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चंद्रयान-3 के बाद ISRO का नया कीर्तिमान,अपने लक्ष्य पर पहुंचा आदित्य-एल 1


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नई दिल्लीः भारत ने स्पेस सेक्टर में आज एक और बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। चंद्रयान-3 की सफलता के बाद आज भारत का पहला सोलर मिशन ‘आदित्य L1’ शाम 4 बजे के करीब अपने लक्ष्य पर पहुंच गया है। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने इसे कमांड देकर L1 पॉइंट की हेलो ऑर्बिट पर पहुंचा दिया है। इस तरह 2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से सूर्य की ओर शुरू हुई 15 लाख किलोमीटर की यह यात्रा अपने मुकाम पर पहुंच गई है।पूरी तरह से स्वदेशी आधारित सूर्य का अध्ययन करने वाला इसरो के आदित्य एल1 यान को आज सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया. अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के ‘लैग्रेंज प्वॉइंट 1ट (एल 1) के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में पहुंचा. इसरो की इस सफलता पर पीएम मोदी ने वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी है.

अपने लक्ष्य पर पहुंचा आदित्य-एल 1

चांद पर उतरने के बाद भारत ने एक और इतिहास रच दिया है। सूर्य मिशन पर निकला भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का आदित्य एल-1 ने अपनी मंजिल लैग्रेंज प्वाइंट-1 (एल1) पर पहुंच कर एक कीर्तिमान हासिल किया है। इसी के साथ आदित्य-एल 1 अंतिम कक्षा में स्थापित हो गया। यहां आदित्य दो वर्षों तक सूर्य का अध्ययन करेगा और महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाएगा। भारत के इस पहले सूर्य अध्ययन अभियान को इसरो ने 2 सितंबर को लॉन्च किया था। मालूम हो कि आदित्य एल1 यान सूर्य के सबसे करीब जाकर इसका अध्ययन करेगा और हमें महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराएगा. ‘एल1 प्वॉइंट के आसपास के क्षेत्र को हेलो प्वाइंट कहा जाता है.

क्यों अहम है L1 और इसकी हेलो ऑर्बिट?

L1 यानी लैगरेंज पॉइंट-1 उन पांच पोजिशन में से एक है, जहां सूर्य और पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्तियां एक-दूसरे को संतुलित रखती हैं। इन पांचों स्थितियों में L1 सबसे स्थिर जगह है। आदित्य इस L1 पॉइंट पर पहुंच चुका है। अब बस इसे हेलो ऑर्बिट में पहुंचाना है, जो LI की ऐसी कक्षा है, जहां सैटलाइट और स्पेसक्राफ्ट स्थिर रहते हुए काम कर सकते हैं। अगर यह यान इस ऑर्बिट में नहीं पहुंचा तो यह लगातार सूर्य की ओर यात्रा करता रहेगा और फिर उसमें समा जाएगा। हेलो ऑर्बिट से आदित्य विभिन्न कोणों से सूर्य की स्टडी कर सकेगा। यहां ग्रहण की बाधा भी नहीं पड़ती। क्योंकि यह ऑर्बिट L1 पॉइंट के इर्दिगिर्द उसी तरह चक्कर लगाती है, जैसे धरती सूर्य के चारों ओर घूमती है।

पीएम मोदी ने ट्वीट कर दी बधाई

इसरो की इस सफलता पर पीएम मोदी ने भी खुशी जाहिर की है। उन्होंने ट्वीट कर इसरो की सराहना करते हुए लिखा कि ‘भारत ने एक और मील का पत्थर हासिल किया। भारत की पहली सौर वेधशाला आदित्य-एल 1 अपने गंतव्य तक पहुंच गई। सबसे जटिल अंतरिक्ष मिशनों में से एक को साकार करने में हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। यह असाधारण उपलब्धि सराहना योग्य है। हम मानवता के लाभ के लिए विज्ञान की नई सीमाओं को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे।’

18 सितंबर से शुरू कर दिया काम

शुक्रवार को आदित्य एल-1 को अंतरिक्ष में सफर करते हुए 126 दिन पूरे हो गए। अपनी यात्रा शुरू करने के 16 दिन बाद यानी 18 सितंबर से आदित्य ने वैज्ञानिक डाटा एकत्र करना और सूर्य की इमेजिंग शुरू कर दी थी। वैज्ञानिकों को अब तक एल-1 से सौर ज्वालाओं के हाई-एनर्जी एक्स-रे, फुल सोलर डिस्क इमेज मिल चुके हैं। पीएपीए और एएसपीईएक्स के सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर सहित चार उपकरण फिलहाल सक्रिय हैं और अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। हेलो आर्बिट में पहुंचने के बाद सूईट पेलोड सबसे पहले सक्रिय होगा।

सात पेलोड हैं तैनात

आदित्य पर सात वैज्ञानिक पेलोड तैनात किए गए हैं। इनमें विजिबल एमिशन लाइन कोरोनोग्राफ (वीईएलसी), सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (सूइट), सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (सोलेक्सस), हाई-एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (हेल1ओएस) शामिल हैं, जो सीधे तौर पर सूर्य को ट्रैक करें। वहीं, तीन इन-सीटू (मौके पर) मापने वाले उपकरण हैं, जिनमें आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एएसपीईएक्स), प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पीएपीए), और एडवांस थ्री डाइमेंशनल हाई रिजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर (एटीएचआरडीएम) शामिल हैं।

सितंबर में लॉन्च हुआ था आदित्य-एल1 मिशन

आदित्य-एल1 2 सितंबर को पीएसएलवी-सी57 पर लॉन्च किया गया था। 110 दिवसीय पारगमन की एक श्रृंखला के बाद, अंतरिक्ष यान अब हेलो कक्षा में अपनी अंतिम यात्रा के लिए तैयार है।यह कक्षा इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उपग्रह को ग्रहण से बचने में सक्षम बनाती है और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के हस्तक्षेप के बिना लगातार सौर अवलोकन प्रदान करती है।मिशन का प्राथमिक उद्देश्य सौर वायुमंडल, विशेष रूप से क्रोमोस्फीयर और कोरोना का अध्ययन करना है और कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सौर फ्लेयर्स और सौर कोरोना की रहस्यमय हीटिंग जैसी घटनाओं में अंतर्दृष्टि प्राप्त करना है।

मिशन में क्या करेगा आदित्य L1?

अभी तक इसरो धरती पर लगे टेलिस्कोप से सूर्य की स्टडी करता था, लेकिन इससे सूर्य के वातावरण का गहराई से पता नहीं चलता था। इसकी बाहरी परत कोरोना इतनी गर्म क्यों है और इसका तापमान कितना है, इसका पता नहीं है। लेकिन आदित्य के साथ गए उपकरण इस पर रोशनी डालेंगे।

अमेरिकी और यूरोपीय अभियानों से बेहतर

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के प्रोफेसर आर रमेश ने बताया कि भारत का आदित्य एल 1 अमेरिका और यूरोप के सौर अध्ययन अभियानों से बेहतर है। खासतौर पर कोरोना के अध्ययन के लिहाज से यह काफी उन्नत है। अमेरिकी और यूरोपीय अभियान कोरोना से आने वाली धुंधली रोशनी का अध्ययन करने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि इसके लिए एक खास अकल्ट डिस्क की जरूरत थी, जिससे फोटोस्फेयर को अवरुद्ध किया जा सके। पहली बार आदित्य एल1 मिशन के साथ, ऐसी अकल्ट डिस्क लगाई गई है, जिससे कोरोना की धुंधली रोशनी का करीब से अध्ययन किया जाएगा।

उत्सकुता से देख रही दुनिया

इसरो के इस अभियान को पूरी दुनिया में उत्सुकता से देखा जा रहा है, क्योंकि इसके सात पेलोड सौर घटनाओं का व्यापक अध्ययन करेंगे और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को डाटा मुहैया कराएंगे, जिससे सभी सूर्य के विकिरण, कणों और चुंबकीय क्षेत्रों का अध्ययन कर पाएंगे। अंतरिक्ष यान में एक कोरोनोग्राफ है, जो वैज्ञानिकों को सूर्य की सतह के बहुत करीब देखने और नासा व यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला (एसओएचओ) मिशन के डाटा को पूरक डाटा मुहैया कराएगा। क्योंकि, आदित्य एल-1 अपनी स्थिति में स्थित एकमात्र वेधशाला है।

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