया है और इन्हें वोल्बाचिया नामक बैक्टीरिया के दो स्ट्रेन से संक्रमित कराया है। यह बैक्टीरिया डेंगू के प्रसार को नियंत्रित करती है। वीसीआरसी वोल्बाचिया मच्छरों पर पिछले चार साल से काम कर रहा था। इस संबंध में अनुसंधान के लिए आस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित मोनाश यूनिवर्सिटी से वोल्बाचिया के दोनों स्ट्रेन से संक्रमित करीब 10 हजार अंडे लाए गए थे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडोनेशिया के कुछ शोधकर्त्ताओं ने एक परीक्षण के दौरान मच्छरों के ‘वोल्बाचिया’ (Wolbachia) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर डेंगू के मामलों में भारी गिरावट दर्ज की है।

वेक्टर नियंत्रण अनुसंधान केंद्र (वीसीआरसी) के निष्कर्ष

वैज्ञानिक स्थानीय एडीज एजिप्टी मच्छरों , जो डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस फैलाते हैं, को ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के वोल्बाचिया बैक्टीरिया ले जाने वाले मच्छरों के साथ क्रॉस-ब्रीडिंग कर रहे हैं।इस तरह, छह से सात पीढ़ियों के बाद, मच्छरों की आनुवंशिक सामग्री भारतीय एडीज एजिप्टी स्ट्रेन के सबसे करीब होगी, जबकि वोल्बाचिया ऑस्ट्रेलियाई स्ट्रेन से विरासत में मिली है।ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में डेंगू के प्रकोप के दौरान इस रणनीति को सफलतापूर्वक अपनाया गया था ।अब तक, अनुसंधान प्रयोगशालाओं तक ही सीमित रहा है ; एक बार जब इसे सरकार द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है, तो समुदाय में वोल्बाचिया ले जाने वाले मच्छरों को छोड़ कर एक पायलट प्रोजेक्ट किया जाएगा।

वोल्बाचिया बैक्टीरिया द्वारा डेंगू पर नियंत्रण:

  • वोल्बाचिया बैक्टेरिया से संक्रमित मच्छर को किसी क्षेत्र में छोड़ा जाता है तो वे अन्य स्थानीय जंगली मच्छरों के साथ संकरण (Interbreeding) करते हैं।
  • इस प्रकार समय के साथ धीरे-धीरे मच्छरों की कई पीढ़ियाँ प्राकृतिक रूप से वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित होने लगती हैं।
  • इस प्रक्रिया में एक ऐसी स्थिति आएगी जब उस क्षेत्र में मच्छरों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित होगा, जिससे मच्छरों के काटने से लोगों को डेंगू होने की संभावनाएँ कम हो जाएंगी।
  • इंडोनेशिया में किये गए परीक्षण के दौरान शोधार्थियों ने ‘योग्याकार्ता’ (Yogyakarta) शहर को 24 क्लस्टर में बाँट दिया और अगले कुछ महीनों के दौरान इनमें से अनियमित रूप से चुने 12 क्लस्टरों में वोल्बाचिया मच्छरों को छोड़ा गया।
  • इन मच्छरों के कारण क्षेत्र के अधिकांश मच्छर वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित हो गए और 27 महीनों बाद एकत्र किये गए आँकड़ों में शोधार्थियों द्वारा वोल्बाचिया संक्रमित मच्छरों वाले क्षेत्र में गैर-वोल्बाचिया संक्रमित मच्छरों वाले क्षेत्र की तुलना में डेंगू के मामलों में 77% तक गिरावट देखी गई। 

वोल्बाचिया क्या है?

वोल्बाचिया बेहद सामान्य बैक्टीरिया हैं जो प्राकृतिक रूप से 50 प्रतिशत कीट प्रजातियों में पाए जाते हैं, जिनमें कुछ मच्छर, फल मक्खियाँ, पतंगे, ड्रैगनफ़्लाइज़ और तितलियाँ शामिल हैं।वोल्बाचिया मनुष्यों और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं।
स्वतंत्र जोखिम विश्लेषणों से संकेत मिलता है कि वोल्बाचिया-संक्रमित मच्छरों की रिहाई से मनुष्यों और पर्यावरण के लिए नगण्य खतरा पैदा होता है ।वोल्बाचिया कीट कोशिकाओं के अंदर रहते हैं और कीट के अंडों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होते हैं। एडीज एजिप्टी मच्छर आम तौर पर वोल्बाचिया को नहीं फैलाते हैं , हालांकि कई अन्य मच्छर ऐसा करते हैं।वोल्बाचिया मातृ रूप से मां से संतानों में फैलता है, और धीरे-धीरे पूरी आबादी में फैल जाता है।वोल्बाचिया मच्छरों में मौजूद होने पर डेंगू वायरस के गुणन को रोकता है ।मच्छरों में वोल्बाचिया की संख्या और आवृत्ति आणविक परीक्षणों द्वारा निर्धारित की जाती है।

वोल्बाचिया विधि कैसे काम करती है?

एडीज एजिप्टी मच्छर वोल्बाचिया फैलाते हैं, यह बैक्टीरिया डेंगू, जीका, चिकनगुनिया और पीले बुखार जैसे वायरस से प्रतिस्पर्धा करता है।इससे मच्छरों के अंदर वायरस का प्रजनन कठिन हो जाता है। और मच्छरों द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में वायरस फैलाने की संभावना बहुत कम होती है।इसका मतलब यह है कि जब एडीज एजिप्टी मच्छर प्राकृतिक वोल्बाचिया बैक्टीरिया ले जाते हैं, तो डेंगू, जीका, चिकनगुनिया और पीले बुखार जैसे वायरस का संचरण कम हो जाता है।

आइसीएमआर-वीसीआरसी के निदेशक डा. अश्विनी कुमार ने बताया कि वोल्बाचिया वैक्टीरिया से संक्रमित अंडों से मच्छर पैदा किए गए। फिर इन मच्छरों से स्थानीय एडीज इजिप्टी मच्छरों से प्रजनन कराया गया। इस तरह वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाले मच्छर पैदा हुए। डा. अश्विनी ने कहा कि अनुसंधान के दौरान किए गए अध्ययन में पाया गया कि ये मच्छर डेंगू और चिकनगुनिया पैदा करने वाले मच्छरों को खत्म करने में उपयुक्त हैं।

महत्व

  • इस प्रयोग के माध्यम से वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि यह विधि एक शहर में डेंगू के नियंत्रण में सफल रही है, ऐसे में यदि इसे व्यापक पैमाने पर अपना कर विश्व के अनेक हिस्सों से अगले कई वर्षों के लिये डेंगू को समाप्त किया जा सकता है। 
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, यह विधि केवल एक विषाणु को ही नहीं बल्कि कई फ्लेवीवायरस (Flaviviruses) को रोकती है, ऐसे में यह ‘एडीज़ एजिप्टी’ से फैलने वाली अन्य बीमारियों को भी रोकने में प्रभावी होगी। 

वोल्बाचिया का उपयोग करने के दृष्टिकोण

वोल्बाचिया के साथ डेंगू से निपटने के दो तरीके हैं।पहले में केवल संशोधित नर मच्छरों को छोड़ना शामिल है। 2015 से, इस रणनीति को सिंगापुर और गुआंगज़ौ, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्सों, जैसे मियामी, टेक्सास और कैलिफ़ोर्निया में सफलतापूर्वक अपनाया गया है। चूंकि संशोधित नर के साथ संभोग करने वाली असंशोधित मादाओं से पैदा होने वाले अंडों से बच्चे नहीं निकलते, इसलिए समुदाय में मच्छरों की संख्या बहुत कम हो जाती है।वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया के कुछ शहरों द्वारा उपयोग किए जाने वाले दूसरे दृष्टिकोण में दोनों लिंगों के संशोधित मच्छरों को छोड़ना शामिल है ।संक्रमित मादाएं बैक्टीरिया को अपनी संतानों तक पहुंचाती हैं।
समय के साथ (रिलीज़ स्थल की विशेषताओं के आधार पर, कई महीनों से लेकर वर्षों तक), संशोधित मच्छर मूल आबादी की जगह ले लेते हैं।

अन्य देश की प्रतिक्रिया

  • वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम द्वारा इससे पहले ऑस्ट्रेलिया और अन्य 11 देशों में भी छोटे स्तर पर ऐसे परीक्षण किये जा चुके हैं परंतु इंडोनेशिया में पहली बार यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trial) का प्रयोग किया गया। 
  • फ्राँस की इनोवाफीड (InnovaFeed) नामक एक कंपनी ने पहली बार औद्योगिक स्तर पर वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित मच्छरों के विकास हेतु वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम के साथ एक साझेदारी की है।  

विज्ञानियों ने इस प्रौद्योगिकी को बहुत संभावना वाला बताया है। वास्तविक रूप से इसे लागू करने में सरकार से कई तरह की मंजूरी लेनी पड़ेगी, क्योंकि इसके तहत स्थानीय क्षेत्रों में हर हफ्ते वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाले मादा मच्छरों को छोड़ना होगा। इन मादा मच्छरों और क्षेत्र के नर मच्छरों के मिलन से जो नए मच्छर पैदा होंगे वे वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाले मच्छर होंगे, जो डेंगू और चिकनगुनिया के वायरस को नियंत्रित करते हैं। इसलिए वोल्बाचिया बैक्टीरिया वाले मच्छरों की संख्या जैसे-जैसे बढ़ेगी, बीमारी पैदा करने वाले मच्छरों की संख्या कम होती जाएगी और एक समय आएगा कि ये मच्छर पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे। परंतु, विज्ञानियों का कहना है कि इसके लिए समाज, समुदाय और नेताओं को तैयार करना होगा। उन्हें ये समझाना होगा कि उनके क्षेत्र में मच्छर छोड़ें जाएंगे तो उसकी वजह क्या होगी। डा. अश्विनी का कहना है कि लैब में इस तरह के मच्छर और अंडों की कमी नहीं है, जब भी जरूरत होगी इन्हें हवा में छोड़ा जा सकेगा और साथ-साथ तैयार भी किया जा सकेगा।

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