Dhanteras 2023 : साल में सिर्फ धनतेरस के दिन ही होते है भगवान धनवंतरी के दर्शन ,जानें महत्व

नई दिल्लीः धन्वंतरि जयंती कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाई जाती है। इस दिन को भगवान धन्वंतरि, जो कि आयुर्वेद के पिता और गुरु माने जाते हैं, उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि देवताओं के चिकित्सक हैं और भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माने जाते हैं। धन्वंतरि जयंती को धनतेरस तथा धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है.धनतेरस के दिन होगा भगवान धन्वंतरि का सार्वजनिक दर्शन होगा। धन्वंतरि भगवान की भारत की एकमात्र अष्टधातु की मूर्ति सुड़िया बुलानाला स्थित में बैद्यराज स्व. शिव कुमार शास्त्री के धन्वंतरि निवास में विराजमान है। भगवान धन्वंतरि की ये दुर्लभ मूर्ति लगभग 300 साल पुरानी है।
भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर हुए प्रकट
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वंतरि समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज इस शुभ तिथि पर धन्वंतरि भगवान का पूजन कर धन्वंतरि जयंती मनाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन खरीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है।
भगवान धनवंतरी से जुडी बाते
धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था।
काशी में स्थित है धन्वंतरि की अद्भुत अष्टधातु की प्रतिमा
धर्म की नगरी काशी (Kashi) अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए है. इस अद्भुत शहर की हर चीज निराली है. इसी काशी में देवताओं के वैद्य कहे जाने वाले भगवान धन्वंतरि की अद्भुत अष्टधातु की प्रतिमा है.जिसका दर्शन साल में सिर्फ एक दिन धन्वन्तरि जयंती पर भक्तों को हो पाता है. वाराणसी (Varanasi) के सूड़िया स्थित धन्वंतरि निवास में 300 साल से अधिक पुरानी ये प्रतिमा स्थापित है.जिसके दर्शन के लिए उनकी जयंती पर दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं.
धन्वंतरि ने शरीर के एक-एक अवयव की स्वस्थ और अस्वस्थ माप बताई है
सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है। पुरुष अथवा स्त्री को अपने हाथ के नाप से 120 उंगली लंबा होना चाहिए, जबकि छाती और कमर अठारह उंगली। शरीर के एक-एक अवयव की स्वस्थ और अस्वस्थ माप धन्वंतरि ने बताई है। उन्होंने चिकित्सा के अलावा फसलों का भी गहन अध्ययन किया है। पशु-पक्षियों के स्वभाव, उनके मांस के गुण-अवगुण और उनके भेद भी उन्हें ज्ञात थे। मानव की भोज्य सामग्री का जितना वैज्ञानिक व सांगोपांग विवेचन धन्वंतरि और सुश्रुत ने किया है, वह आज के युग में भी प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण है।
धनतेरस के दिन होंगे दर्शन
काशी के प्रसिद्ध सुड़िया स्थित वैद्यराज आवास में विराजित भगवान धनवंतरी मंदिर के पट 10 नवम्बर को ही खुलेंगे. धन्वंतरि निवास में प्रतिस्थापित भगवान धन्वंतरि की अष्टधातु की मूर्ति करीब 325 साल पुरानी है. जो भारत में एकमात्र मानी जाती है.इस वर्ष भी श्री धन्वंतरि पूजनोत्सव विक्रम संवत 2080 कार्तिक कृष्ण 13 शुक्रवार धनतेरस के दिन 10 नवंबर को सायंकाल 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक ही भगवान के सार्वजनिक दर्शन हेतु मंदिर का पट खुलेगा. ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के दर्शन मात्र से वर्ष भर निरोग एवं व्याधिमुक्त रह सकते हैं. धन्वंतरि निवास में स्थापित मूर्ति भगवान धन्वंतरि के दर्शन वर्ष में सिर्फ एक दिन ही होता है. जिसके दर्शन के लिए देश विदेश के श्रद्धालु निरोग रहने हेतु आते हैं.
भगवान धन्वंतरि के दर्शन से वर्ष भर निरोग एवं व्याधिमुक्त रह सकते हैं
ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के दर्शन मात्र से वर्ष भर निरोग एवं व्याधिमुक्त रह सकते हैं। इसलिए इस दिन शाम से देर रात तक दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के दर्शन मात्र से वर्ष भर निरोग एवं व्याधिमुक्त रह सकते हैं। इसलिए इस दिन शाम से देर रात तक दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
धन्वंतरि जयंती पर खास पूजा
धन्वंतरि निवास आज उनके जयंती के मौके पर भगवान धन्वंतरि के इस प्रतिमा का खास विधि के पूजन अर्चन और श्रृंगार किया गया. फल फूलों के अलावा जड़ी बूटी और औषधि की लोग उनको लगाई गई. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन भगवान धन्वंतरि के पूजन और दर्शन से सभी रोग और कष्ट से मुक्ति मिल जाती है. यही वजह से की आज यहां भक्तो की कतार लगी होती है. शाम चार से बजे से शुरू हुआ दर्जन पूजन का ये क्रम रात 11 बजे तक चलता है.बताते चले कि बीते साल कोरोना के कारण भगवान धन्वंतरि अपने भक्तों को ऑनलाइन दर्शन दे रहे थे लेकिन इस बार कोरोना का प्रकोप कम होने के बाद धूमधाम से उनके जन्म का उत्सव मनाया गया.