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No Confidence Motion:अब तक 27 दफा अविश्वास प्रस्ताव पेश,इंदिरा ने किया सबसे ज्यादा बार सामना


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नई दिल्ली – सड़क से लेकर सदन तक सरकार की नीतियों के खिलाफ विपक्ष अपनी आवाज उठाता है. सदन के भीतर कई तरह से सरकार को घेरा जाता है जिसमें से एक अविश्वास प्रस्ताव है. अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष यह संदेश देता है कि सरकार में लोगों का विश्वास नहीं रह गया है. यहां इस बात की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि कांग्रेस नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ नो कांफिडेंस नोटिस लाई है..यहां हम इतिहास के झरोखों से बताएंगे कि आजाद भारत में कितनी दफा सरकारों को अविश्वास मत का सामना करना पड़ा और नतीजा क्या रहा.साल था 1979 और देश के पीएम थे मोरारजी देसाई. उनके खिलाफ कांग्रेस की तरफ से नो कांफिडेंस पेश किया गया.

आजादी के बाद से यह 28वां अविश्वास प्रस्ताव होगा। फिलहाल भाजपा नीत एनडीए इसे सामना करने की तैयारी में है। वहीं, विपक्ष इसको लेकर सरकार के खिलाफ हमलावर है। आखिर अविश्वास प्रस्ताव होता क्या है? सबसे पहले संसद में यह कब आया? अब तक आए 27 अविश्वास प्रस्ताव में कब क्या हुआ? इनमें से कितने प्रस्ताव सफल हुए? प्रस्तावों में मतों का आंकड़ा क्या रहा? आइये जानते हैं…

वगौड़ा सरकार के पतन के बाद 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में आए और उन्हें भी 1999 में नो कांफिडेंस का सामना करना पड़ा और उनकी सरकार महज एक वोट की कमी से गिर गई.1998 में सत्ता में आने के बाद, अटल बिहारी वाजपेयी ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जो 17 अप्रैल, 1999 को अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की वापसी के कारण एक वोट से हार का सामना करना पड़ा.

प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है.इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं। यह अविश्वास प्रस्ताव बहस के लिए तभी स्वीकार होता है जब कम से कम प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के पास 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो.यानी, अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाले सांसद के प्रस्ताव पर कुल 50 सांसदों का हस्ताक्षर होना चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिन के अंदर इस पर चर्चा कराई जाती है। चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराते हैं या फिर कोई फैसला ले सकते हैं.

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