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जवान की रिलीज के बाद क्यों हो रही गोरखपुर अस्पताल कांड की चर्चा,जानें वज़ह


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मुंबई – बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान की फिल्म जवान को हर तरफ पसंद किया जा रहा है. फिल्म ने रिलीज के साथ कमाल कर दिया है और कमाई के मामले में दुनियाभर में दो दिनों में ही 200 करोड़ से ज्यादा अपनी झोली में भर लिए हैं. शाहरुख खान की इस फिल्म में कई सारे सामाजिक मुद्दों पर बातें की गई हैं. इस लिहाज से ये फिल्म और भी खास हो गई है. और ये मुद्दे ऐसे हैं जो आज के दौर के हिसाब से काफी ऑथेंटिक भी हैं. शाहरुख खान की फिल्म में सान्या मल्होत्रा वाला जो सीन है उसे रियल लाइफ से प्रेरित माना जा रहा है.

शाहरुख खान की फिल्म जवान (Jawan) को बॉक्स ऑफिस पर जोरदार ओपनिंग मिली है और किंग खान ने फैंस को इसके लिए शुक्रिया भी अदा किया है. फिल्म में दर्शकों को कहानी और एक्टिंग दोनों ही काफी पसंद आई है. मूवी रिलीज होने से पहले तक किसी को इसका अनुमान नहीं था कि फिल्म में देश को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने वाली घटनाओं को भी शामिल किया गया है. सिनमा हॉल से निकलने के बाद जरूर दर्शक अनुमान लगा रहे हैं कि फिल्म में एक साथ कई मुद्दों को उठाया गया है जिसमें भ्रष्टाचार से लेकर ईमानदारी से काम करने वाले लोगों को निशाना बनाने वाली घटनाएं दर्ज हैं. 2017 के गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कमी की घटना और उसमें डॉक्टर कफील की भूमिका का भी रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल किया गया है.शाहरूख खान की फिल्म ‘जवान’ रिलीज होते ही गोरखपुर ऑक्सीजन कांड और इस कांड के आरोपी डॉक्टर कफील खान एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं। क्योंकि, 10 अगस्त 2017 को BRD मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से हुई इंसेफेलाइटिस पीड़ित मासूमों की मौत जैसी ही कहानी इस फिल्म में दिखाई गई है।फिल्म की कहानी भी बिल्कुल वैसी ही है, जैसी कि गोरखपुर ऑक्सीजन कांड पर डॉ. कफील ने अपनी किताब ‘गोरखपुर अस्पताल त्रासदी’ में लिखा है। हालांकि, फिल्म में कहीं भी गोरखपुर के BRD मेडिकल कॉलेज का जिक्र नहीं है।

डॉक्टर कफील खान गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में साल 2017 में ऑक्सीजन की कमी से हुई बच्चों की मौत के मामले पर सुर्खियों में आए थे. इस मामले में उन पर केस दर्ज किया गया था और उन्हें निलंबित कर दिया गया था. उन्हें कई महीनों तक जेल में भी रहना पड़ा था. समाजवादी पार्टी ने उन्हें देवरिया-कुशीनगर एमएलसी सीट से उम्मीदवार भी बनाया था. डॉक्टर कफील ने इस मामले में हमेशा खुद को बेकसूर बताया था और कहा था कि छुट्टी होने के बाद भी वह इमर्जेंसी की स्थिति में पहुंचे थे. उन्होंने अपने पैसों से ऑक्सीजन खरीदकर बहुत से बच्चों की मदद की थी. इस केस में साल 2019 में उन्हें आरोपमुक्त कर दिया गया था.जवान में सान्या मल्होत्रा ने एक डॉक्टर का रोल प्ले किया है. उनकी कहानी फिल्म में काफी इमोशनल है. जहां एक तरफ अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर्स ना होने की वजह से कई सारे मरीजों की जान चली जाती है जिसमें 60 से ज्यादा बच्चे भी होते हैं. सान्या चाहकर भी मरीजों की मदद नहीं कर पाती हैं लेकिन कहीं से भी मदद ना मिलने के बाद भी वे अंतिम सांस तक लगी रहती हैं. बाद में मेनेजमेंट उनके ऊपर ही आरोप लगा देता है और अपना हाथ झाड़ लेता है. जिसके बाद सान्या की काफी फजीहत होती है.

फिल्म में फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म में डॉ. कफील खान की जगह डॉ. इरम खान हैं। जोकि, इंसेफेलाइटिस वार्ड में ऑक्सीजन की कमी होने पर ऑक्सीजन की​ डिमांड करती हैं। बावजूद इसके अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं होती है। डॉ. इरम ने पहले मासूमों अटेंडेंट को अंबू दिया और ऑक्सीजन पंप करना बताया। फिर वे खुद खुद ऑक्सीजन की व्यवस्था करने में जुट गईं। लेकिन, तब तक काफी देर हो चुकी थी। 57 बच्चों की मौत हो गई।अब फिल्म के इस दृश्य को ही गोरखपुर में साल 2017 में हुए अस्पताल कांड से जोड़कर देखा जा रहा है. इस दौरान 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और इसमें 60 से ज्यादा बच्चे भी थे. इस दौरान इंचार्ज थे डॉक्टर कफील खान. उन्होंने मरीजों को बचाने का हरसंभव प्रयास किया लेकिन विफल रहे. अंत में उनपर ही आरोप लगा दिया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया.हालांकि बाद में जब जांच हुई तो कफील निर्दोष पाए गए और उन्हें रिहा कर दिया गया.

जवान फिल्म के रिलीज होने से पहले टीम और शाहरुख खान की ओर से किसी भी घटना पर फिल्म के आधारित होने का जिक्र नहीं किया गया था. हालांकि, फिल्म किसी एक घटना पर आधारित नहीं है लेकिन अलग-अलग घटनाओं को बैकग्राउंड के तौर पर इस्तेमाल किया गया है. भोपाल गैस त्रासदी और डिफेंस डील में होने वाले भ्रष्टाचार को भी फिल्म में दिखाया गया है. हालांकि विवाद और बिजनेस के लिहाज से होने वाले किसी तरह के नुकसान से बचने के लिए इस पहलू पर शायद चर्चा नहीं की गई है. हालांकि, दर्शक फिल्म देखकर इस कड़ी को बखूबी पहचान रहे हैं.मामला जब तूल पकड़ा तो मासूमों की मौत का ठिकरा डॉ. इरम पर फोड़ दिया गया। डॉक्टर पर आरोप लगे कि डॉ. इरम ड्रग्स के नशे में थीं। जिसकी वजह से उन्होंने बच्चों का गलत इलाज कर दिया, जिससे कि मासूमों की मौत हो गई। ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी से एक भी बच्चे की मौत नहीं हुई। कोर्ट ने डॉ. इरम को सजा सुनाई, जिसके बाद डॉ. इरम को जेल भी जाना पड़ा और उनका मेडिकल रजिस्ट्रेशन भी सस्पेंड कर दिया गया।

अब जवान फिल्म की रिलीज के बाद से लोग इस केस पर फिर से चर्चा शुरू कर चुके हैं. जब बात कफील के कानों में पड़ी तो उन्होंने भी इसपर रिएक्ट किया है. उन्होंने वीडियो शेयर किया और ये स्टोरी दिखाने के लिए शाहरुख खान का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने लिखा- मैंने जवान देखी तो नहीं पर लोग फोन मैसेज कर कह रहे आपकी याद आयी 🙏🏾, फ़िल्मी दुनिया और असली ज़िंदगी में बहुत फर्क होता है. जवान में गुनहगार स्वास्थ मंत्री वगैरह को सजा मिल जाती है पर यहां तो मैं और वो 81 परिवार आज भी इंसाफ़ के लिए भटक रहे 😢🤲🏾. शुक्रिया @iamsrk जनाब और @Atlee_dir सर का कि उन्होंने ये सोशल इश्यू उठाया.

हालांकि, फिल्म की आखिरी की कहानी कुछ अलग है। लंबे संघर्षों के बाद हेल्थ मिनिस्टर खुद टीवी पर लाइव आकर अपना गुनाह कबूल करता है। वह बताता है कि मासूमों की मौत का जिम्मेदार वो खुद हैं और हेल्थ सिस्टम। डॉ. इरम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। जिसके बाद डॉ. इरम दोषमुक्त करार होती हैं।फिल्म रिलीज होने के बाद डॉ. कफील खान ने कहा, ”मैंने अभी तक यह फिल्म नहीं देखी है। लेकिन, मुझे लगातार लोगों के फोन आ रहे हैं। फिल्म के कुछ पार्ट का एक वीडियो भी लोग मुझे भेज रहे हैं। जिसकी स्टोरी बिलकुल वैसी ही है, ​जैसा कि मेरे साथ हुआ। हां, फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म में हेल्थ सेक्रेटरी ने अपना गुनाह कबूल कर लिया, जिसके बाद डॉ. इरम को इंसाफ मिल गया। लेकिन, मैं आज भी इंसाफ के लिए लड़ रहा हूं।”

”फिल्म के डॉयरेक्टर, स्क्रि​प्ट राइटर या एक्टर शाहरूख खान ने कभी मुझसे कोई संपर्क नहीं किया और न ही इस स्टोरी के संबंध में कोई कॉपीराइट लिया। इतना जरूर है कि मैंने इस घटना पर एक किताब ‘गोरखपुर अस्पताल त्रासदी’ लिखी है। जोकि, काफी अधिक संख्या हिंदी और इंग्लिश सहित 6 भाषाओं में देश और विदेशों तक जा रही है। ऐसे में यह संभव है कि मेरी किताब से ही इस फिल्म की कहानी लिखी गई होगी।”17 दिसंबर 2021 को डॉ. कफील खान की किताब ‘गोरखपुर अस्पताल त्रासदी’ का नई दिल्ली में विमोचन हुआ। किताब में डॉक्टर ने ‘एक दर्दनाक चिकित्सा संकट’ का जिक्र किया है। इसमें उन्होंने पर उन पर लगे सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कैसे तूफान के बीच एक डॉक्टर इससे जुझा।

उन्होंने इसके जरिए ‘गोरखपुर ऑक्सीजन कांड’ का पूरा लेखा- जोखा प्रस्तुत किया है, बल्कि यूपी के सरकारी तंत्र पर भी सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि ऑक्सीजन के लिए बकाया 68 लाख रुपए का भुगतान नहीं करने के कारण मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई ठप की गई, लेकिन अपनी खामियों को छिपाते हुए सरकार ने इसका ठिकरा मासूमों की सेवा करने वाले डॉक्टरों पर फोड़ दिया।किताब में कहा है कि 10 अगस्त 2017 की शाम को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के नेहरू अस्पताल में लिक्विड ऑक्सीजन खत्म हो गई। कथित तौर पर, अगले कुछ दिनों में, 80 से अधिक मरीज़ों- 63 बच्चों और 18 वयस्कों ने अपनी जान गंवा दी। कॉलेज के बाल रोग विभाग में सबसे जूनियर प्रवक्ता डॉ. कफील खान ने ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की और अन्य कर्मचारियों के साथ आपातकालीन स्थिति मे उपचार करने मे लगे रहें। ताकि अधिक से अधिक बच्चों को बचाया जा सके।


किताब में लिखा है कि जब त्रासदी की खबर सुर्ख़ियों में आई तब डॉ. खान को संकट की घड़ी में डटे रहने, आपातकालीन स्थिति को नियंत्रित करने और और बच्चों को बचाने में लगातार प्रयास को देखते हुए हीरो कहा गया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया और उनके सहित 9 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और चिकित्सा लापरवाही जैसे अन्य गंभीर आरोपों के लिए केस दर्ज किया गया। आनन- फानन उन्हें जेल भेज दिया गया।

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