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क्या है UCC यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड?,उत्तराखंड में लागू होने पर बदल जाएंगे ये नियम


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नई दिल्लीः उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में धामी सरकार ने आज (मंगलवार) को ऐतिहासिक कदम उठा लिया है। उत्तराखंड विधानसभा में आज सीएम धामी ने यूसीसी विधेयक को पेश कर दिया है। उत्तराखंड जल्द ही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन सकता है। चार फरवरी को उत्तराखंड कैबिनेट से यूसीसी विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद उसे आज यानि मंगलवार को विधानसभा में पेश किया गया। अब राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा।

समान नागरिक संहिता ड्राफ्ट समिति ने मुख्यमंत्री को सौंपा

प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करना धामी सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 27 मई 2022 को जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेनि) की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की। समिति ने 20 माह के कार्यकाल में विभिन्न धर्मों, समूहों, आमजन व राजनीतिक दलों से संवाद कर संहिता का ड्राफ्ट तैयार किया। दो फरवरी को चार खंडों व 740 पेज का यह ड्राफ्ट समिति ने मुख्यमंत्री को सौंपा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड या यूसीसी है क्‍या?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. दूसरे शब्‍दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे. संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है.अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.

पहली बार कब हुआ था यूसीसी का जिक्र

समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है.हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया. राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे.

मसौदे में 400 से अधिक धाराएं

समान नागरिक संहिता विधेयक पास होने के बाद कानून बन जाएगा। इसके साथ ही देवभूमि उत्तराखंड देश में यूसीसी लागू करने वाला आजादी के बाद पहला राज्य होगा। सूत्रों के अनुसार, मसौदे में 400 से ज्यादा धाराएं हैं, जिसका लक्ष्य पारंपरिक रीति-रिवाजों से पैदा होने वाली विसंगतियों को दूर करना है।

इन कानून में होगा बदलाव

अब इस विधेयक के कानूनी रूप लेने के बाद प्रदेश की आधी आबादी इससे सीधे लाभान्वित होगी। समिति ने ड्राफ्ट में लड़कियों के विवाह की आयु बढ़ाने, बहुविवाह पर रोक लगाने, उत्तराखंड में लड़कियों के बराबर हक, सभी धर्मों की महिलाओं को गोद लेने का अधिकार व तलाक के लिए समान आधार रखने की पैरवी की गई है। ड्राफ्ट में तलाक, तलाक के बाद भरण पोषण और बच्चों को गोद लेने के लिए सभी धर्मों के लिए एक कानून की संस्तुति की है।

इन समस्याओं के कारण हो रही यूसीसी की वकालत

समान नागरिक संहिता के प्रबल हिमायती एडवोकेट अश्वनी उपाध्याय के मुताबिक, समान नागरिक संहिता लागू नहीं होने से कई समस्याएं हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

विवाह के लिए बदलेंगे कानून

सभी धर्मों में विवाह की आयु लड़की के लिए 18 वर्ष अनिवार्य करने का प्रस्ताव किया गया है। बहुपत्नी प्रथा समाप्त कर एक पति पत्नी का नियम सभी पर लागू करने पर बल दिया गया है। प्रदेश की जनजातियों को इस कानून की परिधि से बाहर रखा गया है।

बहुविवाह पर लगेगी रोक

कुछ कानून में बहु विवाह करने की छूट है। चूंकि हिंदू, ईसाई और पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और सात वर्ष की सजा का प्रावधान है। इसलिए कुछ लोग दूसरा विवाह करने के लिए धर्म बदल लेते हैं। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लागू होने के बाद बहुविवाह पर रोक लगेगी। बहुविवाह पर भी पूरी तरह से रोक लग जाएगी।

संपत्ति से लेकर लव जिहाद तक बदल जाएंगे ये नियम

यूसीसी ड्राफ्ट के तहत ये प्रमुख कानून बदल जाएंगे। संपत्ति बंटवारे में लड़की का समान अधिकार सभी धर्मों में लागू रहेगा। अन्य धर्म या जाति में विवाह करने पर भी लड़की के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकेगा। लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक होगा। लव जिहाद, विवाह समेत महिलाओं और उत्तराधिकार के अधिकारों के लिए सभी धर्मों के लिए समान अधिकार की बात इसमें की गई है।

शादी के लिए कानूनी उम्र 21 साल होगी तय

विवाह की न्यूनतम उम्र कहीं तय तो कहीं तय नहीं है। एक धर्म में छोटी उम्र में भी लड़कियों की शादी हो जाती है। वे शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होतीं। जबकि अन्य धर्मों में लड़कियों के 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की उम्र लागू है। कानून बनने के बाद युवतियों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल तय हो जाएगी

बिना रजिस्ट्रेशन, लिव इन रिलेशन में रहने पर अब होगी जेल

इसके साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद उत्तराखंड में लिव इन रिलेशनशिप का वेब पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। रजिस्ट्रेशन न कराने पर युगल को छह महीने का कारावास और 25 हजार का दंड या दोनों हो सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के तौर पर जो रसीद युगल को मिलेगी उसी के आधार पर उन्हें किराए पर घर, हॉस्टल या पीजी मिल सकेगा। यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक, सिर्फ एक व्यस्क पुरुष व वयस्क महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। पंजीकरण कराने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।

विवाह पंजीकरण कराना होगा जरूरी

कानून लागू होने के बाद विवाह पंजीकरण कराना होगा। अगर ऐसा नहीं कराया तो किसी भी सरकारी सुविधा से वंचित होना पड़ सकता है।

उत्तराधिकार की प्रक्रिया होगी सरल

एक कानून में मौखिक वसीयत व दान मान्य है। जबकि दूसरे कानूनों में शत प्रतिशत संपत्ति का वसीयत किया जा सकता है। यह धार्मिक यह मजहबी विषय नहीं बल्कि सिविल राइट या मानवाधिकार का मामला है। एक कानून में उत्तराधिकार की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है। पैतृक संपत्ति में पुत्र व पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है। कई धर्मों में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार परिभाषित नहीं हैं। विवाह के बाद बेटियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। ये अपरिभाषित हैं। इस कानून के लागू होने के बाद उत्तराधिकार की प्रक्रिया सरल बन जाएगी।

समान नागरिक संहिता के प्रमुख बिंदु

  • -तलाक के लिए सभी धर्मों का एक कानून होगा ।
  • तलाक के बाद भरण पोषण का नियम एक होगा ।
  • गोद लेने के लिए सभी धर्मों का एक कानून होगा ।
  • संपत्ति बटवारे में लड़की का समान हक सभी धर्मों में लागू होगा ।
  • अन्य धर्म या जाति में विवाह करने पर भी लड़की के अधिकारों का हनन नहीं होगा ।
  • सभी धर्मों में विवाह की आयु लड़की के लिए 18 वर्ष अनिवार्य होगी ।
  • लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण जरूरी होगा ।
  • प्रदेश की जनजातियां इस कानून से बाहर होंगी ।
  • एक पति पत्नी का नियम सब पर लागू होगा, बहुपत्नी प्रथा होगी समाप्त।

बुजुर्ग मां-बाप के भरण-पोषण की पत्नी पर होगी जिम्मेदारी

कानून लागू होने के बाद नौकरीपेशा बेटे की मौत की स्थिति में बुजुर्ग मां-बाप के भरण-पोषण की पत्नी पर जिम्मेदारी होगी। उसे मुआवजा भी मिलेगा। पति की मौत की स्थिति में यदि पत्नी दोबारा करती है तो उसे मिला हुआ मुआवजा मां-बाप के साथ साझा किया जाएगा।

गोद लेने का नियम बदलेगा

कानून लगाने होने के बाद राज्य में मुस्लिम महिलाओं को भी गोद लेने का अधिकार मिलेगा। गोद लेने की प्रक्रिया आसान होगी। इसके साथ ही अनाथ बच्चों के लिए संरक्षकता की प्रक्रिया सरल होगी। कानून लागू होने के बाद दंपती के बीच झगड़े के मामलों में उनके बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी को दी जा सकती है।

यूसीसी में तलाक लेने की प्रक्रिया

पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। फिलहाल पर्सनल लॉ के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग-अलग ग्राउंड हैं।

अब तक देश में क्‍यों लागू नहीं हो पाया यूसीसी

भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है. हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्‍य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं. अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्‍यक हैं. लेकिन, अलग राज्‍यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्‍यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा. इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्‍नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं. ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं. वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं. कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता तो कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है. समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे. हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्‍थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है.

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