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गोधरा कांड: गोधरा कांड के कई दोषियों की जमानत याचिका की सुनवाई,ट्रेन में जिंदा फूंक दिए 59 कारसेवक


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नई दिल्ली – गुजरात विधानसभा में गोधरा कांड के बाद भड़के गुजरात दंगों की जांच कर रहे नानावती आयोग की अंतिम रिपोर्ट रखी गई। गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा ने सदन में रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि आयोग की रिपोर्ट में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रियों पर लगे आरोप खारिज किए गए। रिपोर्ट को तत्कालीन राज्य सरकार को सौंपे जाने के 5 साल बाद सदन के पटल पर रखा गया।

सुप्रीम कोर्ट में गोधरा कांड के कई दोषियों की जमानत याचिका पर सोमवार को सुनवाई थी। इनमें से कई दोषियों को ट्रायल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। अब इन दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दायर कर रखी है। इनकी याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच सुनवाई कर रही है। बेंच ने दोषियों की जमानत पर सुनवाई के लिए तीन हफ्ते बाद का समय दिया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों से इस दौरान एक चार्ट फाइल करने के निर्देश दिए हैं, जिसमें आरोपियों द्वारा जेल में बिताए गए समय और उन्हें दी गई सजा की जानकारी देने के निर्देश दिए हैं।

गुजरात सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दोषियों को लेकर बेंच को बताया कि हम गंभीर कोशिश करेंगे कि दोषियों को फांसी की सजा दी जाए। यह दुर्लभतम से दुर्लभ मामला है, जहां 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। रेल की बोगी को बाहर से बंद किया गया और उसमें आग लगा दी गई।

27 फरवरी 2002 की बात है। अयोध्या से करीब दो हजार कारसेवक अहमदाबाद जाने के लिए 26 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में सवार हुए। 27 फरवरी को ट्रेन गोधरा पहुंची तो S-6 बोगी में पथराव शुरू हो गया। बोगी को बाहर से बंद कर दिया गया और फिर उपद्रवियों ने आग लगा दी गई। आगजनी में 59 लोगों की मौत हो गई। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाए जाने की घटना के बाद पूरा गुजरात सुलग उठा। इसके अगले दिन यानी 28 फरवरी 2002 से गुजरात के अलग-अलग जगहों पर सांप्रदायिक दंगे फैल गए। इन दंगों में 1200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। गोधरा में ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया।

गुजरात विधानसभा में दंगों की जांच कर रहे नानावती आयोग की 1500 से अधिक पन्नों की अंतिम रिपोर्ट रखी गई। रिपोर्ट में कहा गया कि जांच में उन्हें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे साबित कि राज्य के किसी मंत्री ने इन हमलों के लिए उकसाया या भड़काया। कुछ जगहों पर भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस अप्रभावी रही, क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी नहीं थे या वे हथियारों से अच्छी तरह लैस नहीं थे। आयोग ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन गुजरात सरकार को अपनी रिपोर्ट में क्लीन चिट दी। मुख्यमंत्री मोदी और उनके 3 मंत्रियों अशोक भट्ट, भरत बरोट और हरेन पांड्या की दंगे भड़काने में कोई भूमिका नहीं।

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