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ये हैं एक करोड़ पौधे लगाने वाले ‘ट्री मैन’ ,बच्चों की तरह करते हैं पौधों की देखभाल-जानें


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नई दिल्लीः दुनिया में एक से बढ़कर एक जुनूनी लोग हैं जिनकी वजह से धरती पर हरियाली बनी हुई है. एक ओर अंधाधुंध तरीके से पेड़ काटे जा रहे हैं, पोखरों-तालाबों का पाटा जा रहा है, हरियाली खत्म की जा रही हैं, ऐसे में हमें इन दिग्गज हस्तियों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि जो बिना किसी स्वार्थ के ही धरती को हरा-भरा बनाए रखने की मुहिम में लगे हुए हैं. उनकी मुहिम इसलिए भी खास है क्योंकि उन्होंने इसकी शुरुआत अकेले अपने दम पर की थी.दरिपल्ली रमैया को लोग ‘ट्री मैन’ के नाम से भी जानती है। ‘ट्री मैन’ बीज बोकर पौध उगाते हैं और फिर उसे रोपकर बच्चे की तरह देखभाल कर पेड़ बनाते हैं। रमैया अभी तक एक करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं। दरिपल्ली रमैया को ट्री मैन के नाम से भी दुनियाभर में जाना जाता है. पेड़ लगाने का सिलसिला लगातार जारी है.

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अब यह उनकी आदत में इस कदर शुमार हो गया है कि वह जब भी घर से निकलते हैं तो बीज और पौधे अपने साथ लेकर चलते हैं. लोगों ने उनकी आदत देखकर पागल तक कह डाला, लेकिन वो रुके नहीं और लगातार बढ़ते रहे. अब वह एक करोड़ से अधिक पेड़-पौधे लगा चुके हैं.शुरुआत में लोगों ने उनके इस परिश्रम पर खास ध्यान नहीं दिया, लेकिन साल 2017 में उन्हें राष्ट्रीय पहचान तब मिली जब उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. लोगों के बीच उनके काम को पहचान मिली. उनके दृढ़ संकल्प के लिए, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया. साथ ही उन्हें यूनिवर्सल ग्लोबल पीस अकादमी की ओर से मानद डॉक्टरेट की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है. यही नहीं आंध्र प्रदेश सरकार ने भी सम्मानित किया.

पेड़ों को बच्चों की तरह पालते हैं पर्यावरण प्रेमी दरिपल्ली रमैया पेड़ों के प्रति जिम्मेदारी तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि वे स्वयं पेड़-पौधों की देख-रेख भी करते हैं। कोई पेड़ सूख जाए, तो उन्हें कष्ट होता है। वो पेड़ों को बच्चे की तरह ही पालते हैं। वो पेड़-पौधों के बारे में इतना ध्यान बटौर चुके हैं कि उनके पास 600 से ज्यादा किस्म के बीज हैं। जिनकी गुणवत्ता का ज्ञान उनको कई पढ़े-लिखे और पर्यावरण विद लोगों से ज्यादा ही है। हालांकि वो ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं। हरियाली और वृक्षारोपण के प्रति जागरुक करने वाले रमैया के पास जब अपने अभियान के लिए पैसे कम पड़ने लगे, तो उन्होंने अपनी तीन एकड़ जमीन बेच दी। उस रुपयों से बीज और पौधे खरीद और अपने अभियान को जारी रखा।

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