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Pippa Review:पाकिस्तान को हराने वाले टैंक की रोचक कहानी,ईशान की एक्टिंग है दमदार


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मुंबई – अभिनेता ईशान खट्टर पिछले काफी समय से अपनी फिल्म ‘पिप्पा’ को लेकर चर्चा में हैं। फिल्म में मृणाल ठाकुर और प्रियांशु पेन्युली जैसे कलाकार भी नजर आए हैं। राजा कृष्णा मेनन के निर्देशन में बनी इस फिल्म के निर्माता रॉनी स्क्रूवाला और सिद्धार्थ रॉय कपूर हैं। फिल्म 10 नवंबर को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। ‘पिप्पा’ आपको देखनी चाहिए या नहीं, जानने के लिए पढ़िए पहले ये रिव्यू।कहानी ‘पिप्पा’ नामक एक टैंक के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जिसने 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों को धूल चटाई। ब्रिगेडियर बलराम सिंह (ईशान), राम (प्रियांशु पेन्युली) और राधा (मृणाल ठाकुर) तीनाें भाई बहन हैं, जिनकी तिकड़ी खूब जमती है। परिवार में सबसे नकारा समझा जाने वाला बलराम आगे चलकर ‘पिप्पा’ को युद्ध पर जाने के लिए तैयार करता है और एक ऐसे अविश्वसनीय मिशन को अंजाम देता है कि उसकी बहादुरी की मिसाल दुनियाभर में दी जाती है।

ईशान की अभिनय यात्रा में ‘मील का पत्थर’

यूं तो मृणाल से लेकर प्रियांशु तक, हर कलाकार ने अपने हिस्से आए किरदार को खूबसूरती से निभाया, लेकिन ईशान ने न सिर्फ अपनी भूमिका के साथ न्याय किया, बल्कि वह आखिर तक चमकते रहे। परिवार और सरहद दो अलग-अलग मोर्चों पर जंग लड़ रहे बलराम अपने हर भाव को पर्दे पर ऐसे आत्मसात करते हैं कि सीन दर सीन आप उनसे जुड़ते चले जाते हैं। खासकर भावनात्मक दृश्यों में वह अपना दर्द महसूस कराने में पूरे खरे उतरते हैं।

तकनीकी रूप से शानदार फिल्म


एक खास कालखंड में बनने वाली फिल्मों में कलाकारों, निर्देशक, संगीत, संपादन, नृत्य संयोजन की खूब बातें होती हैं, यहां भी होंगी। लेकिन ऐसी किसी भी फिल्म की आत्मा जो शख्स रचता है, वह होता है इसका प्रोडक्शन डिजाइनर। मौजूदा समय मे जी रहे दर्शकों को पांच दशक पीछे ले जाने का और उसका पूरा एहसास कराने का ये काम बहुत ही शानदार तरीके से किया है ‘पिप्पा’ के प्रोडक्शन डिजाइनर मुस्तफा स्टेशनवाला ने। ऐसी फिल्में देखते समय दर्शकों के सामने चुनौती होती है कि कैसे वह अपना दिल फिल्म से लगाएं और फिल्म बनाने वालों के सामने चुनौती होती है कि शुरू के ही 20-25 मिनटों में वे ऐसा क्या कुछ दिखाएं कि दर्शक एकदम से उनकी कहानी के साथ हो ले। फिल्म ‘पिप्पा’ में ये दूसरा अच्छा काम किया है संगीतकार ए आर रहमान ने शेली के लिखे गाने ‘मैं परवाना’ के जरिये। एक खास तरह के खांचे में फिट होते जा रहे गायक अरिजीत सिंह का इस गाने में रहमान के संगीत के जरिये पुनर्जन्म हुआ है। कुछ कुछ ‘जुबली’ जैसा गाना है लेकिन है बहुत शानदार। विजय ए गांगुली के नृत्य निर्देशन के अलावा मंदिरा शुक्ला की कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग का भी इसी गाने में पूरा का पूरा इम्तिहान हो जाता है। मतलब कि फिल्म तकनीकी रूप से काफी मजबूत फिल्म है।

न्यूजबाइट्स प्लस

‘पिप्पा’ पर बात करें तो इसकी खासियत है कि ये घी के एक खाली डिब्बे की तरह आसानी से पानी में तैर सकता है, इसलिए इसका नाम ‘पिप्पा’ रखा गया। फिल्म में दिखा यह टैंक सेना के पास बचा असली इकलौता ‘पीटी-76’ टैंक है।

इस संयोग ने बनाया फिल्म को और खास

इस फिल्म को एक और चीज ने प्रामाणिक और यथार्थवादी बनाया है। वो ये कि जब ईशान ने ‘पिप्पा’ की शूटिंग शुरू की थी, तब उनकी उम्र 26 साल की थी। यह संयोग ही है कि जब ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता इस युद्ध में बतौर कप्तान शामिल हुए थे तो उनकी भी उम्र 26 साल ही थी। अब यह भले ही महज एक इत्तेफाक हो, लेकिन इसने फिल्म की कहानी को और वास्तविक बना दिया है।

संगीत है उम्दा

एआर रहमान का संगीत फिल्म में जोश भरने का काम करता है। अरिजीत सिंह की आवाज फिल्म में चार चांद लगाती है। साउंड डिजाइन और संगीत सुनकर लगता है कि अगर फिल्म सिनेमाघरों में आई होती तो इसे देखने का मजा कुछ और ही होता।

राजा कृष्णा मेनन का निर्देशकीय कमाल


अब, आते हैं फिल्म के कलाकारों और इसके निर्देशन पर। राजा कृष्ण मेनन की पिछली फिल्म ‘शेफ’ अगर आपने देखी है तो आपको समझ आ ही गया होगा कि पारिवारिक रिश्तों की नब्ज समझने और उसे पकड़े रहने में उनका सानी नहीं है। उसके पहले फिल्म ‘एयरलिफ्ट’ में वह ये दिखा चुके हैं कि किसी फिल्म को बनाने में उनके किरदारों की मानसिकता को परदे पर कैसे पेश किया जाता है, फिल्म ‘पिप्पा’ इन दोनों अच्छी फिल्मों से बेहतर निर्देशक बने राजा की बेहतरीन फिल्म है। केरल में पैदा होने के बावजूद हिंदी वह कमाल की बोलते हैं और शायद इसीलिए वह हिंदी पट्टी की पृष्ठभूमि वाली दो भाइयों और एक बहन की इस कहानी को बनाकर सम्मानजनक अंकों से उत्तीर्ण होने में कामयाब रहे। राजा कृष्ण मेनन की ये फिल्म कायदे से बड़े परदे पर रिलीज होनी चाहिए थी। फिल्म में जहां जहां पिप्पा पानी में तैरता है, उसे देखने का आनंद वैसे तो आईमैक्स परदे पर लेना चाहिए लेकिन वह न हो तो कम से कम सामान्य फिल्मी परदे पर तो इसे आना ही चाहिए था। फिल्म की साउंड डिजाइन और संगीत भी सिनेमाहॉल में दर्शक के चारों तरफ लगे स्पीकर्स के हिसाब से ही बना है, ऐसी फिल्म को मोबाइल, लैपटॉप या टेलीविजन पर देखना ही ‘पाप’ है।

सम्मानजनक अंकों से पास हुए निर्देशक

राजा कृष्णा मेनन का निर्देशन फिल्म में तारीफ का हकदार है। ‘एयरलिफ्ट’ में भी वह अपना निर्देशकीय कमाल दिखा चुके हैं। वॉर ड्रामा फिल्माें पर उनकी कितनी अच्छी पकड़ है, यह एक बार फिर मेनन ने साबित कर दिया है। उन्होंने संवेदनशीलता और मानवता की कड़ी टूटने नहीं दी, जो कहानी को और मजबूत बनाती है। 1971 युद्ध में क्या कुछ हुआ, यह सब जानते हैं, लेकिन निर्देशक ने जिस तरह से इसे कहानी में पिरोया है, वो काबिल-ए-तारीफ है।

खल सकती हैं ये कमियां

कुछेक कमियां है, जैसे युद्ध पर और गहनता से काम किया जा सकता था। युद्ध वाले दृश्य ज्यादा दमदार या कहें रोमांचक हो सकते थे। पहला हाफ खींचा हुआ सा लगता है। ‘पिप्पा’ के साथ बलराम के जुड़ाव पर भी उतना ध्यान नहीं दिया गया।

देखें या ना देखें?

क्यों देखें?- भारत के वीरों काे यह फिल्म एक सच्ची श्रद्धांजलि देती है। सबसे अच्छी चीज है निर्देशक ने सिनेमा का एक साहसिक प्रयोग करते हुए सीधे पते की बात की है। बेमतलब का रोमांस और गाने फिल्म में नहीं ठूंसे गए हैं, जो इसे दर्शनीय बनाता है।

क्यों न देखें?- युद्ध पर बनीं फिल्मों से परहेज है और अगर फिल्म से अच्छे ड्रामे या एक्शन की उम्मीद है तो ‘पिप्पा’ आपको निराश कर सकती है।

खूब जमी राम, बलराम और राधा की तिकड़ी

कलाकारों में ईशान के साथ भी ये संयोग रहा कि 26 साल की उम्र में जंग लड़ने चले गए कैप्टन बलराम मेहता की कहानी फिल्माते वक्त वह भी इतनी ही साल के थे। पंजाबी पृष्ठभूमि का उनका किरदार है। फौज में ही मेजर बड़े भाई राम से उसकी कतई पटती नहीं है। बहन राधा के साथ वह सुट्टा मारता है। मां दोनों भाइयों की इस अनबन की तड़प बस आंखों से बयां करती है। ईशान ने एक युवा फौजी के रूप में अच्छा काम किया है लेकिन उनको अपने मुख मुद्राओं पर अब भी काफी काम करने की जरूरत है। चेहरे की मांसपेशियों को अभिनय में इस्तेमाल करना जो कला है, वह फिल्म में प्रियांशु और मृणाल के अभिनय में नजर आती है। सोनी राजदान फिल्म ‘वॉर’ में रॉ एजेंट की मां बनी और यहां दो फौजियों की। काम उनका भी शानदार है। सैम मानेकशॉ के किरदार में कमल सदाना को देखना सुखद रहा। इंदिरा गांधी के किरदार में हालांकि फ्लोरा डेविड जैकब का चयन ठीक नहीं कहा जा सकता।

सच्ची कहानी पर है आधारित फिल्म


ब्रिगेडियर बलराम सिंह मेहता की पुस्तक ‘द बर्निंग चैफीज’ पर बेस्ड पिप्पा, उनकी असली कहानी है। इसके बाद भी फिल्म को रविंदर रंधावा तन्मय मोहन और राज कृष्ण मेनन ने मिलकर लिखा है। राइटिंग टीम ने इस फिल्म को कसा हुआ लिखा है और वह कसावट स्क्रीन में भी नजर आती है। राजा कृष्ण मेनन द्वारा डायरेक्टेड इस फिल्म में हर वह एलिमेंट है, जो एक फिल्म में देखना चाहिए। यहां उनकी टेक्निकल टीम भी दाद देनी पड़ेगी। फिल्म को इतना रियल रखने की भरपूर कोशिश की है। फिल्म के लोकेशन भी 70 के दशक के दिखाए हैं। कास्टिंग टीम का भी काम बढ़िया है।

एक्टिंग में है दम


एक्टिंग की बात करें तो यहां ईशान खट्टर ने अपना पूरा दमखम लगाया है। ईशान ने 26 साल के कैप्टन बलराम मेहता के बारे में बहुत महीन तरीके से पढ़ा और समझा है। इसका असर उनके अभिनय में भी दिखता है। यह संयोग है या कुछ और कि जब ईशान 26 साल के थे, तभी इसकी शूटिंग शुरू हुई थी। राम के रोल में प्रियांशु का काम बेहद सधा हुआ है। उनके हाव भाव एक आर्मी अफसर और घर के बड़े बेटे के लगते हैं। राधा के रोल में मृणाल ने भी संजीदगी पकड़ी है। उनका काम भी देखने योग्य है। मां के रोल को सोनी राजदान ने निभाया है। इसके पहले वह रॉ अफसर की मां की भूमिका निभा चुकी हैं। इस बार उनके बेटे आर्मी में हैं। सैम मानेकशॉ बने कमल सदाना का काम भी अच्छा है। इसके अलावा फिल्म के बाकी सपोर्टिंग कास्ट ने भी अपने हिस्से का अच्छा काम किया है।

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