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मशहूर कवि और चित्रकार इमरोज का हुआ निधन,अमृता प्रीतम के साथ रहे 40 साल


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मुंबई – लोकप्रिय कवि और चित्रकार इमरोज का शुक्रवार (22 दिसंबर) को निधन हो गया है और उन्होंने 97 साल की उम्र में मुबई के कांदिवली स्थित अपने घर ही आखिरी सांस ली है और वो पिछले लंबे समय से अपने खराब स्वास्थ से परेशान था. आपकी जानकारी के लिए बता दें इमरोज का असली नाम इंद्रजीत सिंह था और वह पंजबी लिखका अमृता प्रीतम के साथ अपनी लव स्टोरी की वजह से चर्चा में आए थे. हालांकि इनकी शादी तो कभी नहीं हुई लेकिन ये करीब 40 सालों तक एक दूसरे का सथ निभाते रहे और अब आखिरकार इस रिश्ते की डोर टूट ही गई है.

इमरोज हमेशा अमृता को करते थे याद

लोकप्रिय कलाकार इंद्रजीत उर्फ इमरोज का निधन आज 22 दिसंबर दिन शुक्रवार को मुंबई में अंतिम सांस ली और वो बीते दिनों से बीमार चल रे थे और उनके करीबी ने उनके निधन की जानकादी दी है और साथ ही कवयित्री अमिया कुंवर ने Indian Express से कहा कि इमरोज कुछ दिनों से स्वास्थ समस्याओं से जूझ रहे थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गा और उन्हें पाइप के जरिए खाना पहुंचाया जा रहा था, लेकिन वो इस दौरान अपने प्यार अमृता को हमेशा याद कररहे और हमेशा कहते थे कि अमृता है, यहीं है’. इमरोज ने भले ही आज यह दुनिया छोड़ दी है, लेकिन वे केवल अमृता के पास दूसरी दुनिया में गए हैं.

इमरोज ने कई प्रसिद्ध एलपी के कवर डिजाइन किए थे

इमरोज का जन्म साल 1926 में लाहौर से 100 किलोमीटर दूर एक गांव में हुआ था। इमरोज ने जगजीत सिंह की ‘बिरहा दा सुल्तान’ और बीबी नूरन की ‘कुली रह विच’ सहित कई प्रसिद्ध एलपी के कवर डिजाइन किए थे।

क्यो खास थी प्रेम कहानी

इमरोज और अमृा प्रीतम ने कभी शादी नहीं के लेकिन वो 40 साल तक एख साथ लिव इन रिलेशन में रहे. इमरोज और अमृता का नाम हमेशा साथ में लिया था और जोनों की कहानी सबसे अनोखी थी. इसके साथ ही अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में साहिर लुधियानली के अलावा और इमरोज के बीच में रिश्तों के लिखआ था. इस किताब में अमृता ने अपने रिश्तों पर रोशनी ड़ाली थी. आपको बता दें अमृता का निधन 31 अक्टूबर 2005 को हुआ था.

इमरोज- अमृता की कहानी

इमरोज की मुलाकात अमृता से एक कलाकार के माध्यम से हुई जब अमृता अपनी किताब का कवर डिजाइन करने के लिए किसी की तलाश कर रही थीं। अमृता प्रीतम ने पंजाबी और हिंदी में कविताएं और उपन्यास लिखे। उन्होंने 100 से ज्यादा किताबें लिखीं। उनकी चर्चित कृतियां कुछ यूं हैं- पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, कोरे कागज, उन्चास दिन, सागर और सीपियां।

इमरोज का काम

इमरोज ने जगजती सिंह की ‘बिरहा दा सुल्तान’ और बीबी नूरन की ‘कुली रह विच’ समेत कई सारे एलपी के कवर को डिजाइम किए थे. इमरोज ने अमृता प्रीतम के लिए कविताओं की एक पुस्तक भी लिखी थी- ‘अमृता के लिए नज्म जारी है’.इमरोज ने अमृता प्रीतम को लेकर एक कविता और लिखी है ‘संपूर्ण औरत’

साहिर मेरी जिंदगी के लिए आसमान हैं और इमरोज मेरे घर की छत

1935 में अमृता की शादी लाहौर के कारोबारी प्रीतम सिंह से कर दी गई थी। दोनों के बच्चे भी हुए। 1960 में उन्होंने पति को छोड़ दिया। फिर अमृता को मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी से प्रेम हुआ, लेकिन साहिर की जिंदगी में एक महिला के आने से दोनों एक दूजे के नहीं हो सके। इसके बाद अमृता की जिंदगी में चित्रकार व लेखक इमरोज आए जिन्हें अमृता से प्रेम हुआ। कहा जाता है कि अमृता अक्सर साहिर का नाम इमरोज की पीठ पर अपनी उंगलियों से लिखती थीं। इमरोज इस बात को जानते भी थे, मगर वह अपने प्रेम पर ज्यादा यकीन करते थे। वह कहतीं थीं, साहिर मेरी जिंदगी के लिए आसमान हैं और इमरोज मेरे घर की छत।

अमृता की यादों में खोए रहते थे इमरोज

इमरोज के निधन की पुष्टि उनकी करीबी दोस्त अमिया कुंवर ने की। उन्होंने कहा, “इमरोज़ कुछ दिनों से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह एक पाइप के माध्यम से खाना खा रहे थे, लेकिन वह अमृता को एक दिन के लिए भी नहीं भूल पाए। वह कहते थे ‘अमृता है, यहीं है’। इमरोज़ ने भले ही आज भौतिक दुनिया छोड़ दी हो, लेकिन वह केवल अमृता के साथ स्वर्ग में गए हैं।”

इमरोज और अमृता के बीच सात साल का फर्क था

कुछ वर्ष पहले इमरोज ने अमृता और साहिर के रिश्ते के बारे में एक खुलासा किया था। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा- मुझे नहीं लगता कि वास्तव में अमृता और साहिर लुधियानवी एक-दूसरे से प्यार करते थे। जब साहिर किसी मुशायरे में शामिल होने के लिए आए थे, तब के अलावा वह कभी भी अमृता से मिलने दिल्ली नहीं आए। वहीं अमृता भी कभी उनसे मिलने मुंबई नहीं गईं, जहां वह रहते थे। साहिर पारिवारिक व्यक्ति नहीं थे और अमृता को इसका एहसास हो गया था। मैं और अमृता दोस्तों की तरह अलग-अलग कमरों में रहते थे और खर्चा साझा करते थे।अमृता और इमरोज के बीच उम्र में सात साल का फासला था।

साल 2005 में अमृता का निधन हो गया

साल 2005 में अमृता का निधन हो गया। अमृता ने अपनी मृत्यु से पहले इमरोज के लिए एक कविता लिखी ‘मैं तुम्हें फिर मिलूंगी।’ वहीं, इमरोज उनकी मृत्यु के तुरंत बाद कवि बन गए थे। उन्होंने अमृता पर एक प्रेम कविता पूरी की-‘उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं।’इंद्रजीत 1996 में अमृता से जुड़े जब उन्होंने अपनी पत्रिका ‘नागमणि’ का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने उनके साथ इलस्ट्रेटर के रूप में काम किया और वहीं से उनकी इंद्रजीत से इमरोज़ तक की कहानी शुरू हुई।कुछ साल बाद अमृता बहुत बीमार रहने लगीं और बाद में साल 2005 में उनकी मौत हो गई। अमृता के आखिरी कुछ दिनों में इमरोज़ हमेशा उनके साथ थे। उनकी मृत्यु के बाद, उन्होंने अमृता को समर्पित कविताएँ लिखीं। सिर्फ कविताएं ही नहीं, उन्होंने चार काव्य पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ‘जश्न जारी है’, ‘मनचाहा ही रिश्ता’ और ‘रंग तेरे मेरे’ शामिल हैं।

अमृता अपने प्रेमी इमरोज़ को ‘जीत’ कहकर बुलाती थीं।

इमरोज़ ने उनके लिए ‘अमृता के लिए नज़म जारी है’ नाम से एक किताब भी लिखी। यह पुस्तक वर्ष 2008 में हिंदी पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई थी।प्रेमी जोड़े लगभग 40 वर्षों तक एक साथ रहे लेकिन कभी शादी नहीं की। इमरोज़ और अमृता की प्रेम कहानी ऐसी मानी जाती है जिसे हमेशा याद रखा जाएगा।

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