क्या होता है क्लाइमेट चेंज?,मानव जीवन पर इस तरह पड़ता है असर-जानें
नई दिल्लीः धरती का तापमान दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। बीते दिन 3 जुलाई दुनिया के इतिहास में सबसे गर्म दिन दर्ज हुआ। इस बढ़ती गर्मी से पूरी दुनिया बेहाल रही। यहां तक की सांइटिस्ट भी कह रहे हैं कि ये गर्मी लोगों के लिए मौत की सजा है। जानकारी दे दें कि इस गर्मी से पूरी दुनिया बेहाल है, चाहे वो अमेरिका हो या आस्ट्रेलिया या फिर चीन, अफ्रीका के तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किए गए है। इन सब की वजह है क्लाइमेट चेंज या कहें जलवायु परिवर्तिन। बहुत से लोग सोचते हैं कि क्लाइमेट चेंज का मतलब धरती का गर्म तापमान है। लेकिन जानकारी दे दें कि तापमान वृद्धि तो केवल कहानी की शुरुआत भर है। चूँकि पृथ्वी एक सिस्टम है, जहाँ सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, यानी किसी भी एक क्षेत्र में बदलाव अन्य सभी में क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए क्या आप असल में जानते हैं कि क्लामेट चेंज क्या है और ये कैसे हमारे जीवन पर प्रभाव डाल रहा है? आइए समझते हैं…
क्या है क्लाइमेट चेंज
क्लाइमेट चेंज की बात करें तो इसका तात्पर्य धरती की पर्यावरणीय स्थितियों में परिवर्तन से है। ये कई आंतरिक और बाहरी कारकों के कारण होता है। पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चिंता बन गया है। इसके अलावा, ये क्लाइमेट चेंज धरती पर जीवन को कई तरीकों से प्रभावित करते हैं। लेकिन मुख्य कारण तापमान और मौसम के पैटर्न में लम्बे समय से बदलाव है। ऐसे बदलाव सूरज के तापमान में बदलाव या बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण प्राकृतिक रूप में हो सकते हैं। लेकिन 18वीं दशक से, इंसानी गतिविधियां क्लाइमेट चेंज का मुख्य कारण बनी हैं, जिसमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन का जलना है।
ओजोन परत हो रही नष्ट
जीवाश्म ईंधन जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होता है जिसके कारण वायु मंडल में मौजूद ओजोन परत नष्ट हो रही है। जिस कारण पृथ्वी पर सूरज की अल्ट्रावाइलेट (UV) किरणें सीधे आती हैं और तापमान बढ़ाती हैं। क्लाइमेट चेंज का कारण बनने वाली मुख्य ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन शामिल हैं। उदाहरण के लिए, ये कार चलाने के लिए गैसोलीन या किसी इमारत को गर्म करने के लिए कोयले का उपयोग करने से निकलते हैं। वहीं, जंगलों को काटने से भी कार्बन डाइऑक्साइड निकल सकता है। कृषि, तेल और गैस संचालन मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख सोर्स हैं। ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, भवन, कृषि और भूमि उपयोग ग्रीनहाउस गैसों का कारण बनने वाले मुख्य क्षेत्रों में आते हैं।
पिछला दशक सबसे गर्म
क्लाइमेट साइंटिस्ट्स के मुताबिक पिछले 200 सालों में लगभग सभी ग्लोबल हीटिंग के लिए हम इंसान जिम्मेदार हैं। इंसानी गतिविधियों के कारण ही ग्रीनहाउस गैसे बन रही हैं जो कम से कम पिछले दो हज़ार वर्षों में किसी भी समय की तुलना में दुनिया को तेज़ी से गर्म कर रही हैं। गौरतलब है कि धरती की सतह का औसत तापमान 1800 के दशक के अंत (औद्योगिक क्रांति से पहले) की तुलना में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म है और पिछले 100,000 सालों में किसी भी समय की तुलना में अधिक गर्म है। साइंटिस्ट्स की मानें तो पिछला दशक (2011-2020) रिकॉर्ड पर सबसे गर्म था।
दुनिया पर प्रभाव
क्लाइमेट चेंज होने के कारण धरती की गर्मी बढ़ने के साथ-साथ, दुनिया के कई हिस्सों में सूखा, बाढ़, पानी की कमी, भंयकर आग, समंदर का लेवल बढ़ना, ध्रुवीय बर्फ का पिघलना, विनाशकारी तूफान और घटती जैव विविधता आदि शामिल हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
मौसम में बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं का सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है. ये व्यक्ति के लिए दर्दनाक और तनावपूर्ण साबित हो सकती हैं. इन स्थितियों में मानव के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. जानकारी के अनुसार, क्लाइमेट चेंज होने से सबसे अधिक प्रभाव लोगों के मस्तिष्क दिमाग पर पड़ता है. मौसम में अत्यधिक गर्मी का प्रभाव लोगों के मस्तिष्क पर पड़ता है. इससे आत्महत्या की दर बढ़ सकती है. सीडीसी के अनुसार, क्लाइमेट चेंज और बढ़ा हुआ तापमान व्यक्ति के दिमाग पर गहरा प्रभाव डाल रहा है. यही कारण है कि अब मानसिक रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं.
बॉडी में इंफेक्शन का कारण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, क्लाइमेट चेंज होने से इंसेक्ट ट्रांसमिटेड इंफेक्शन की संभावनाएं अधिक होती हैं. क्लाइमेट चेंज के कारण किसी भी बीमारी की समय सीमा बढ़ सकती है. इससे इंसेक्ट इंफेक्शन भी फैल सकता है. वहीं बिन मौसम बारिश होने से वाटरबोर्न डिजीज और डायरिया होने का खतरा अधिक होता है.
सांस संबंधी समस्याएं
बीते कुछ समय से वायु प्रदूषण में तेजी से वृद्धि हुई है. जिसकी वजह से कई प्रकार की रेस्पिरेटरी यानी सांस संबंधित समस्याएं बढ़ने लगी हैं. हवा में धूल, ओजोन और महीन कणों का उच्च एयर क्वालिटी को कम कर सकता है. इससे खांसी, दमा, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और गले में जलन, फेफड़ों में सूजन, कैंसर, छाती में दर्द, क्रोनिक अस्थमा और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ सकता है.
क्लाइमेट चेंज का प्रभाव?
जलवायु परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य, भोजन उगाने की क्षमता, आवास, हाउसिंग और सुरक्षा कार्य को प्रभावित करता है। हम में से कुछ पहले से ही जलवायु प्रभावों के अधिक निकट हैं, जैसे कि छोटे द्वीप राष्ट्रों और अन्य विकासशील देशों में रहने वाले लोग। समुद्र के स्तर में वृद्धि और पीने के लिए खारे पानी की उपलब्धता जैसी स्थितियां उस बिंदु तक पहुंच गई हैं जहां अब पूरे समुदायों को किसी दूसरी जगह जाना पड़ेगा। इसके साथ ही लंबे समय तक सूखा रहने के कारण लोगों को अकाल की भंयकर स्थिति से भी सामना करना पड़ सकता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि भविष्य में,क्लाइमेट रिफ्यूजी (Climate Refugees) की संख्या बढ़ने की उम्मीद है।
बचाव
एनर्जी को जीवाश्म ईंधन से बदलकर सौर या पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) में बदलने से क्लाइमेट चेंज को बढ़ावा देने वाले कारकों के उत्सर्जन में कमी आएगी। लेकिन इसकी शुरुआत हमें अभी से करनी होगी। 2020 और 2030 के बीच जीवाश्म ईंधन उत्पादन में प्रति वर्ष लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट आनी चाहिए। जलवायु परिणामों के अनुकूल होने से लोगों, घरों, व्यवसायों, आजीविका, बुनियादी ढांचे और नेचुरल इकोसिस्टम की प्रणालियों की रक्षा होती है। इसमें वर्तमान प्रभावों और भविष्य में संभावित प्रभावों को शामिल किया गया है। जलवायु खतरों से निपटने के लिए सबसे कम संसाधनों वाले सबसे कमजोर लोगों के लिए अब प्राथमिकता से कार्य किया जाए जाए। उदाहरण के लिए, आपदाओं के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम को अपनाना जो जीवन और संपत्ति दोनों को बचाती है।