25 से कम उम्र वाले भी बन रहे हैं हार्ट अटैक के शिकार,ये हैं वज़ह
नई दिल्लीः एक दशक पहले हृदय रोगों की बात करते हुए उम्र मायने रखती थी, क्योंकि यह एक प्रमुख कारण था जो हृदय रोगों की समस्या को बढ़ाता था। इस समय काम का तनाव, खराब लाइफ स्टाइल और खान-पान की गलत आदतें युवा पीढ़ी के बीच कई स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ावा दे रही है। इसमें हृदय रोग ने तो आज की युवा पीढ़ी पर बुरी तरह अटैक किया है। युवाओं में हार्ट अटैक के बढ़ते मामले चिंता का विषय बन गये हैं। पहले आमतौर पर बुजुर्गों को हार्ट अटैक पड़ा करता था, लेकिन अब इसमें काफ़ी परिवर्तन हो गया है। आज हार्ट अटैक के 25% मामलों में इसका शिकार युवा हो रहे हैं। इस परिवर्तन का मुख्य कारण युवाओं की बदलती जीवनशैली है। वो जिस तरह से खाने, सोने, काम करने की आदतें अपना रहे हैं, उससे उनके हृदय के स्वास्थ्य पर गहरा असर हो रहा है।
विशेषज्ञों ने कई मुख्य कारणों के बारे में बताया है, जिनसे छोटी उम्र में हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ जाता है। गाजियाबाद के मणिपाल अस्पताल के सलाहकार हृदय रोग विशेषज्ञ, डॉ अभिषेक सिंह से जानते हैं कि आखिर इसका कारण क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है।जब 32 वर्षीय प्रकाश को मनीपाल हॉस्पिटल, द्वारका में डॉ. युगल के. मिश्रा के सामने लाया गया तो उसके लक्षण स्पष्ट तौर पर इस बात की तरफ इशारा कर रहे थे कि मरीज को तत्काल कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्ट की आवश्यकता है। वह सीने में गंभीर दर्द, सांस लेने में परेशानी, अत्यधिक थकान और घबराहट जैसी समस्याओं के साथ आया था।
दरअसल, जब भी किसी मरीज को हार्ट अटैक आता है तो हृदय के कुछ हिस्सों में रक्त की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति न हो पाने के कारण उन्हें भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। सीएबीजी सर्जरी के माध्यम से उन हिस्सों में एक मुक्त नस या आर्टियल बाईपास का इस्तेमाल कर नए सिरे से खून पहुंचाया जाता है। यह हृदय के सामान्य हिस्सों से ब्लॉक आर्टरियों को बाईपास कर प्रभावित इलाकों से जोड़ा जाता है। मुक्त नस या आर्टरी को मरीज के शरीर के अन्य हिस्सों से लिया जाता है जैसे पैर या फीमर यानी जांघ की हड्डी या भुजाओं या फिर सीने के हिस्सों से ही इन्हें लिया जाता है।
ज़्यादा वजन हृदय पर दबाव डालता है, और शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देता है। यह कोलेस्ट्रॉल रक्त वाहिनियों में जमा होकर उन्हें अवरुद्ध कर देता है, जिससे खून नसों में आगे नहीं बढ़ पाता, और इससे ह्रदय की खून को पम्प करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसलिए उचित पोषण और व्यायाम द्वारा शरीर का वजन नियंत्रित रखना जरूरी है।अस्वस्थ हृदय का एक कारण मोटापा भी है। युवाओं की खाने-पीने की आदतें बिगड़ती जा रही हैं। समय की कमी के कारण वो खुद खाना नहीं बना पाते और पेट भरने के लिए जंक फूड पर निर्भर हो जाते हैं, जिससे उन्हें घर का बना सेहतमंद खाना नहीं मिल पाता।
इस बारे में डॉ. युगल के मिश्रा, प्रमुख, कार्डिएक साइंसेज एवं प्रमुख कार्डियो वैस्क्यूलर सर्जन ने कहते हैं, ‘क्योंकि मरीज 32 वर्ष का युवा था हमारा लक्ष्य ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया अपनाना था जो उन्हें जल्दी से जल्दी अपने पैर पर खड़े होने में सक्षम बना सके। न्यूनतम नुकसानदायक सर्जिकल प्रक्रिया न सिर्फ रक्त का न्यूनतम नुकसान सुनिश्चित करता है बल्कि इसमें मरीज में सुधार की अवधि भी कम होती है। इसके साथ अस्पताल में भी कम समय ठहरना पड़ता है।देर रात तक जागने और कम नींद लेने से हृदय पर अच्छा असर नहीं पड़ता। नियमित व्यायाम हृदय की खून को पंप करने क्षमता बढ़ाता है। व्यायाम करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल और फैट की मात्रा भी कम हो जाती है, जिससे मोटापा कम करने में मदद मिलती है और रक्त वाहिनियों एवं नसों में जमी रुकावट दूर होकर रक्त प्रवाह में भी सुधार होता है। हृदय को स्वस्थ रखने से शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसलिए एक अच्छे और लंबे जीवन के लिए हृदय को स्वस्थ रखना जरूरी है।
90 के दशक के मध्य में भारत में हर वर्ष करीब 10,000 सीएबीजी सर्जरियां होती हैं। मौजूदा आंकड़े इसमें महत्वपूर्ण वृद्धि दर्शाते हैं और आज के समय में हर वर्ष करीब 60,000 सर्जरियां होती हैं। मेरे अनुभव में मरीजों की उम्र घटकर 20 से 40 वर्षों के बीच रह गई है और यह खतरनाक आंकड़ा है। 2015 तक 6.2 करोड़ भारतीय सीएडी से पीड़ित हैं जिनमें से 2.3 करोड़ मरीज 40 वर्ष से कम उम्र के थे। अनुमान दर्शाते हैं कि 2025 तक सीएडी में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाएगी।’’
आजकल युवा अपने करियर, अच्छी जॉब और गुणवत्तापूर्ण जीवनशैली को मेंटेन रखने को लेकर तनाव में रहते हैं। आज के व्यस्त और प्रतिस्पर्धी वातावरण में तनाव काफ़ी बढ़ चुका है, जिससे हृदय के स्वास्थ्य पर बुरा असर हुआ है। तनाव से शरीर में कोर्टिसोल और एड्रीनलीन जैसे हार्मोन निकलते हैं, जिनसे रक्तवाहिनिओं पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस वजह से रक्तचाप बढ़ता है और लंबे समय तक यह स्थिति बने रहने पर हृदय की रक्त वाहिनियों को क्षति पहुंचती है।बेहतर प्रौद्योगिकी और नवोन्मेश के साथ सर्जरी हृदय के धड़कते हुए या रक्त की पंपिंग करते हुए भी की जा सकती है और इसे ऑफ पंप कोरोनरी बाईपास (ओपीसीएबी) सर्जरी कहते हैं। यह प्रक्रिया ज्यादातर मरीजों में की जा सकती है। मिनिमली इनवैसिव डायरेक्ट कोरोनरी आर्टरी बाईपास (एमआईडीसीएबी) परफ्यूजन पंप का उपयोग किए बगैर किया जा सकता है।
हार्ट अटैक होने से कई दिन पहले से ही आपका शरीर कुछ शुरूआती संकेत देने लगता है. आइए पहले इन संकेतो के बारे में जानते हैं :
- सीने में भारीपन महसूस होना
- सीने में दर्द होना
- गले, जबड़े, पेट या कमर के ऊपरी हिस्से में दर्द होना
- सीने में खिंचाव या जलन महसूस होना
- किसी एक बांह या दोनों बांहों में दर्द होना
- सांस फूलना
कई बार युवाओं को जब इनमें से कोई लक्षण नजर आते हैं तो वे इस ग़लतफ़हमी में रहते हैं कि अभी तो उनकी हार्ट अटैक आने की उम्र ही नहीं है ये एसिडिटी या किसी और बीमारी के लक्षण हैं. हार्ट अटैक के लक्षणों को छिपाएं नहीं बल्कि कोई भी लक्षण बार-बार दिखे तो जाकर अपनी जांच कराएं.
नशा करने से हृदय में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, और हृदय की धड़कन में बाधा उत्पन्न होती है। इसके अलावा, इससे खून में थक्के बनने लगते हैं, और रक्त वाहिनियों में खून का सुगम प्रवाह कम हो जाता है। लेकिन युवाओं में हार्ट अटैक बढ़ाने वाले जोखिमों को दूर करके हृदय रोग कम किए जा सकते हैं, और भावी पीढ़ी के हृदय के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है।सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 35 वर्ष से कम उम्र में बीमारी में 10 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है। पिछले तीन दशकों में डायबिटीज मेलिटस, उच्च रक्तचाप, डाइस्लिपीडेमिया समेत जोखिम के कारणों में भी बढ़ोतरी हुई है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम जो उच्च रक्तचाप, मोटापे, ग्लूकोज टॉलरेंस, अधिक ट्रिगलीसेराइड्स, कम एचडीएल कोलेस्ट्राॅल जैसे कई कार्डियोवैस्क्यूलर जोखिम कारणों का समूह भी भारत में बढ़ा है।
हार्ट अटैक होने के आनुवांशिक कारणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. ये सच है कि अब आप अपना जीन या डीएनए (DNA) तो नहीं बदल सकते हैं लेकिन हार्ट अटैक के कुछ रिस्क फैक्टर को कम करना आपके हाथ में है.बेहतर होगा कि साल में या दो साल में कम से कम एक बार कार्डियक स्क्रीनिंग से जुड़े टेस्ट जैसे कि ईसीजी, इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram), स्ट्रेस टेस्ट, कार्डियक सीटी (Cardiac CT) या ट्राईग्लिसराइड (Triglycerides) और ब्लड शुगर टेस्ट, होमोसिस्टीन (Homocysteine) आदि टेस्ट ज़रूर करवाएं. अगर आपके परिवार में पहले से कुछ लोग दिल के मरीज हैं तो 30 की उम्र के बाद ही ये टेस्ट करवाना शुरू कर दें.