मुंबई – राम गोपाल वर्मा और मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘सत्या’ को 25 साल पूरे हो गए हैं। ।बॉलीवुड एक्टर मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्मों में काम किया है। करियर में लंबे स्ट्रगल के बाद उन्हें अच्छी फिल्में मिलने लगी। इसमें मनोज के साथ एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर ने लीड रोल प्ले किया था। मनोज बाजपेयी हिंदी सिनेमा की दुनिया में पिछले तीन दशक से भी ज्यादा का समय बिता चुके हैं। उन्होंने अपने करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं। गैंग्स ऑफ वासेपुर, गुलमोहर, सत्या, शूल ये कुछ ऐसी फिल्में हैं, जो कल्ट सिनेमा का उदाहरण हैं।
मनोज को बॉलीवुड में पहचान 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ से मिली थी। अभिनेता इस फिल्म को अपने करियर का गेम चेंजर भी कहते हैं। इस फिल्म के बाद से ही मनोज को बॉलीवुड में काम मिलना शुरू हुआ था और निर्देशकों के बीच भी पहचान मिलने लगी थी। अभिनेता ने कहा कल्ट क्लासिक ने हिंदी सिनेमा में कहानी कहने की शैली को बदल दिया है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में राम गोपाल वर्मा की इस फिल्म को क्लासिक कल्ट माना जाता है। इसमें मनोज बाजपेयी ने भीकू म्हात्रे का रोल प्ले किया था। इसमें उनके साथ उर्मिला मातोंडकर और जेडी चक्रवर्ती ने भी अहम भूमिकाएं निभाई थी।
इन फिल्मों में मनोज बाजपेयी ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से लोगों का दिल जीत लिया है। अब ‘सत्या’ के 25 साल पूरे होने पर मनोज ने फिल्म को लेकर अपने अनुभव को साझा किया है.इंटरव्यू में मनोज ने फिल्म ‘सत्या’ को लेकर अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि मैं इसे गेम चेंजर के रूप में देखता हूं। इस फिल्म ने इंडस्ट्री को पूरी तरह से बदल दिया था। इस फिल्म ने ऑडियंस को फिल्में देखने का एक नया नजरिया दिया था। इस फिल्म के बाद जिस तरह से कहानियां बताई गईं या जिस तरह से लोग फिल्म निर्माण या प्रदर्शन को देखते हैं, सब कुछ इंडस्ट्री और दर्शकों दोनों के लिए बहुत नया था। सत्या की भारी सफलता के बाद मुझे भूमिकाएं, सम्मान और बड़े कार्यालयों में प्रवेश मिलना शुरू हो गया।