PM मोदी का मोटे अनाज में होते हैं कई गुण,मोटे अनाज के क्या हैं देश के लिए ‘मायने’

नई दिल्ली – देश की राजधानी दिल्ली में ‘वैश्विक श्री अन्न सम्मेलन’ के उद्घाटन के बाद उन्होंने एक सभा में कृषि वैज्ञानिकों से देश की खाद्य टोकरी में इन पोषक अनाजों की हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में काम करने की अपील की। वह इस दौरान बोले- यह देश के लिए यह बड़े सम्मान की बात है कि हिंदुस्तान के प्रस्ताव और प्रयासों के बाद संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष’ घोषित किया।
Addressing the Global Millets (Shree Anna) Conference in Delhi. Let us make the 'International Year of Millets' an enormous success. https://t.co/KonmfdQRhP
— Narendra Modi (@narendramodi) March 18, 2023
हम इनके नामों से बरसों से परिचित हैं, मौसम बदलता है तो बाजरे, मक्के, और ज्वार की रोटी को शौक़-शौक़ में खाते भी हैं, लेकिन इनके गुणों से अपरिचित हैं। इनके अलावा जई, कोदो, कुटकी, रागी और समा आदि भी मोटे अनाज में शामिल हैं।
मोटे अनाज गुणों की खान हैं। इनकी सबसे बड़ी ख़ासियत है इनमें पाया जाने वाला रेशा, जो ख़ूब मात्रा में मौजूद होता है। इस रेशे के घुलनशील और अघुलनशील दोनों ही रूप हमारे शरीर में पाचन तंत्र के लिए वरदान की तरह काम करते हैं। घुलनशील रेशा पेट में क़ुदरती तौर पर मौजूद बैक्टीिरया को सहयोग करके पाचन को बेहतर बनाता है। वहीं अघुलनशील रेशा पाचन तंत्र से मल को इकट्ठा करने और उसकी आसान निकासी में मदद करता है। यह पानी भी ख़ूब सोखता है यानी व्यक्ति को मोटा अनाज खाने के बाद प्यास भी ख़ूब लगती है, जो पाचन तंत्र के लिए बहुत स्वास्थ्यकर है।
इसका मतलब यह हुआ कि महीन अनाज खाने और व्यायाम से दूर रहने के चलते जो कब्ज़ियत और शरीर के फूलने जैसी बिन बुलाई बीमारियां हम झेलते हैं, मोटा अनाज उनका सटीक उपचार है। गेहूं में मिलने वाला प्रोटीन ग्लूटेन इन अनाजों में नहीं होता, सो इनसे पाचन तो अच्छा होगा ही।
मोदी के मुताबिक, “भारत मोटे अनाज या श्री अन्न को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयासरत है। मोटा अनाज प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में और रसायनों एवं उर्वरकों का इस्तेमाल किए बिना आसानी से उगाया जा सकता है।” प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि भारत के मोटा अनाज मिशन से ढाई करोड़ लघु एवं सीमांत किसानों को लाभ होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्रीय खाद्य टोकरी में आज मोटा अनाज की हिस्सेदारी केवल पांच-छह प्रतिशत है। मैं भारत के वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों से इस हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए तेजी से काम करने का आग्रह करता हूं। हमें इसके लिए हासिल किए जा सकने योग्य लक्ष्य निर्धारित करने होंगे।’’