नई दिल्ली – जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद समुदाय के सदस्यों द्वारा जुलूस निकाला गया। मुहर्रम जुलूस में भाग लेने वाले लोग सुबह करीब साढ़े पांच बजे गुरुबाजार में एकत्र हुए क्योंकि अधिकारियों ने व्यस्त लाल चौक क्षेत्र से गुजरने वालेमार्ग पर जुलूस के लिए सुबह छह बजे से आठ बजे तक दो घंटे का समय दिया था।.
34 साल के प्रतिबंध के बाद हजारों शिया मातमदारों को पारंपरिक गुरु बाजार-डलगेट मार्ग के माध्यम से 8वीं मुहर्रम जुलूस निकालने की अनुमति दी गई थी. 1989 में कश्मीर में अधिकारियों की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद 34 वर्षों में पहली बार गुरुवार को जुलूस आयोजित किया गया.हालांकि, पारंपरिक आशूरा जुलूस का मार्ग, जो लाल चौक में आभीगुजर से शुरू होता था और पुराने शहर के जदीबल में समाप्त होता था, 1989 में बुट्टा कदल से शुरू होकर जदीबल पर समाप्त होने वाले वर्तमान मार्ग से छोटा कर दिया गया था. पुराने 12 किलोमीटर के मार्ग पर सुरक्षा कारणों से जुलजिना की अनुमति नहीं दी गई थी.
घाटी में 1989 से आठवीं मोहर्रम के जुलूस में अलगाववादियों के शामिल होने के चलते विवाद खड़े हो गया था. हुर्रियत नेता मौलाना अब्बास अंसारी के संगठन इत्तेहादुल मुस्लिमीन और यासीन मलिक की जेकेएलएफ का जुलूस को भरपूर समर्थन था. ऐसे में तमाम अलगाववादी जुलूस में हिस्सा लिया था. राज्यपाल प्रशासन ने इस डर से 8वीं और 9वीं मुहर्रम के जुलुसू पर प्रतिबंध लगा दिया था कि कहीं ये जुलूस भारत-विरोधी प्रदर्शन में तब्दील न हो जाएं. इसके बाद से श्रीनगर शहर के अंदरूनी शिया बहुल इलाकों में केवल छोटे शोक जुलूसों की अनुमति थी.
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने हजरत इमाम हुसैन (एएस) और कर्बला के शहीदों के बलिदान को याद करते हुए कहा कि सरकार शिया समुदाय की भावना का सम्मान करती है. एक आधिकारिक प्रवक्ता ने एक बयान में एलजी के हवाले से कहा, “मैं कर्बला के शहीदों को नमन करता हूं और हजरत इमाम हुसैन (एएस) के बलिदान और उनके आदर्शों को याद करता हूं.”