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सिंगूर जमीन विवाद: बंगाल सरकार को टाटा ग्रुप को चुकाने होंगे 766 करोड़ रुपये,जानें वज़ह


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नई दिल्लीः अगले महीने कोलकाता में होने जा रहे बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट से पहले पश्चिम बंगाल सरकार को तड़गा झटका लगा है। सोमवार को बंगाल के बहुचर्चित सिंगूर जमीन विवाद में नैनो संयंत्र पर पूंजी निवेश के नुकसान को लेकर मुआवजा मामले में टाटा को बड़ी जीत हासिल हुई है। टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा मोटर्स लिमिटेड (टीएमएल) अब सिंगूर में परित्यक्त कार विनिर्माण संयंत्र में किए गए निवेश के नुकसान की भरपाई के रूप में बंगाल सरकार को 766 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है।

टाटा ग्रुप की बड़ी जीत

टाटा ने सोमवार को दावा किया कि तीन सदस्यीय पंचाट न्यायाधिकरण (मध्यस्थता पैनल) ने सोमवार को मामले का निपटारा करते हुए उसके पक्ष में सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है। टाटा ने एक बयान में कहा कि कंपनी अब प्रतिवादी पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआइडीसी) से 11 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 765.78 करोड़ रुपये की राशि वसूलने की हकदार है। कंपनी ने एक नियामक फाइलिंग में ये जानकारी दी है।

बंगाल समिट से पहले फैसला

इस फैसले ने बंगाल सरकार के लिए बहुत असहज स्थिति पैदा कर दी है क्योंकि कोलकाता में 21- 22 नवंबर को बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट होना है। इसमें बड़ी संख्या में उद्योगपतियों के आने की जानकारी मिल रही थी। इस समिट से पहले यह फैसला आया है, जिसके चलते सरकार असहज स्थिति में आ गई है।

टाटा ने बयान जारी कर दी जानकारी

टाटा ने सोमवार को दावा किया कि तीन सदस्यीय पंचाट न्यायाधिकरण (मध्यस्थता पैनल) ने सोमवार को मामले का निपटारा करते हुए उसके पक्ष में सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया है। टाटा ने एक बयान में कहा कि कंपनी अब प्रतिवादी पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआइडीसी) से 11 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज के साथ 765.78 करोड़ रुपये की राशि वसूलने की हकदार है। कंपनी ने बाजार नियामक को ये जानकारी दी है।

ममता ने किया था आमरण अनशन

बता दें कि सिंगूर में जमीन अधिग्रहण के विरुद्ध विपक्ष के नेता के रूप में ममता बनर्जी ने तीन दिसंबर, 2006 से कोलकाता में आमरण अनशन शुरू किया था और यह काफी दिनों तक चला था। बाद में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ममता को 2008 में चर्चा के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। 24 अगस्त 2008 को ममता ने सिंगूर में नैनो साइट से सटे दुगार्पुर एक्सप्रेस हाईवे पर परियोजना के लिए अधिग्रहित 1,000 एकड़ जमीन में 400 एकड़ की वापसी की मांग करते हुए विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। आखिर में तीन अक्टूबर, 2008 को दुर्गापूजा से दो दिन पहले रतन टाटा ने कोलकाता में नैनो परियोजना को सिंगूर से गुजरात स्थानांतरित करने की घोषणा की थी। उन्होंने इस फैसले के लिए ममता बनर्जी के आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया था।

टाटा मोटर्स ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी लगाने के लिए निवेश किया था, लेकिन विरोध के कारण उसे नुकसान उठाना पड़ा और अपना प्लांट यहां से गुजरात शिफ्ट करना पड़ा। टाटा मोटर्स ने पूंजी निवेश के नुकसान के कारण WBIDC से मुआवजे का दावा किया था। सिंगूर प्लांट टाटा नैनो कारों के उत्पादन के लिए बनाया गया था।

कार्यवाही के एक करोड़ रुपये भी मिलेंगे

इसमें एक सितंबर 2016 से वास्तविक वसूली तक 11 प्रति प्रति वर्ष की दर से ब्याज शामिल है। कंपनी इसके साथ ही कार्यवाही की लागत के लिए एक करोड़ रुपये भी वसूल करेगी। बयान में कहा गया है कि फैसले के बाद मध्यस्थता की कार्यवाही खत्म हो गई है।

नैनो कार कारखाना लगाने की मिली थी मंजूरी

गौरतलब है कि पूर्ववर्ती वाममोर्चा सरकार ने टाटा को सिंगूर में ‘लखटकिया’ नैनो कार कारखाना लगाने की अनुमति दी थी। तब ममता बनर्जी विपक्ष में थीं। ममता ने वाममोर्चा सरकार पर सिंगूर में टाटा के लिए जबरन जमीन अधिग्रहण का आरोप लगाते हुए आंदोलन का नेतृत्व किया था।

ममता बनर्जी ने सोने को राख में बदल दिया

बंगाल भाजपा के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, मैं निश्चित रूप से तीन-सदस्यीय पंचाट न्यायाधिकरण के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत करता हूं, जिसने पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआईडीसी) को 1 सितंबर, 2016 से 11 प्रतिशत प्रति वर्ष ब्याज के साथ टाटा मोटर्स को 768.78 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है।

गुजरात में शिफ्ट हुआ था प्लांट

साल 2008 में आंदोलन के कारण टाटा को अपना कारखाना गुजरात के सानंद में स्थानांतरित करना पड़ा था। गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने इस प्लांट का उद्घाटन किया था। 2010 में टाटा ने सानंद में एक और प्लांट खोला था।

सुप्रीम कोर्ट गई गई थी टाटा

बाद में 2011 में सत्ता में आने पर ममता बनर्जी सरकार ने सिंगुर में टाटा की जमीन को किसानों को वापस लौटाने का फैसला किया था। इसके बाद टाटा मोटर्स ने सिंगुर में हुए नुकसान के कारण मुआवजे की मांग को लेकर यह मामला किया था। टाटा उस वक्त सिंगूर में एक हजार करोड़ रुपये लगा चुका था। टाटा मोटर्स ने साल 2011 में ममता सरकार के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसके जरिए कंपनी से अधिगृहित जमीन छीन ली गई थी।

1 लाख रुपए की कीमत में लॉन्च की थी टाटा नैनो

रतन टाटा ने साल 2008 में देश के मध्यम वर्ग को ध्यान में रखते हुए अपनी ड्रीम कार टाटा नैनो लॉन्च की थी। ये भारतीय कार इतिहास की अब तक की सबसे सस्ती कारों में से एक है। रतन टाटा ने इसे 1 लाख रुपए की कीमत में लॉन्च किया था। हालांकि लोगों को ये कार ज्यादा पसंद नहीं आई और साल 2020 में इसका प्रोडक्शन बंद करना पड़ा।

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