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टेक्नोलॉजी

फोन कैमरा से कैसे है अलग हमारी आंखें, कितने मेगापिक्सल कैमरा फिट है?-जानें


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नई दिल्लीः जब भी कोई शख्स फोन ये कैमरा खरीदता है तो उसमें सबसे पहली चीज यही चेक करता है कि उसका कैमरा कितने मेगापिक्सल है. अगर फोन या कैमरा में ज्यादा मेगापिक्सल वाला लेंस होता है तो लोग बिना सोचे समझे वो डिवाइस खरीद लेते हैं. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि हमारी आंखें कितने मेगापिक्सल की होती हैं. आप में से ज्यादातर लोग इस बात के बारे में नहीं जानते होंगे कि हमारी आंखें कैमरे की तरह ही होती हैं. यहां हम आपको बताएंगे कि आखिर हमारी आखें डीएसएलआर कैमरा से ज्यादा मेगापिक्सल की कैसे होती हैं.

मार्केट में 200 मेगापिक्सल तक कैमरा वाले स्मार्टफोन्स को लॉन्च किया जा चुका है। वहीं, कई DSLR भी मौजूद हैं जो छोटी से छोटी चीज की फोटो डिटेलिंग के साथ कैप्चर करने में सक्षम होते हैं। ये तो रही डिवाइसेज की बात। लेकिन क्या कभी आपके दिमाग में यह सवाल आया है कि आखिर एक व्यक्ति की आंख में कितने मेगापिक्सल का कैमरा होता है? हालांकि, ह्यूमन आई में कोई कैमरा नहीं होता है लेकिन एक ह्यूमन आई आखिर इतना क्लियर कैसे देख पाती है और उसकी तुलना कितने मेगापिक्सल कैमरा से की जा सकती है, यह हम आपको यहां बता रहे हैं।

आजकल स्मार्टफोन्स जिंदगी में जरूरी हिस्सा बन गए हैं. इसलिए लोग आए दिए इसे अपडेट करते हैं. खरीदने से पहले फीचर्स भी देखते हैं. इन्हीं में से सबसे जरूरी होता है कैमरे की क्वालिटी और उसका मेगापिक्सल. कैमरे में जितने ज्यादा मेगापिक्सल होते हैं उससे क्लिक की गई तस्वीर में उतनी ही ज्यादा डिटेल भी होती है. आज का डिजिटल कैमरा इंसान की आंखों की बनावट से ही प्रेरित लगता है. ऐसे में क्या आपको कभी ये सोचा कि हमारी आंखों में कितना मेगापिक्सल होता है?

इंसान के शरीर में हर हिस्सा अपना काम करता है और हर बॉडी पार्ट की अपनी एक खासियत होती है. ठीक वैसे ही हमारी आंखें भी अपनी काम बखूबी करती हैं बिना इनके तो जिंदगी में सब अंधेरा ही होगा. अगर हम बात करें तो कि आंख कैमरा की तुलनामें ज्यादा बेहतर विजुअल देख पाती है तो उसमें कुछ गलत नहीं होगा, दरअसल हमारी आंख किसी डीएसएलआर से कम नहीं होती हैं. आंख को कैमरे की के हिसाब से देखा जाए तो इससे शख्स 576 MP तक का विजुअल देख सकता है.इसका मतलब यह है कि एक ह्यूमन आई इतने मेगापिक्सल तक क्लियर देख सकती है। हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि किसी भी इंसान की आंख की फोन के कैमरा से तुलना नहीं की जा सकती है। ये दो अलग-अलग चीजें हैं।

देखा जाए तो हमारी आंख किसी डिजिटल कैमरे जैसी ही हैं. अगर हम आंख की तुलना कैमरे से करें, तो हमारी आंखे 576 मेगापिक्सल तक का दृश्य हमें दिखाती है. यानी आंखों की मदद से हम एक बार में 576 मेगापिक्सल का क्षेत्रफल देख सकते हैं. यह रेजोलूशन इतना ज्यादा है कि हमारा दिमाग इसे एक साथ प्रोसेस नहीं कर पाता है.

कैमरा ओवरऑल कैप्चर पर ध्यान देता है। लेकिन आंख ऑब्जेक्ट पहचानने में मदद करती हैं। जो फोटो हम फोन पर या पीसी पर देखते हैं उसे बिल्डिंग ब्लॉक से बनाया जाता है। यह फोटो की सबसे छोटी यूनिट होती है। ऐसे में एक अच्छी फोटो में ज्यादा से ज्यादा पिक्सल होने चाहिए। जितने ज्यादा पिक्सल मौजूद होते हैं फोटो उतनी ही क्लियर आती है। जब आंख एक पूरी सीनरी को देखती है और उसमें कोई पिक्सल नहीं होते हैं।हालांकि इंसान का दिमाग इस तरह काम नहीं करता है इनसे कुछ हिस्सा ही बिलकुल साफ और हाई डेफिनेशन में दिखता है. पूरे विजुअल को क्लीयर देखने के लिए आंखों को अलग-अलग तरीके से फोकस करना पड़ता है.

अगर हम बात करें डीएसएलआर कैमरे और फोन के कैमरे कि तो डीएसएलआर में 400 MP तक की फोटो कैप्चर करने की कैपेसिटी होती है वहीं आज के समय में फोन में मिलने वाले कैमरा 108-200 मेगापिक्सल तक के बनाए जा रहे हैं.वैसे उम्र के हिसाब से आखों की देखने की कैपेसिटी अलग-अलग हो जाती है एक बच्चा या यंगस्टर जिस चीज को क्लीयर देख सकता है, वहीं चीज किसी बुजुर्ग को हल्की या ब्लर दिखती है. एक उम्र के बाद आंख का रेटिना कमजोर पड़ने लगता है जिससे फ्यूचर में लोगों को कम दिखने लगता है.

हमारी आंखों की ये क्षमता पूरे जिंदगीभर एक समान नहीं रहती है. उम्र ढलने के साथ-साथ आंखों के देखने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है. ऐसा नहीं है कि, अगर कोई एक युवक किसी दृश्य को स्पष्ट और साफ देख पा रहा है, तो एक बुजुर्ग को भी वह बिल्कुल साफ-साफ नजर आएगा.जिस तरह शरीर के बाकी अंग उम्र बढ़ने के साथ-साथ कमजोर हो जाते हैं, उसी तरह बढ़ती उम्र के साथ आंखों का रेटिना भी कमजोर होने लगता है. यही कारण है कि बुजुर्ग लोगों को नजर कमजोर हो जाती है और देखने में परेशानी होती है.

वहीं, अगर स्मार्टफोन के कैमरे पर नजर डालें तो यह आपको इतने मेगापिक्सल का कैमरा दूर-दूर तक दिखाई नहीं देगा. आज के समय मोबाइल में कैमरे भी 200 मेगापिक्सल के बनाए जा रहे हैं. 576-मेगापिक्सेल रिजोलूशन इतना ज्यादा होता है कि आप किसी तस्वीर के अलग-अलग पिक्सल में अंतर नहीं कर सकते. वहीं, अगर बात करें DSLR कैमरा की, तो वे 400 मेगापिक्सल तक की तस्वीर ले सकते हैं.

जिस तरह से डिजिटल कैमरा काम करता है। उस तरह से आंख नहीं करती है। आंख के काम करने का तरीका अलग होता है। पावर और मशीनरी मैकेनिज्म पर काम करने वाला कैमरा किसी भी फोटो को जूम करके देखा जा सकता है। वहीं, आंख में नर्व सिस्टम और रेटीना होती है। इसके जरिए व्यक्ति किसी ऑब्जेक्ट को पहचान पाता है। ख एक खास सिस्टम से ऑब्जेक्ट को पहचानने में मदद करती है। जबकि डिजिटल कैमरा पावर और मशीनरी मैकेनिज्म पर काम करता है।

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